Saturday 6 October 2018

----- ॥ दोहा-द्वादश ६ ॥ -----

अजहुँ जग बिपरीत भया उलट भई सब कान | 
पाप करे तो मान दे धर्म करे अपमान || १  || 
भावार्थ : - विद्यमान समय में जगत के सभी नीति नियम रीतिगत न होकर विपरीत हो चले हैं |  पाप करो तो यह सम्मानित करता है और यदि धर्म करो तो यह अपमानित करता है | 
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प्रीति साँची सोइ कहो होइब मीन समान | 
पिय पानि बिलगाइब जूँ छूटे तलफत प्रान || २  || 
भावार्थ : - सच्ची प्रीत वही है जो मीन की प्रीत के समान हो | प्रियतम रूपी पानी अथवा प्रियतम का हाथ वियोजित होते ही तड़पते हुवे प्राण निष्कासित हों | 

फूल फले न छाईं दैं जे परदेसी ठूँठ | 
बिरउँ कहते मिथ्या है बिरिछ कहे सो झूठ || ३  || 
भावार्थ : - ये विदेशी ठूंठ न फूलते हैं न फलते हैं न हीं छाया देते हैं इन्हें विटप कहना मिथ्या है और वृक्ष कहना तो नितांत असत्य ही है  | 


धन धाम बहु जोया रे करता दाहिन बाम | 
अंत काल रीता चला कहता साँचा राम || ४ || 
भावार्थ : - दायां बायां कर तुमने धन संपत्ति का बहुतक संकलन किया अंत समय  रिक्त ही चला यह कहते हुवे कि धन सम्पति  वृथा है इस संसार ईश्वर ही सत्य है | 

धन धाम जोया जिन हुँत करिआ दाहिन बाम | 
अंत सोइ कह लै चले सबते साँचा राम || ५ || 
भावार्थ :- जिनके हेतु तुमने कृत्याकृत्य कर धन सम्पति का संकलन किया अंत काल में वही तुझे ज्ञान  देते लिए चले कि अरे मूर्ख ! राम नाम ही सत्य है यह धन सम्पति नहीं | 


प्रभु न भावै कोई कू प्रभुता सबको भाइ | 
करता धरता सोइ सब अपना नाम धराइ || ६ || 
भावार्थ : - प्रभु किसी को रुचिकर नहीं लगते प्रभु की धन सम्पति में सभी की रूचि है  सब कार्यों का कर्ता वही हैं, किन्तु सांसारिक लोग अपना नाम करते गए | 

बालपना ग्यान गहै त्याग करे जुवान | 
धन्य धन्य सो देस जहँ करता श्रम बिरधान || ७ || 
भावार्थ : - जहाँ बाल्यावस्था ज्ञान ग्रहण करती हो, युवावस्था त्याग करती हो (सांसारिक विषय आदि का ) और वृद्धावस्था भी कठोर परिश्रम करती हो वह देश धन्य है | 

कहता नीचा आपुनो बैसा ऊँच मचान | 
ताहि न ऊंचा करि सकै प्रगस साखि भगवान || ८ || 
भावार्थ : - जो ऊँची पद-पृष्ठिका पर प्रतिष्ठित होकर भी स्वयं को नीच कहता हो, साक्षात भगवान भी प्रकट हो जाएं तो उसे ऊँचा नहीं कर सकते | 

जहाँ जोइ जसि चाहिबे करन जोग सो काम | 
आदि मध्यम अंत लगे जासु भलो परिनाम || ९ || 
भावार्थ : - अनावश्यक कार्य भी व्यर्थ का परिश्रम व् ऊर्जा हृासक होते है जहाँ, जब, जिस कार्य की आवश्यकता हो जो आदि से लेकर जिनका परिणाम उत्तम हो वह कार्य करने योग्य हैं |  



जग छूटा न जगती छूटी छूटा ना धन धान |
अंत काल सब छूट गए जब छूटे तन ते प्रान || ९ ||
भावार्थ : -

सब ईंधन बारि के रे किया लाख को राख |
साँचा बनजी सोइ जौ करे राख को लाख || १० ||
भावार्थ : - विद्यमान जनसंचालन शासन व्यवस्था पृथ्वी की समस्त निधियों को (ईंधन ) को आग देके लाख को राख करने पर तुली है और स्वयं अर्थ आधारित महाव्यापारी ( द ग्रेट मर्चेंट )कहती है सच्चा व्यापारी वही है जो राख को भी लाख कर दे |

सबै ईंधन बारी कै खाया सब उत्खाद | 
भावी तोहि कोसेगा किया न को उत्पाद || ११ || 
भावार्थ : - अरे वर्तमान तूने स्वहित हेतु पृथ्वी में संचित समस्त ईंधन में आग लगा दी इसकी संचित निधियों को भी खोद खोद के खा गया, तेरा भविष्य तुझे पानी पी पी के कोसेगा कि तूने परिश्रम कर कोई उत्पादन नहीं किया | 

खाया पिया सोए रहा करिया बहुत बिश्राम | 
जोड़ जुगाड़ी तोड़ के दिया कमाई नाम || १२ || 
भावार्थ : - अरे वर्तमान तेरा भविष्य तुझे यह भी कहेगा कि केवल खाने-पीने और आनंद मनाने में मग्न होकर तूने विश्राम पूर्वक जीवन-यापन किया | रे मूर्ख ! घर की संचित निधियों की निकासी कर उसे अपनी कमाई अपना उत्पादन कहा | 











7 comments:

  1. हालाँकि भावार्थ से ही समझ आये लेकिन आये तो सही.
    बेहद उम्दा दोहे.
    नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०८ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द के आज का पन्ना आदरणीय रोहिताश जी के नाम में" बुधवार 10 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बेहद उम्दा दोहे

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  5. बहुत सुन्दर बहुत दिनों बाद इतने सधे भाषा मैं लिखे दोहे पढ़ने का मौका मिला

    बधाई

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  6. बहुत सुंदर और दोहा छंद पर खरे उतरते दोहे।
    वाह अप्रतिम अद्भुत ।

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  7. वाह!!बहुत खूबसूरत दोहे !!

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