उनिहौ रे सेंदुरी ऐ री रंग धूरि
पलहि उत्पलव नील नलिन नव जिमि जलहि दीप लव रूरि ।
तरु तमाल दए तिलक भाल तव तिमि सोहिहि छबि अति भूरि ॥
बिभौ बदन घन स्याम सुन्दर सिरौपर पँखी मयूरि ।
पहिरै सुरुचित पीत झगुरिया धरि मधुराधर बाँसूरि ॥
बजति भली करधन छली करी कर कंकनि सँग केयूरि ॥
कल धुनि करत भाँवरि भरत जबु थिरकत चरन नुपूरि ॥
घुटरु घटि बँट काँछ कटि तट पटिअरि धूपटि अपूरि ।
गिरियों लटपटि त उठि कपटि कह लपटि आध अधूरि ॥
पाउँ परस करि लीज्यो दरस न त इन्ह कर दरसन दूरि ॥
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