उरियो नहि सेंदुरी ऐ री रंग धूरि
कुञ्ज गलिअ कर कुसुम कलिअ यहु अजहूँ न पंखि अपूरि ॥
कहइ बिसुर बल बल गल बहियाँ ओहि जोरे अंज अँजूरि ॥
अंक ही अंक गहि पलुहाई मैं कल परसोंहि अँकूरि ॥
एहि मधुबन रे मोरे बाबुल इहँ बिहरिहु धरे अँगूरि ॥
चरनहि नुपूर सिरु बर बेनी, कानन्हि कंचन्हि फूरि ॥
बोलहि मिठु जिमि चाँचरि बोलै अरु तुम अति करर करूरि ॥
निरखहि नीरज नयन झरोखे तुम रंज न देहु बिंदूरि ॥
दय घटा घन छटा मन मोही न त दमकिहि दमक बिजूरि ॥
मन चन्दन मुख मनियरचन्दा बालिपन बिहुर नहि भूरि ॥
फेरी भँवर कतहुँ फिरजइयो इहँ अइयो कबहुँ बहूरि ॥
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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