Saturday, 28 July 2012

----- || DESH - DISHAA KI DURDASHAA || -----

  " किसी राष्ट्रइकाई की न्यायिक व संविधानिक व्यवस्था से जनसामान्य की आस्था का
    न्यूनीकरण,परिवर्तन का संसुसचक है,परिवर्तन के स्वरूप के ज्ञान हेतु केवल इतिहास
    के अध्ययन की आवश्यकता है.."


  " वर्तमान सत्ता का संवैधानिक स्वरूप यदि यथार्थत: सतत  कार्यशील रहा तब भविष्य में
    कदाचित विद्यमान भय व भ्रष्टता युक्त सत्ता का मुख मंडल का परिदर्शन विभत्स हो....."  


TUESDAY, JULY 31 2012                                                                             

   समृद्ध  एवं  विकसित भाषा के अंतस्, भाव अभिव्यक्ति  का वैभवपूर्ण  व्याख्यान  संभव है,
   वहीं पाश्चात्य (पिछड़ी) व अविकसित भाषाएँ भावों का अभाव दर्शातीं हैं.....  
 


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