मूल्य वृद्धि वास्तव में मुद्रा का अवमूल्यन है..,
वस्तु का वास्तविक मूल्य उसकी आवश्यकता
एवं उपलब्धता पर आधारित होता है..,
निजी उपक्रमों द्वारा अर्जित व्यवसायिक लाभ से वह स्वयं लाभान्वित होते हैं,
लोक उपक्रमों द्वारा अर्जित व्यवसायिक लाभ से सामान्य जन लाभान्वित होता है..,
यदि ग्राहक अधिक हो तो सेवा विस्तारित कर अधिकाधिक लाभ
अर्जित किया जा सकता है..,
हमारे देश में एक दूरभाष का लोक उपक्रम है जहां ग्राहक अधिक थे सेवा न्यून थीं तत्पश्चात
निजी व्यवसायिक संस्थाओं ने उक्त व्यवसाय में प्रवेश किया एवं सेवा विस्तारित कर
अप्रत्याशित लाभ अर्जित किया..,
कथा का सार है कि "सेवा बढ़ाओ लाभ कमाओ"
बिलकुल सही है आदरेया |
ReplyDeleteशुभकामनायें -
beautiful..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक सोच,शुभकामनायें.
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