Friday 19 October 2012

----- ।। चले नेता नवाब बनने ।। -----

हमारे माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मुख्यमंत्री, मंत्रीगण
सभी दल अध्यक्षों एवं दल सदस्यों आदि आदि को ना तो
हिंसा अच्छी लगाती है ना ही अहिंसा, ना तो इन्हें धरना
अच्छा लगता ना ही मरना न इन्हें अनशन भाता न ही
ध्वंसन ना तो इन्हें समाचार पत्रों के समाचार अच्छे लगते
न ही इन्हें दूरदर्शन के दृश्य समाचार..,

इन्हें किसी भी प्रकार का विरोध अच्छा  नहीं लगता
हाँ कुर्सी से चिपकना एवं उस पर पसरे  रहना  बहुंत
अच्छा लगता है, विदेशों में जन्म दिन मनाना तथा
रंगरलिया मनाना बहुंत  अच्छा  लगता  है, बड़े बड़े
देशों के  राष्ट्रपतियों  के  साथ  कोट शेरवानी धारण
कर  सेमीनार  करना बहुंत अच्छा लगता है इनकी
छींक  भी  हवाई  जहाज  की  हवा खाए  बिना एवं
विदेशी चिकत्सकों के हाथ लगे बिना ठीक ही नहीं
होती.., 


प्रतीक्षा है जनता का नरसिम्हा के अवतार स्वरूप
में अवतरित होने की जो इन लोकतांत्रिक  खम्बों
को उखाड़ कर इन हिरन्यकश्यपों का सर्वनाश कर
सके..,


जबकि वर्त्तमान में भारत का एक जनसामान्य
केवल मात्र आधारभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष
कर रहा है एक सामान्य व्यक्ति स्वयं का तो दूर    
अपने छोटे से बच्चे का जन्म दिवस मनाने हेतु
दस बारी सोचता है.....


भारतीय लोकतंत्र ऐसे कोषज के सदृश्य है जिसके
कोषा तंतुओं में 'राजतंत्र' लिपटा हुवा है.....  

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