" किसी राष्ट्रइकाई की न्यायिक व संविधानिक व्यवस्था से जनसामान्य की आस्था का
न्यूनीकरण,परिवर्तन का संसुसचक है,परिवर्तन के स्वरूप के ज्ञान हेतु केवल इतिहास
के अध्ययन की आवश्यकता है.."
" वर्तमान सत्ता का संवैधानिक स्वरूप यदि यथार्थत: सतत कार्यशील रहा तब भविष्य में
कदाचित विद्यमान भय व भ्रष्टता युक्त सत्ता का मुख मंडल का परिदर्शन विभत्स हो....."
TUESDAY, JULY 31 2012
समृद्ध एवं विकसित भाषा के अंतस्, भाव अभिव्यक्ति का वैभवपूर्ण व्याख्यान संभव है,
वहीं पाश्चात्य (पिछड़ी) व अविकसित भाषाएँ भावों का अभाव दर्शातीं हैं.....
न्यूनीकरण,परिवर्तन का संसुसचक है,परिवर्तन के स्वरूप के ज्ञान हेतु केवल इतिहास
के अध्ययन की आवश्यकता है.."
" वर्तमान सत्ता का संवैधानिक स्वरूप यदि यथार्थत: सतत कार्यशील रहा तब भविष्य में
कदाचित विद्यमान भय व भ्रष्टता युक्त सत्ता का मुख मंडल का परिदर्शन विभत्स हो....."
TUESDAY, JULY 31 2012
समृद्ध एवं विकसित भाषा के अंतस्, भाव अभिव्यक्ति का वैभवपूर्ण व्याख्यान संभव है,
वहीं पाश्चात्य (पिछड़ी) व अविकसित भाषाएँ भावों का अभाव दर्शातीं हैं.....
बहुत सटीक!
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