धरे रुरियारे रंग, बन फिरिति पतंग, दए फगुनिया पुकारि के होरी में..,
मनि मोतियाँ ते भरी बलपरी फूरझरी छरहरी डोरी डार के होरी में..,
रंग लाल लाल बिहंग लाल लाल,
गगन गगन उरति पतंग लाल लाल,
बूझती अली अली उरि चलि गली गली सखी कलियाँ सँवार के होली में..,
कहँ छुपे मनहरिया केसरिया साँवरिया दुअरिया ढार के होरी में..,
अहो चाले है मराल कनक केसरी करताल,
स्याम राग संग धरे रंग थाल थाल,
घुँघरी घरी घर्घरी कटि धरी गहन घाघरी घार के होरी में..,
सुठि भृकुटि तरेर ठकि मुख तीन सेर दे मीठी मीठी गार के होरी में..,
अहो झाँझरि जड़ाऊ बाँधे पाँउ पाँउ,
झनक झनक झुमरि बजे है गाँउ गाँउ,
रूपु हरी रूपु भर हे री हेरि घर घर घेरि चौंक चौबार के होरी में
सबु नगर ढिंढोर करी बुँदौरी को घोर भर भर पिचकार के होरी मे..,
अहो भाँवरि भरत तिरत डोल डोल,
करत निरत थिरत थाप दे ढोल ढोल,
आयो द्वारिका को नाथ
ग्वाल बाल साथ
मोर मुकुट माथ
अधरन पे बंसरी सँवारे.....
---- ॥ राग मारवा, बसंत ॥ ----- उड़ री रंग धूरि चहुँ पासा,
बादिहि बादन बृन्दु अगासा । उड़ री रंग धूरि चहुँ पासा ॥
फूरहि फूर पंखि दल पूरे । बासहि बास बसंत सुबासा ॥
बिमनस मुख सो रभस दुरायो । सरस रहस बस रास बिलासा ॥
सरसि सरसई सरिरुह सौंहैं ।सरित सरोजल कह उछ्बासा ॥
दरसै छटा पुरुट पट डारे । अरुन प्रभाकर भास बिभासा ॥
घोरिहि घन रस बन रस राजा । कर महु कर धर करिहु कुहासा ॥
बहुरी बदरि बहुर बदराई । बहुरि बदरि न बहुर चौमासा ॥
कर्पूर गौर बौरि अमराई । हरिअर हरिअर हरिअर बासा ॥
कोयरि कोयरि कूजत बोलहि । पालौ पालौ पलहि पलासा ॥
चटक छटा फर जीर जँबीरी । झलहिं चँवर सों जौर जवासा ॥
मनि मोतियाँ ते भरी बलपरी फूरझरी छरहरी डोरी डार के होरी में..,
रंग लाल लाल बिहंग लाल लाल,
गगन गगन उरति पतंग लाल लाल,
बूझती अली अली उरि चलि गली गली सखी कलियाँ सँवार के होली में..,
कहँ छुपे मनहरिया केसरिया साँवरिया दुअरिया ढार के होरी में..,
अहो चाले है मराल कनक केसरी करताल,
स्याम राग संग धरे रंग थाल थाल,
घुँघरी घरी घर्घरी कटि धरी गहन घाघरी घार के होरी में..,
सुठि भृकुटि तरेर ठकि मुख तीन सेर दे मीठी मीठी गार के होरी में..,
अहो झाँझरि जड़ाऊ बाँधे पाँउ पाँउ,
झनक झनक झुमरि बजे है गाँउ गाँउ,
रूपु हरी रूपु भर हे री हेरि घर घर घेरि चौंक चौबार के होरी में
सबु नगर ढिंढोर करी बुँदौरी को घोर भर भर पिचकार के होरी मे..,
अहो भाँवरि भरत तिरत डोल डोल,
करत निरत थिरत थाप दे ढोल ढोल,
आयो द्वारिका को नाथ
ग्वाल बाल साथ
मोर मुकुट माथ
अधरन पे बंसरी सँवारे.....
---- ॥ राग मारवा, बसंत ॥ ----- उड़ री रंग धूरि चहुँ पासा,
बादिहि बादन बृन्दु अगासा । उड़ री रंग धूरि चहुँ पासा ॥
फूरहि फूर पंखि दल पूरे । बासहि बास बसंत सुबासा ॥
बिमनस मुख सो रभस दुरायो । सरस रहस बस रास बिलासा ॥
सरसि सरसई सरिरुह सौंहैं ।सरित सरोजल कह उछ्बासा ॥
दरसै छटा पुरुट पट डारे । अरुन प्रभाकर भास बिभासा ॥
घोरिहि घन रस बन रस राजा । कर महु कर धर करिहु कुहासा ॥
बहुरी बदरि बहुर बदराई । बहुरि बदरि न बहुर चौमासा ॥
कर्पूर गौर बौरि अमराई । हरिअर हरिअर हरिअर बासा ॥
कोयरि कोयरि कूजत बोलहि । पालौ पालौ पलहि पलासा ॥
चटक छटा फर जीर जँबीरी । झलहिं चँवर सों जौर जवासा ॥
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-02-2017) को
ReplyDelete"गधों का गधा संसार" (चर्चा अंक-2598)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Really wonderful piece of Fine Art ( literature).
ReplyDeletewith utmosst regards to the respected Author
Kshetrapal Sharma , Aligarh 25.02.2017
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteWahhhhh!!aapke faag nai to abhi se faag ke rango se sarovar ker diya .....kanh sang hoti ki ...
ReplyDeleteWahhhhh !!Aapke faag nai to abhi se faag ke rangon se sarobar ker diya ..kanha sang hori khelane jayeee
ReplyDeleteWahhhhh !!Aapke faag nai to abhi se faag ke rangon se sarobar ker diya ..kanha sang hori khelane jayeee ..
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