मंगलवार, ०६ जून,२०१७
रघुनायक प्रति भगतिहि जिनकी | होइहि अवसिहि सद्गति तिनकी ||
सुनहिं कथा मानि बिस्वासा | सोइ भगत जन बिनहि प्रयासा ||
रघुनायक के प्रति जिनकी भक्ति है उनकी सद्गति होना निश्चित है | भगवान श्री रामचंद्र पर विश्वास कर जो भक्तजन इस कथा का श्रवणपान करते हैं : --
महपातक सम भूसुर हंता | पाइहि ता सों पार तुरंता ||
जो जग महुँ बिरलेन्ह गहावा | सनातन ब्रम्हन सोइ पावा ||
वह ब्रह्म हत्या जैसे महा पातकों को क्षण मात्र में पार करके उस सनातन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं जो संसार में विरलों को ही प्राप्य है ||
जो यह कथा कपट तजि गावहि | सो जग कर अभिमत फलु पावहि ||
होइहि पुतिक पुरुष पुत हीना | लहहि सुसम्पद दारिद दीना ||
कपट त्यागकर जो इस कथा का गायन करते हैं वह संसार के मनोवांक्षित फल को प्राप्त करते हैं इस कथा के श्रवण से पुत्र हीन पुरुष को पुत्र की प्राप्ति होती है धनहीन को धन मिलता है |
मिटिहि रोग बंधन छुटि जाहीं | खल चण्डाल परम पद पाहीं ||
प्रभु पद ब्रम्हन केरि रताई | ताहि हेतुहु कहा कहनाई ||
रोगी का रोग से, बंधन में पड़े मनुष्य बन्धन से विमुक्त हो जाता है खल चांडाल परम पद के अधिकारी हो जाते हैं | भगवान श्रीराम के चरणों में ब्राह्मण की अनुरक्ति का तो कहना ही क्या |
भगवनहि सुमिरत मन ते अनुमोदत सो जाग |
मह पापिहु लहाउ होत परम सुरग मह भाग ||
हे महाभाग ! भगवान राघव को मन से स्मरण रत व् उनके यज्ञ की प्रशंसा करता महापापी भी परम स्वर्ग को प्राप्त हो जाता है |
बुधवार, ०७ जून,२०१७
धन्य धन्य जग मह नर सोई | करए राम नित सुमिरन जोई ||
भव सिंधु छन पार सो पावा | अच्छय सुख पुनि होइ लहावा ||
संसार में वह मनुष्य धन्य है जो ईश्वर स्वरूपी भगवान श्री राम का नित्य स्मरण करता है भवसिंधु को क्षणभर में पार कर वह अक्षय सुख को प्राप्त होता है ||
मेधि कथा ए सुनिहि जो कोई | बाचकन्हि दानए गौ दोई ||
परितोषत प्रथमहि भोजन तै | जथा जोग बसन बिभूषन दै ||
इस अश्वमेध कथा का श्रवणकर्ता वाचक को दो गौ प्रदान करे प्रथमतः उसे भोजनादि तृप्त करे तत्पश्चात यथायोग्य वस्त्रालंकार दान देवे ||
पुनि जुग पानि सहित परिवारा | सबिनय तासु करए सत्कारा ||
ब्रम्ह हंत कर पातक रासी | करत कथा एहि होत बिनासी ||
करबद्ध स्वरूप में परिवार सहित विनय पूर्वक उसका सत्कार करे | यह ब्रह्म ह्त्या की राशि का विनाश करने वाली कथा है ||
राम चिंतन राम पद पूजा | ता समतुल नहि तीरथ दूजा ||
अस बिचारत सुनिहि चित लाई | भव बंधन तिन बाँधि न पाईं ||
भगवान का चिंतन भगवान की चरण वंदना के समतुल्य और कोई तीर्थ नहीं है ऐसा विचारकर जो इस भगवद कथा का लगन सहित श्रवण करते हैं,सांसारिक बंधन उन्हें बांध नहीं पाते |
राम नाम जपिहउ रे बंधू रामनाम ते कछु न घटे |
राम नाम मनि दाम कंठगत सकल अंतस तमस हटे ||
राम राम मुख नाम धरे दारुन दुःख कर बादर छटे |
जब जब भूरि भव पाप भरे तब तब सो साखि प्रगटे ||
बंधुओं ! अनर्गल प्रलाप से अन्यथा राम सरूपी ईश्वर का निरंतर स्मरण करते रहना चाहिए | राम नाम के स्मरण से लाभ ही होता है हानि नहीं होती | राम नाम की मणि माला कंठगत करने से अंतर्जगत का अंधकार समाप्त हो जाता है | मुख को रामस्वरूपी ईश्वर का धाम कर लेने से कठिन दुखों के मेघ विच्छिन्न हो जाते हैं | पापों की अधिकता से जब जब भूमि पापपूरित हो जाती हैं उनके निवारण हेतु तब तब भगवान साक्षात प्रकट होते हैं ||
रामायन सुर धेनु सी मानस पयस पुनीत |
रसना धरत निकसावहि राम नाम नवनीत ||
बंधुओं !रामायण कामधेनु के समान है तो मानस पावन पयस के समतुल्य है | रसना में इन्हें धारण करने पर भगवान के नाम का माखन प्राप्त होता है अर्थात धर्मग्रंथों के सार में ईश्वर होते हैं |
बृहस्पतिवार, १५ जून,२०१७
सुनि श्रुतिसुख सब कथा मुनीसा | रामायन हुँत जगिहि जिगीसा ||
सबहि धर्म संजुग यह गाथा | नायक कृपा सिंधु रघुनाथा ||
कर्ण को तृप्त करने वाली कथा श्रवण कर मुनि वात्स्यायन जी रामायण के विषय में कुछ्ह सुनने की जिज्ञासा जागृत हो गई सम्पूर्ण धर्मों से युक्त जिस ग्रंथ के प्रणेता कृपासिंधु श्रीराम हैं |
पुछेउ पुनि मुनि कथा ए नीकी | हस्त रचित कृति बाल्मीकि की ||
केहि सुसमउ अरु केहि कारन | होइब महा सिद्धिप्रद सिरजन ||
तदनन्तर मुनि ने महर्षि वाल्मीकि द्वारा हस्त रचित इस कृति की सुन्दर कथा के सम्बन्ध में पूछा : -- हे स्वामि ! किस समय और किस कारण से इस महा सिद्धिप्रद कृति का सृजन हुवा ||
मुकुति पंथ सद ग्रंथ महाना | केहि बतकहि कीन्हि बखाना ||
जद्यपि सुना सुसजनहि ताहीं | समुझ परी कछु अरु कछु नाहीं ||
यह महान सद्ग्रन्थ जो नि:संदेह मुक्ति का पंथ है उसमें किन किन बातों का वर्णन है ? यद्यपि मैने इसे सुसज्जनों के श्री मुख से श्रवण किया था तथापि इसकी बातें मुझे कुछ् समझ आईं कुछ नहीं ||
अतिसय संसय मानस मोरे | प्रबोधन प्रबुध सरिस न तोरे ||
मम मति घन तम सम अग्याना | यहु ग्यान रबि किरन समाना ||
मेरे मनमानस में अत्यधिक संसय है मुझे इसका बोध करवाने में आपके समान कोई प्रबुद्ध नहीं || गहन अन्धकार रूपी अज्ञान से व्याप्त मेरे मनोमस्तिष्क के लिए यह ज्ञान रवि किरण के समरूप है ||
कहत सेष ए बिसद चरित यहु सुठि छंद प्रबंध |
भनित भित तिमि बस्यो जिमि बस्यो सुवन सुगंध ||
मुनिवर के प्रश्न करने पर शेषजी ने कहा : -- सुन्दर छंदो से युक्त इस काव्य-प्रबंध की कविताओं में भगवान के उज्जवल चरित्र ऐसे वासित है जैसे पुष्प में सुरभित सुगंध का वास होता है ||
शनिवार, १७ जून, २०१७
एक बार कमण्डलु कर धारे | गए महर्षि घन बिपिन मझारे ||
बीच बीच बट बिटप बिसाला | तीर तीर तहँ ताल तमाला ||
एक समय की बात है महर्षि वाल्मीकि अपने कर में कमंडल लिए सघन विपिनके मध्य स्थल में गए, जहाँ कगारों परपंक्ति बद्ध ताल ( ताड़ ) व् तमाल ( शीशम ) के वृक्ष थे जिसके बीचोंबीच वट ( बरगद ) के विशाल तरु सुशोभित हो रहे थे ||
पालव पालव पलहि पलासा | करहि रुचिर रितु राज बिलासा ||
बिहरन करत सरसि सारंगा | भावइ मन अति बारि बिहंगा ||
पत्र पत्र पलास पलासित हो रहे थे मनमोहक वसंत वहां विलास कर रहा था | जल विहार से सरोवर को रंगमई बिंदुओं से सुसोभित करते जल पक्षी मन को अत्यधिक लुभा रहे थे |
लेइ मनोहर पंखि बसेरे | परबसिया अरु फिरहिं न फेरे ||
बनज बिपुल करसंपदा धरी | भा अति रमनिक सोइ अस्थरी ||
मनोहर प्रवासी पक्षी बसेरा ले रहे थे और लौटाने से भी नहीं लौट रहे थे | वनोत्पादित अपार संपदा से संपन्न होकर वह स्थली और अधिक मनोरम प्रतीत हो रही थी ||
आह मुने यह अनुपम झाँकी | प्रगस भई जनु बन लखि साखी ||
महर्षि ठाढ़े रहेउ जहँवाँ | निकट दुइ सुन्दर कलिक तहवाँ ||
अहो मुने ! उस स्थली की छटा ऐसी अनुपम थी कि मानो शोभा की देवी वहां साक्षात प्रकट हो गई हो | महर्षि जिस स्थान पर उपस्थित थे उसके निकट क्रौंच पक्षी का एक सुन्दर जोड़ा : --
भए काम बस गहे उर बाना | लहेउ रतिपति कुसुम कृपाना ||
दुहु माँझ अस रहेउ सनेहा | होइ एकातम भए एक देहा ||
रतिनाथ के कुसुम कृपाण के वाण को ह्रदय में धारण कर काम के वशीभूत थे | उन दोनों के मध्य ऐसा परम स्नेह था कि वे इस स्नेह के कारण एकात्म होकर एक देह हो गए थे ||
दोउ मन हर्ष जान अति होत परस्पर संग |
नेह नाउ हरिदय नदी भावै भँवर तरंग ||
परस्पर मेल से दोनों का मन अत्यंत हर्ष का अनुभव करता था | हृदय नदी में स्नेह की नाव से उत्पन्न भंवर और तरंगे दोनों को आह्लादित कर रही थी |
रविवार १८ जून,२०१७
सुनहु मुनि अवचट तेहि काला | आए तहँ एक ब्याध ब्याला ||
निर्मम हरिदय दया न आवा | खैंच बान एकु मारि गिरावा ||
हे मुनिवर सुनिए : -- उस समय एक अति हिंसक बहेलिया अचानक वहां आया उस निर्मम ह्रदय को तनिक भी दया नहीं आई, उसने बाण खैंच कर उन पक्षियों में से एक को मार गिराया |
दरस मुनि अस कोप करि गाढ़े | भरे ज्वाल बिलोचन काढ़े ||
बोले रिसत अह रे निषादा | बिसुरत तुअ मानुष मर्यादा ||
यह देख मुनि ने अत्यंत कोप किया जिसके ज्वाला से भरे लोचन बाहर निकल आए, वह रुष्ट होते हुवे बोले ओह निषाद ! तुमने मनुष्य की मर्यादा को उलाँघ कर :-
पेममगन यह सुन्दर जोरा | दरसन सुखद सहज चित चोरा ||
अधमि निपट दुसठ हतियारा | हनत जिअ न सोचै एक बारा ||
रे अधमी दुष्ट हत्यारे, दर्शन में सुखदायक सहज चित्त चुराने वाले प्रेम मग्न इस सुन्दर जोड़े के प्राण हरण करने में तुमने एक बार भी विचार नहीं किया ?
पबित सरित के पावन पाथा | देइ श्राप मुनि गह निज हाथा ||
रे हतमति कबहुँ केहि भाँती | मिलहि न तोहि सास्वत सांती ||
और उन्होंने पवित्र सरिता का पावन जल करतल में लेकर क्रौंच की हत्या करने वाले उस निषाद को श्राप दिया कि रे हतबुद्धि ! तुझे कहीं भी किसी भी प्रकार से शाश्वत शांति प्राप्त नहीं होगी |
मदनानल तेउ जिन्हनि किए निज बस झष केतु |
करत अनीति दूषन बिनु हतेउ तिन बिनु हेतु ||
रतिनाथ कामदेव ने मदनाग्नि से जिन्हेंअपने वशीभूत कर लिया था तुमने अनीति पूर्वक दूषण करते हुवे उस पक्षी के अकारण ही प्राण ले लिए |
रविवार, २५ जून, २०१७
मुख निकसित एहि करकस बचना | छंदोबद्ध सरूपी रचना ||
सुनत बटुक गन मुनि सहुँ आईं | प्रसन्न चित बोले गोसाईं ||
मुनिवर के मुख से यह कठोर वचन एक छंदोबद्ध रचना के रूप में निष्कासित हुवे थे, जिसे श्रवणकर उनके साथ आए शिष्यगण ने प्रसन्न चित्त होकर कहा : --
ब्याध बिहग जान जिअ हानी | दिए सरोष श्राप जेहि बानी ||
श्लोक सरूप बचन तिहारे | सारद तईं गयउ बिस्तारे ||
स्वामि ! पक्षी के प्राणहंत होने पर रुष्ट होते हुवे आपने जिस वाणी से श्राप दिया उन वचनों को माँ शारदा ने श्लोक स्वरूप में विस्तारित किया हैं |
मम मुख निगदित गदन अलिंदा | रहे अतीउ मनोहर छंदा ||
जान बिसारित सारद ताहीं | भए मुनि मुदित मनहि मन माहीं ||
मेरे मुख से निकले उक्त शब्दवृन्द वीणापाणि माँ शारदे द्वारा विस्तारित अत्यंत मनोहर छंद है, ऐसा संज्ञान कर महर्षि मन-ही-मन में हर्षित हुवे |
प्रगसेउ तहँ तबहि बागीसा | सुधा गिरा सों कहिब मुनीसा ||
धन्य धन्य तुम तापसराजू | अस्थित होत तोर मुख आजू ||
उसी समय वहां वाचस्पति ब्रह्मा का प्राकट्य हुवा | सुधा तुल्य वाणी से उन्होंने कहा -- हे तपस्विराज मुनीश्वर ! तुम धन्य हो आज तुम्हारे मुख में स्थित होकर
सुरमन्य स्लोक सरूप प्रगसिहि सारद साखि |
सुचितामन बिसदात्मन तोहि बिसारद लाखि ||
अत्यंत सुन्दर श्लोक रूपी सरस्वती साक्षात प्रकट हुई हैं जब तुम्हे पवित्र मन, विशुद्धात्मा व् वेद विशारद परिलक्षित किया |
बुधवार २८ जून, २०१७
एहि महँ संसय नहि लव लेसा | सुरसती तोहि देइ अदेसा ||
मनोहरी आखरि करि नीकी | कहौ कथा रामायन जीकी ||
इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है मुख निवासिनी सरस्वती जी ने तुम्हे आदेश दिया है कि तुम सुन्दर और मनोहारी वर्णमाला में रामायण कथा का अनुष्ठान करो |
धन्य सोइ मुख निकसित बानी | भगवन नाउ जोर जुग जानी ||
तासु अबर अरु कहिबत जेतू | कामकथा सब अनहित हेतू ||
मुख से निष्कासित वही वाणी धन्य है जो ईश्वर के नाम से संयुक्त हो इसके अतिरिक्त अन्य जतनी भी वार्त्ताएँ हैं कामकथा रूप में वह सब अहित के हेतु हैं |
चरै चरन सत पंथ न पावा | मानस महुँ सूतक उपजावा ||
रघुबर कर जग बिदित चरित की | कृतौ कबित कृति कथा सरित की ||
जो चरण इनका अनुशरण करते हैं वह सन्मार्ग को प्राप्त नहीं होते ये मानवजाति में अपवित्रता उत्पन्न करने के लिए होती हैं | तुम उत्पन्न कर भगवान श्री राम चंद्र जी के जगत प्रसिद्ध चरित्र की कथा सरिता पर आधारित काव्य कृति की रचना करो |
जहँ भगत जन निसदिन अन्हाएँ | गाहत निर्मल होत सुख पाएँ ||
एतनेउ कहत बिधा बिधाना | देउ सहित भए अंतर धाना ||
जहाँ भक्तजन निसदिन निमज्जन करते हुवे उसके अवगाहन से निर्मल होकर सुख को प्राप्त करें | इतना कहने के पश्चात विधि के विधाता ब्रह्मा जी अंतर्धान हो गए |
पुनि एक दिन सो संत सुधीरा | तरंगाइत तरंगिनि तीरा ||
तदनन्तर एकदिन वह सुधीर संत तरंग युक्त मनोहारी सरिता के तट पर : --
भगवन्मय हरिदय लिये, रहेउ मगन धियान |
तबहि सुन्दर रूपु धरे प्रगसित भए भगवान ||
भगवन्मय ह्रदय लिये ध्यान मग्न थे उस समय उनके ह्रदय में सुन्दर रूपधारी भगवान श्रीराम प्रकट हुवे ||
नील नलिन वपुर्धरं | ताम श्याम सुन्दरं ||
अरुणारविन्द लोचनं | पीताम्बरो भूषणं ||
जिनका श्रीविग्रह नीलकमल व् ताम्र के जैसा श्याम सुन्दर है, जिनके नेत्र रक्तार्विंद के समान हैं जिनके पीतम वस्त्राभूषण है |
कमनकोटिलावण्य: | समुद्रकोटिगम्भीर: ||
सप्तलोकैकमण्डनम् | नरकार्णवतारणम् ||
जिनमें करोड़ो कामदेवों का लावण्य है | जो समुद्रों जितने गहन हैं सप्त लोक के श्रृंगार स्वरूप हैं
कामधुक्कोटि कामद: | सर्व: स्वर्गति प्रद: ||
वश्यविश्व विश्वम्भरम् | तपोनिधि मुनीश्वरम् ||
सर्वदैवैकदेवता | जगन्निधि: जगद्पिता ||
क्षोभिताशेषसागरम् | समस्तपितृजीवनम् ||
यज्ञकोटिसमार्चन: | पुण्यश्रवण कीर्तन: |
वेदधर्म परायणं | रमारमण नारायणं ||
सदानन्दो शान्त : | सदा प्रिय: सदा शिव: ||
शिवस्पर्धिजटाधरम् | जगदीशो वनेचरम् ||
सर्वरत्नाश्रयो नृप: | जगद्वरो जनार्दन: ||
परात्पर: परं परम् | आन्नद विश्वमोहनम् ||
नि:शङ्को नरकान्तक: | भवबन्धकैमोचक: ||
जगद्भयदविभीषकं | अनद्य सर्वपूरकं ||
दीनानाथैकाश्रयो | जगदधर्म सेतु धरो ||
नित्यानंद सनातनं | वीरो तुलसी वल्लभं ||
शुद्ध बुद्ध स्वरूप: | सर्वादि सर्वतोमुख: ||
सत्यो नित्य चिन्मय: | शिवारुढो : त्रयोमय: ||
रामा नयनाभिराम छबि दरसत हरिदय साखि |
ता संगत मुनि तिन्हके त्रिकाल चरितहि लाखि ||
हृदय में भगवान राम की इस नयनाभिराम छवि का साक्षात दर्शन किया उसके साथ मुनिवर ने उनके भूत, वर्तमान व् भविष्य -- तीनों काल के चरित्रों का साक्षात्कार किया |
शुक्रवार, ३० जून, २०१७
बहुरि करत आनंदनुभूती | सकलत भनिति ग्यान बिभूती ||
भावार्थ पूरित पद बृंदा | बिरचत मंजु मनोहर छंदा ||
ततपश्चात आनंद की अनुभूति करते हुवे काव्यमय ज्ञान की सम्पदा को संकलित कर भाव एवं अर्थ पूरित पद वृन्द व् मंजुल मनोहर छंदों की रचना करते : -
रघुबर बिसद जस बरनत गयउ | अस रामायन गाथ निरमयउ ||
एहि महँ सुरुचित षट सोपाना | सुरग सोपान पंथ समाना ||
रघुनाथ जी के उज्जवल यश का वर्णन करते चले गए इस प्रकार रामायण का सृजन हुवा | इस महान ग्रन्थ में स्वर्ग के सोपान पंथ स्वरूप सुंदरता से भरपूर छह सोपान हैं |
बाल अरण्यक अरु किष्किन्धा | सुन्दर युद्धोत्तर सुप्रबन्धा ||
जेहि सुभग पद सो पथ पावै | करत सकृत कृत पाप नसावै ||
जो बालकाण्ड, आरण्यककाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, युद्धकाण्ड, उत्तरकाण्ड नाम से सुव्यवस्थित हैं | जो सौभाग्यशील चरण इसपंथ का अनुशरण करते हैं वह सत्कृत करते हुवे अपने किए कुकृत्यों का शमन कर लेते हैं |
दीन दुखित यहु अतिसय भावहि | दंभ मोह मन भाव न आवहि ||
साखित सनातन ब्रह्म हरि के | रूप रघुबर नर देहि धरि के ||
दीन-दुखियों के मन को यह अत्यंत प्रिय है इससे दम्भ, मोह, मद, काम, क्रोध जैसे भाव व्युत्पन नहीं होते | साक्षात सनातन ब्रह्म श्रीहरि के रूप में रघुवर नरदेह धारण कर : -
प्रथमहि काण्ड लिए अवतारे | दसरथ नंदन गयउ पुकारे ||
किन्ही अनुपम बालक लीला | पढ़न गए पुनि भयउ अनुसीला ||
प्रथम काण्ड में अवतार लिया और दशरथ नंदन केरूप में प्रसिद्ध हुवे | जन्म पश्चात इन्होने अनुपमित बाल लीलाएँ की तत्पश्चात अध्ययन रत होकर गुरुवर के पास विद्या ग्रहण करने गए |
कनक कान्त छीनि छबि बर के | बाल किसोर रबि रूप हर के ||
गाधि सुत सहुँ मिथिला पुर गयउ | जानकी संग लगन तहँ भयउ ||
दैदीप्यमान स्वर्ण से छीनी हुई शोभा को वरण कर, बालकिशोर केतुपति के रूप को हरण कर प्रभु विश्वामित्र के साथ पावन मिथिलानगरी गए वहां जनकनंदनी जानकी जी से उनका शुभलग्न हुवा |
भेंटत मग भृगुनंदनहि बहुरत अवध पधारि |
तहाँ जुबराजु पद हेतु होइँ तिलक तैयारि ||
मार्ग में भृगुनन्दन परशुराम से भेंट करते अयोध्या लौटना और वहां युवराज केपद पर उनका राज्याभिषेक होने की तैयारी |
मंगलवार, ४ जुलाई, २०१७
कहतब कैकेई महतारी | गयउ सघन बन राज बिसारी ||
तन जति बसन सिरु जटा बसाए | गंग पार चित्र कूट पहिं आए ||
माता कैकेई के कहने पर राज-पाट त्याग करके बेहड़ बिपिन में गमन, तन पर यति वल्कल व् शीश प् जटा बसाए हुवे गंगापार कर उनका चित्रकूट पर्वत पर पहुंचना |
सरित पुनीत लखन सिय संगा | बरनन्हि तहँ निवास प्रसंगा ||
सुनत भए निज भ्रात बनबासू | नीतिअनुहारि भरत हतासू ||
वहां पुनीत सरिता है जहाँ सीता और लक्ष्मण के साथ निवास के प्रसंग का वर्णन | भ्राता का वनवास सुनकर नीति का अनुशरण करने वाले भरत का दुःखी होना |
बहुरावन चित्रकूट गिरि गयउ | जब भ्रात बहोरि सुफल न भयउ ||
नगर बहिरगम आपु उदासा | नन्दि गाँउ किन्ही बसबासा ||
उन्हें लौटा लाने हेतु चित्रकूट गिरि गमन | भ्राता का लौटना असफल होने पर भारत का अयोध्या नगरि के बाहिर उदास होकर नन्दि ग्राम में निवास करना |
ए सब बिबरन भलि भूति भनिता | बाल काण्ड कबि किए संहिता ||
सुनहु पुनि सो बिषै मुनिराई | अरण्य काण्ड जौ बरनाई ||
इन सब विवरणों की उत्तम कवित सम्पदा को आदिकवि वाल्मीकि ने बालकाण्ड में संकलित किया है | हे मुनिराज !अब उन विषयों का श्रवण करें आरण्यक काण्ड में जिनका वर्णन है |
जनक सुता सती सिय अरु लखन सहित श्रीराम |
किन्हे बिपिन निवास पुनि बिलग बिलग मुनि धाम ||
जनकपुत्री सती श्री सीता जी और भ्राता लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम ने वनवास काटते हुवे भिन्न-भिन्न मुनियों के आश्रमों में निवास किया |
बुधवार, ०५ जुलाई, २०१७
पंथ गाँउ गिरादि अस्थाना | बरनत पंचबटी समुहाना ||
सुपनखाँ तहँ भई बिनु नासा | खरदूषन खल होइ बिनासा ||
वहां के पंथ, ग्राम, गिरि आदि स्थानों का वर्णन करते भगवन का पंचवटी की ओर जाना, वहां सूपर्णखा का नासिका से विहीन एवं दुष्ट खर-दूषण का विनाश होना |
मायामय मृग रूप बनावा | धाइ दुरत मारीच बधावा ||
दस कंधर कर जति कें भेसा | सिया हरन बरननहि बिसेसा ||
मायामय मृग का रूप धारण कर दौड़ते-छिपते मारीच का वध | राक्षस राज रावण द्वारा साधु वेश में माता सीता के हरण का विशेष वर्णन |
दनु बस रहति कहति हा कंता | बिरहवंत अह भै भगवंता ||
भँवरत बनहि हेरत बिलपाहि | मानवोचित चरित देखराहि ||
उक्त दानव के पराधीन कांत-कांत की पुकार | आह ! भगवंत का विरहवंत होना | तत्पश्चात माता सीता के अनुसंधान में वन-वन भटकते उनका विलाप युक्त मानवोचित चरित्र का दर्शन |
जल भर लोचन पीर समेटे | बहुरि जाइ कबंध ते भेंटे ||
आगहुं पंपा सरुबर आवा | जहाँ दास हनुमंत मिलावा ||
जल भरे लोचन में पीड़ा समेटे कबंध से जाकर मिलना | आगे पंपासरोवर पर पड़ाव जहाँ प्रभु का दास हनुमन्त से मिलाप होना |
एहि प्रकरन ए सबहि कथा सकलत एहि सबु बात |
आरण्यक कै नाउ तै होइँ जगत बिख्यात ||
इन घटनाओं व् इन प्रसंगो से सम्बंधित सभी वार्ताओं का संकलन जगत में आरण्यककाण्ड के नाम से प्रसिद्ध है |
शुक्रवार, ०७ जुलाई, २०१७
सप्त ताल छन माहि ढहायउ | महबली बालि बध बरनायउ ||
सिहासन सुग्रीवहि कर दावा | हितु कारज जब गयौ भुलावा ||
सप्त ताड़ वृक्षों का क्षण मात्र में भेदन, महाबली बालि के वध का वर्णन किया | सुग्रीव को सिंहासन प्रदान करना राज्य प्राप्त कर सुग्रीव का मित्र के कार्य को भुलाना |
करतब पालन कह रघुरायो | देइ सँदेस लखमनहि पठायो ||
तब बानर पति नगर निकसाहि | सैन पठइँ सिया के सुधि माहि ||
तत्पश्चात श्रीरघुनाथ जी द्वारा मित्र के प्रति कर्त्तव्य पालन का सन्देश देकर लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजना | तब वानरपति का नगर से निकलना व् सैन्ययूथ को सीता की शोध के लिए भेजा जाना |
सोधत फिरत जूथ दिनु राती | गिरि कन्दर भेंटे सम्पाती ||
पवनतनय तै सिंधु लँघावा | अपर पार लंका पइसावा ||
सैन्ययूथ का माता सीता की शोध में अहिर्निश विचरना, तदनन्तर पर्वत की गुहा में सम्पाती से भेंट होना | पवनपुत्र हनुमानके द्वारा समुद्र-लंघन और दूसरे तट पर लंका प्रवेश करना |
एहि किष्किंधा भीत बखाना | अनुपम अदुतिय यहु सोपाना ||
सुन्दर काण्ड सुनहु बिसेखा | जेहि हरि बिचित्र कथा करि लेखा ||
यह सब वृत्तांत किष्किंधा काण्ड के अंतर्गत वर्णित है यह काण्ड भी अनुपम व् अद्वितीय है | हे मुनीश्वर ! अब आप सुंदरकांड को विशेष रूप से सुनो जिसमें श्रीहरि की विचित्र कथा का उल्लेख है |
मंदिर मंदिर देखि जहँ करन सिया के हेर |
कोटि कोटि भट बिकट घट घारि घेर चहुँ फेर ||
जहाँ चारों दिशाओं में विकराल देह धरे करोड़ों राक्षस सैनिकों का घेरा और सीता की शोध के लिए हनुमान जी का प्रत्येक भवन में अवलोकन |
शनिवार, ०८ जुलाई, २०१७
बिचित्र बिचित्र दिरिस तहँ देख्यो | बैठि असोक बन सिय पेख्यो ||
हनुमत के ता सहुँ संवादा | बिनसिहि बन भर भूख बिषादा ||
वहां विचित्र-विचित्र दृश्य देखना, तदनन्तर अशोक वाटिका में विराजित माता सीता का दर्शन | भक्त हनुमान का उनसे संवाद क्षुधा और विषाद में वाटिका का विध्वंश |
कोपित दानव हस्त बँधायो | निबुकित लंका नगरि दहायो ||
सोध सिया चरनहि फिरवारा | मिलिहिं कपिन्ह जलधि करि पारा ||
कोप करते दानवों के हाथों बंधना फिर बंधनमुक्त होकरलंका नगरी का दहन करना | माताजानकी का अनुशंधान कर उनका लौटना पुनश्च सिन्धुपार कर वानरों से मिलना |
सिया सहदानि चरन चढ़ाईं | भरे कंठ प्रभु हरिदय लाईँ ||
सेतु बाँध लंका प्रस्थाना | अनि सों सुक सारन कै आना ||
माता की दिय हुवे चिन्ह को प्रभु के चरणों में अर्पण करना प्रभु का भरे कंठ से उसे ह्रदय से लगाना | सेतु बाँध कर भगवान का लंका-प्रस्थान, सेनाकेसाथ शुक व् सारण का सम्मिलन |
यहु सब सुन्दर काण्ड मह आवा | एहि बिधि ताहि दयौ परचावा ||
जुद्ध काण्ड महुँ कबि प्रबुद्धा | बरनिहि रामहि रावन जुद्धा ||
यह सब विषय सुन्दरकाण्ड में हैं इस पकार सुन्दरकाण्ड का परिचय दिया गया | युद्ध काण्ड में प्रबुद्ध कवि ने राम-रावण के युद्ध का वर्णन किया है |
लंका चढ़ाईं भए सहाई जय जय सोइ हनुमान की |
छाँड़त सर प्रभु मारत दनुपत पुनि लवायउ श्री जानकी ||
अतुर चरत अवधहि पहुंचायो जय सोइ रुचिर बिमान की |
बरनय बिनीत एहि बिषय जयति सो सुपुनीत सोपान की ||
लंका चढ़ाई के समय परम सहायक हुवे हनुमान जी की जय जय हो | सरोत्सर्ग कर प्रभु द्वारा दनुज पतिरावण का वध ततपश्चात जानकी माता को साथ लिए द्रुत गति से गमन करते उन्हें अयोध्या नगरी पहुंचाने वाले उस सुन्दर विमान की जय हो | विनयपूर्वक इन विषयों का वर्णन करने वाले सुन्दर व् पावन युद्धकाण्ड की जय हो |
ॐ अकार सो प्रथम सबद भए धवनित जौ ब्रह्माण्ड में |
रामाश्वमेधिय महु धवने सो उत्तर काण्ड में ||
रचित सुरुचित श्री रामहि रिषिन्ह सों संवाद कहे |
जगयारम्भादि सो ताहि महु अनेकानेक कथा गहे ||
ऊँकार वह प्रथम शब्द है जो जो ब्रह्माण्ड में ध्वनित हुवा | उत्तरकाण्ड के रामाश्वमेध में भी यह ध्वनित हुवा जगत के आदि से लेकर अंत तक श्रीरामचन्द्र जी के सम्बन्ध में ऋषि मुनियों ने जो कुछ संवाद सुरुचि पूर्वक रचनाकार जो कुछ संवाद वर्णित किया वह अनेकानेक कथाओं के रूप में संगृहीत है |
छहु काण्ड मैं कहा मुनि जिन्ह सुनत पाप नसावहीँ |
परिचायउ कछु थोरहिं जिन्हकी कथा बहु मनोहरी ||
बाल्मीकि कृत धर्मग्रन्थ रामायन जौ नाउ धरे |
अघ हंत मुकुति पंथ यह सहस चतुरविस स्लोक बरे ||
मुने ! जिसके श्रवणमात्र से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं वह षष्ट काण्ड मैने वर्णित किए | जिनकी कथा अत्यंत मनोहारी है उनका यत्किंचित परिचय दिया यद्यपि उनका परिचय अत्यंत है | वाल्मीकिकृत जो धर्मग्रन्थ है उसका नाम रामायण है | यह पापों को हरण करने वाले मुक्ति के पंथ स्वरूप चौविस सहस्त्र श्लोकों द्वारा वर्णित है |
एकै मंगल नामु जहाँ एकै सबद जहँ राम |
सकल बिपति सब गति मिटै पूरन भएँ सबु काम ||
जहाँ एक मंगल नाम है जहाँ एक शब्द राम है वह समस्त विपत्तियों व् दशाओं को नष्ट करनेवाला एवं सभी कार्य पूर्ण करनेवाला है |
रघुनायक प्रति भगतिहि जिनकी | होइहि अवसिहि सद्गति तिनकी ||
सुनहिं कथा मानि बिस्वासा | सोइ भगत जन बिनहि प्रयासा ||
रघुनायक के प्रति जिनकी भक्ति है उनकी सद्गति होना निश्चित है | भगवान श्री रामचंद्र पर विश्वास कर जो भक्तजन इस कथा का श्रवणपान करते हैं : --
महपातक सम भूसुर हंता | पाइहि ता सों पार तुरंता ||
जो जग महुँ बिरलेन्ह गहावा | सनातन ब्रम्हन सोइ पावा ||
वह ब्रह्म हत्या जैसे महा पातकों को क्षण मात्र में पार करके उस सनातन ब्रह्म को प्राप्त होते हैं जो संसार में विरलों को ही प्राप्य है ||
जो यह कथा कपट तजि गावहि | सो जग कर अभिमत फलु पावहि ||
होइहि पुतिक पुरुष पुत हीना | लहहि सुसम्पद दारिद दीना ||
कपट त्यागकर जो इस कथा का गायन करते हैं वह संसार के मनोवांक्षित फल को प्राप्त करते हैं इस कथा के श्रवण से पुत्र हीन पुरुष को पुत्र की प्राप्ति होती है धनहीन को धन मिलता है |
मिटिहि रोग बंधन छुटि जाहीं | खल चण्डाल परम पद पाहीं ||
प्रभु पद ब्रम्हन केरि रताई | ताहि हेतुहु कहा कहनाई ||
रोगी का रोग से, बंधन में पड़े मनुष्य बन्धन से विमुक्त हो जाता है खल चांडाल परम पद के अधिकारी हो जाते हैं | भगवान श्रीराम के चरणों में ब्राह्मण की अनुरक्ति का तो कहना ही क्या |
भगवनहि सुमिरत मन ते अनुमोदत सो जाग |
मह पापिहु लहाउ होत परम सुरग मह भाग ||
हे महाभाग ! भगवान राघव को मन से स्मरण रत व् उनके यज्ञ की प्रशंसा करता महापापी भी परम स्वर्ग को प्राप्त हो जाता है |
बुधवार, ०७ जून,२०१७
धन्य धन्य जग मह नर सोई | करए राम नित सुमिरन जोई ||
भव सिंधु छन पार सो पावा | अच्छय सुख पुनि होइ लहावा ||
संसार में वह मनुष्य धन्य है जो ईश्वर स्वरूपी भगवान श्री राम का नित्य स्मरण करता है भवसिंधु को क्षणभर में पार कर वह अक्षय सुख को प्राप्त होता है ||
मेधि कथा ए सुनिहि जो कोई | बाचकन्हि दानए गौ दोई ||
परितोषत प्रथमहि भोजन तै | जथा जोग बसन बिभूषन दै ||
इस अश्वमेध कथा का श्रवणकर्ता वाचक को दो गौ प्रदान करे प्रथमतः उसे भोजनादि तृप्त करे तत्पश्चात यथायोग्य वस्त्रालंकार दान देवे ||
पुनि जुग पानि सहित परिवारा | सबिनय तासु करए सत्कारा ||
ब्रम्ह हंत कर पातक रासी | करत कथा एहि होत बिनासी ||
करबद्ध स्वरूप में परिवार सहित विनय पूर्वक उसका सत्कार करे | यह ब्रह्म ह्त्या की राशि का विनाश करने वाली कथा है ||
राम चिंतन राम पद पूजा | ता समतुल नहि तीरथ दूजा ||
अस बिचारत सुनिहि चित लाई | भव बंधन तिन बाँधि न पाईं ||
भगवान का चिंतन भगवान की चरण वंदना के समतुल्य और कोई तीर्थ नहीं है ऐसा विचारकर जो इस भगवद कथा का लगन सहित श्रवण करते हैं,सांसारिक बंधन उन्हें बांध नहीं पाते |
राम नाम जपिहउ रे बंधू रामनाम ते कछु न घटे |
राम नाम मनि दाम कंठगत सकल अंतस तमस हटे ||
राम राम मुख नाम धरे दारुन दुःख कर बादर छटे |
जब जब भूरि भव पाप भरे तब तब सो साखि प्रगटे ||
बंधुओं ! अनर्गल प्रलाप से अन्यथा राम सरूपी ईश्वर का निरंतर स्मरण करते रहना चाहिए | राम नाम के स्मरण से लाभ ही होता है हानि नहीं होती | राम नाम की मणि माला कंठगत करने से अंतर्जगत का अंधकार समाप्त हो जाता है | मुख को रामस्वरूपी ईश्वर का धाम कर लेने से कठिन दुखों के मेघ विच्छिन्न हो जाते हैं | पापों की अधिकता से जब जब भूमि पापपूरित हो जाती हैं उनके निवारण हेतु तब तब भगवान साक्षात प्रकट होते हैं ||
रामायन सुर धेनु सी मानस पयस पुनीत |
रसना धरत निकसावहि राम नाम नवनीत ||
बंधुओं !रामायण कामधेनु के समान है तो मानस पावन पयस के समतुल्य है | रसना में इन्हें धारण करने पर भगवान के नाम का माखन प्राप्त होता है अर्थात धर्मग्रंथों के सार में ईश्वर होते हैं |
बृहस्पतिवार, १५ जून,२०१७
सुनि श्रुतिसुख सब कथा मुनीसा | रामायन हुँत जगिहि जिगीसा ||
सबहि धर्म संजुग यह गाथा | नायक कृपा सिंधु रघुनाथा ||
कर्ण को तृप्त करने वाली कथा श्रवण कर मुनि वात्स्यायन जी रामायण के विषय में कुछ्ह सुनने की जिज्ञासा जागृत हो गई सम्पूर्ण धर्मों से युक्त जिस ग्रंथ के प्रणेता कृपासिंधु श्रीराम हैं |
पुछेउ पुनि मुनि कथा ए नीकी | हस्त रचित कृति बाल्मीकि की ||
केहि सुसमउ अरु केहि कारन | होइब महा सिद्धिप्रद सिरजन ||
तदनन्तर मुनि ने महर्षि वाल्मीकि द्वारा हस्त रचित इस कृति की सुन्दर कथा के सम्बन्ध में पूछा : -- हे स्वामि ! किस समय और किस कारण से इस महा सिद्धिप्रद कृति का सृजन हुवा ||
मुकुति पंथ सद ग्रंथ महाना | केहि बतकहि कीन्हि बखाना ||
जद्यपि सुना सुसजनहि ताहीं | समुझ परी कछु अरु कछु नाहीं ||
यह महान सद्ग्रन्थ जो नि:संदेह मुक्ति का पंथ है उसमें किन किन बातों का वर्णन है ? यद्यपि मैने इसे सुसज्जनों के श्री मुख से श्रवण किया था तथापि इसकी बातें मुझे कुछ् समझ आईं कुछ नहीं ||
अतिसय संसय मानस मोरे | प्रबोधन प्रबुध सरिस न तोरे ||
मम मति घन तम सम अग्याना | यहु ग्यान रबि किरन समाना ||
मेरे मनमानस में अत्यधिक संसय है मुझे इसका बोध करवाने में आपके समान कोई प्रबुद्ध नहीं || गहन अन्धकार रूपी अज्ञान से व्याप्त मेरे मनोमस्तिष्क के लिए यह ज्ञान रवि किरण के समरूप है ||
कहत सेष ए बिसद चरित यहु सुठि छंद प्रबंध |
भनित भित तिमि बस्यो जिमि बस्यो सुवन सुगंध ||
मुनिवर के प्रश्न करने पर शेषजी ने कहा : -- सुन्दर छंदो से युक्त इस काव्य-प्रबंध की कविताओं में भगवान के उज्जवल चरित्र ऐसे वासित है जैसे पुष्प में सुरभित सुगंध का वास होता है ||
शनिवार, १७ जून, २०१७
एक बार कमण्डलु कर धारे | गए महर्षि घन बिपिन मझारे ||
बीच बीच बट बिटप बिसाला | तीर तीर तहँ ताल तमाला ||
एक समय की बात है महर्षि वाल्मीकि अपने कर में कमंडल लिए सघन विपिनके मध्य स्थल में गए, जहाँ कगारों परपंक्ति बद्ध ताल ( ताड़ ) व् तमाल ( शीशम ) के वृक्ष थे जिसके बीचोंबीच वट ( बरगद ) के विशाल तरु सुशोभित हो रहे थे ||
पालव पालव पलहि पलासा | करहि रुचिर रितु राज बिलासा ||
बिहरन करत सरसि सारंगा | भावइ मन अति बारि बिहंगा ||
पत्र पत्र पलास पलासित हो रहे थे मनमोहक वसंत वहां विलास कर रहा था | जल विहार से सरोवर को रंगमई बिंदुओं से सुसोभित करते जल पक्षी मन को अत्यधिक लुभा रहे थे |
लेइ मनोहर पंखि बसेरे | परबसिया अरु फिरहिं न फेरे ||
बनज बिपुल करसंपदा धरी | भा अति रमनिक सोइ अस्थरी ||
मनोहर प्रवासी पक्षी बसेरा ले रहे थे और लौटाने से भी नहीं लौट रहे थे | वनोत्पादित अपार संपदा से संपन्न होकर वह स्थली और अधिक मनोरम प्रतीत हो रही थी ||
आह मुने यह अनुपम झाँकी | प्रगस भई जनु बन लखि साखी ||
महर्षि ठाढ़े रहेउ जहँवाँ | निकट दुइ सुन्दर कलिक तहवाँ ||
अहो मुने ! उस स्थली की छटा ऐसी अनुपम थी कि मानो शोभा की देवी वहां साक्षात प्रकट हो गई हो | महर्षि जिस स्थान पर उपस्थित थे उसके निकट क्रौंच पक्षी का एक सुन्दर जोड़ा : --
भए काम बस गहे उर बाना | लहेउ रतिपति कुसुम कृपाना ||
दुहु माँझ अस रहेउ सनेहा | होइ एकातम भए एक देहा ||
रतिनाथ के कुसुम कृपाण के वाण को ह्रदय में धारण कर काम के वशीभूत थे | उन दोनों के मध्य ऐसा परम स्नेह था कि वे इस स्नेह के कारण एकात्म होकर एक देह हो गए थे ||
दोउ मन हर्ष जान अति होत परस्पर संग |
नेह नाउ हरिदय नदी भावै भँवर तरंग ||
परस्पर मेल से दोनों का मन अत्यंत हर्ष का अनुभव करता था | हृदय नदी में स्नेह की नाव से उत्पन्न भंवर और तरंगे दोनों को आह्लादित कर रही थी |
रविवार १८ जून,२०१७
सुनहु मुनि अवचट तेहि काला | आए तहँ एक ब्याध ब्याला ||
निर्मम हरिदय दया न आवा | खैंच बान एकु मारि गिरावा ||
हे मुनिवर सुनिए : -- उस समय एक अति हिंसक बहेलिया अचानक वहां आया उस निर्मम ह्रदय को तनिक भी दया नहीं आई, उसने बाण खैंच कर उन पक्षियों में से एक को मार गिराया |
दरस मुनि अस कोप करि गाढ़े | भरे ज्वाल बिलोचन काढ़े ||
बोले रिसत अह रे निषादा | बिसुरत तुअ मानुष मर्यादा ||
यह देख मुनि ने अत्यंत कोप किया जिसके ज्वाला से भरे लोचन बाहर निकल आए, वह रुष्ट होते हुवे बोले ओह निषाद ! तुमने मनुष्य की मर्यादा को उलाँघ कर :-
पेममगन यह सुन्दर जोरा | दरसन सुखद सहज चित चोरा ||
अधमि निपट दुसठ हतियारा | हनत जिअ न सोचै एक बारा ||
रे अधमी दुष्ट हत्यारे, दर्शन में सुखदायक सहज चित्त चुराने वाले प्रेम मग्न इस सुन्दर जोड़े के प्राण हरण करने में तुमने एक बार भी विचार नहीं किया ?
पबित सरित के पावन पाथा | देइ श्राप मुनि गह निज हाथा ||
रे हतमति कबहुँ केहि भाँती | मिलहि न तोहि सास्वत सांती ||
और उन्होंने पवित्र सरिता का पावन जल करतल में लेकर क्रौंच की हत्या करने वाले उस निषाद को श्राप दिया कि रे हतबुद्धि ! तुझे कहीं भी किसी भी प्रकार से शाश्वत शांति प्राप्त नहीं होगी |
मदनानल तेउ जिन्हनि किए निज बस झष केतु |
करत अनीति दूषन बिनु हतेउ तिन बिनु हेतु ||
रतिनाथ कामदेव ने मदनाग्नि से जिन्हेंअपने वशीभूत कर लिया था तुमने अनीति पूर्वक दूषण करते हुवे उस पक्षी के अकारण ही प्राण ले लिए |
रविवार, २५ जून, २०१७
मुख निकसित एहि करकस बचना | छंदोबद्ध सरूपी रचना ||
सुनत बटुक गन मुनि सहुँ आईं | प्रसन्न चित बोले गोसाईं ||
मुनिवर के मुख से यह कठोर वचन एक छंदोबद्ध रचना के रूप में निष्कासित हुवे थे, जिसे श्रवणकर उनके साथ आए शिष्यगण ने प्रसन्न चित्त होकर कहा : --
ब्याध बिहग जान जिअ हानी | दिए सरोष श्राप जेहि बानी ||
श्लोक सरूप बचन तिहारे | सारद तईं गयउ बिस्तारे ||
स्वामि ! पक्षी के प्राणहंत होने पर रुष्ट होते हुवे आपने जिस वाणी से श्राप दिया उन वचनों को माँ शारदा ने श्लोक स्वरूप में विस्तारित किया हैं |
मम मुख निगदित गदन अलिंदा | रहे अतीउ मनोहर छंदा ||
जान बिसारित सारद ताहीं | भए मुनि मुदित मनहि मन माहीं ||
मेरे मुख से निकले उक्त शब्दवृन्द वीणापाणि माँ शारदे द्वारा विस्तारित अत्यंत मनोहर छंद है, ऐसा संज्ञान कर महर्षि मन-ही-मन में हर्षित हुवे |
प्रगसेउ तहँ तबहि बागीसा | सुधा गिरा सों कहिब मुनीसा ||
धन्य धन्य तुम तापसराजू | अस्थित होत तोर मुख आजू ||
उसी समय वहां वाचस्पति ब्रह्मा का प्राकट्य हुवा | सुधा तुल्य वाणी से उन्होंने कहा -- हे तपस्विराज मुनीश्वर ! तुम धन्य हो आज तुम्हारे मुख में स्थित होकर
सुरमन्य स्लोक सरूप प्रगसिहि सारद साखि |
सुचितामन बिसदात्मन तोहि बिसारद लाखि ||
अत्यंत सुन्दर श्लोक रूपी सरस्वती साक्षात प्रकट हुई हैं जब तुम्हे पवित्र मन, विशुद्धात्मा व् वेद विशारद परिलक्षित किया |
बुधवार २८ जून, २०१७
एहि महँ संसय नहि लव लेसा | सुरसती तोहि देइ अदेसा ||
मनोहरी आखरि करि नीकी | कहौ कथा रामायन जीकी ||
इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है मुख निवासिनी सरस्वती जी ने तुम्हे आदेश दिया है कि तुम सुन्दर और मनोहारी वर्णमाला में रामायण कथा का अनुष्ठान करो |
धन्य सोइ मुख निकसित बानी | भगवन नाउ जोर जुग जानी ||
तासु अबर अरु कहिबत जेतू | कामकथा सब अनहित हेतू ||
मुख से निष्कासित वही वाणी धन्य है जो ईश्वर के नाम से संयुक्त हो इसके अतिरिक्त अन्य जतनी भी वार्त्ताएँ हैं कामकथा रूप में वह सब अहित के हेतु हैं |
चरै चरन सत पंथ न पावा | मानस महुँ सूतक उपजावा ||
रघुबर कर जग बिदित चरित की | कृतौ कबित कृति कथा सरित की ||
जो चरण इनका अनुशरण करते हैं वह सन्मार्ग को प्राप्त नहीं होते ये मानवजाति में अपवित्रता उत्पन्न करने के लिए होती हैं | तुम उत्पन्न कर भगवान श्री राम चंद्र जी के जगत प्रसिद्ध चरित्र की कथा सरिता पर आधारित काव्य कृति की रचना करो |
जहँ भगत जन निसदिन अन्हाएँ | गाहत निर्मल होत सुख पाएँ ||
एतनेउ कहत बिधा बिधाना | देउ सहित भए अंतर धाना ||
जहाँ भक्तजन निसदिन निमज्जन करते हुवे उसके अवगाहन से निर्मल होकर सुख को प्राप्त करें | इतना कहने के पश्चात विधि के विधाता ब्रह्मा जी अंतर्धान हो गए |
पुनि एक दिन सो संत सुधीरा | तरंगाइत तरंगिनि तीरा ||
तदनन्तर एकदिन वह सुधीर संत तरंग युक्त मनोहारी सरिता के तट पर : --
भगवन्मय हरिदय लिये, रहेउ मगन धियान |
तबहि सुन्दर रूपु धरे प्रगसित भए भगवान ||
भगवन्मय ह्रदय लिये ध्यान मग्न थे उस समय उनके ह्रदय में सुन्दर रूपधारी भगवान श्रीराम प्रकट हुवे ||
नील नलिन वपुर्धरं | ताम श्याम सुन्दरं ||
अरुणारविन्द लोचनं | पीताम्बरो भूषणं ||
जिनका श्रीविग्रह नीलकमल व् ताम्र के जैसा श्याम सुन्दर है, जिनके नेत्र रक्तार्विंद के समान हैं जिनके पीतम वस्त्राभूषण है |
कमनकोटिलावण्य: | समुद्रकोटिगम्भीर: ||
सप्तलोकैकमण्डनम् | नरकार्णवतारणम् ||
जिनमें करोड़ो कामदेवों का लावण्य है | जो समुद्रों जितने गहन हैं सप्त लोक के श्रृंगार स्वरूप हैं
कामधुक्कोटि कामद: | सर्व: स्वर्गति प्रद: ||
वश्यविश्व विश्वम्भरम् | तपोनिधि मुनीश्वरम् ||
सर्वदैवैकदेवता | जगन्निधि: जगद्पिता ||
क्षोभिताशेषसागरम् | समस्तपितृजीवनम् ||
यज्ञकोटिसमार्चन: | पुण्यश्रवण कीर्तन: |
वेदधर्म परायणं | रमारमण नारायणं ||
सदानन्दो शान्त : | सदा प्रिय: सदा शिव: ||
शिवस्पर्धिजटाधरम् | जगदीशो वनेचरम् ||
सर्वरत्नाश्रयो नृप: | जगद्वरो जनार्दन: ||
परात्पर: परं परम् | आन्नद विश्वमोहनम् ||
नि:शङ्को नरकान्तक: | भवबन्धकैमोचक: ||
जगद्भयदविभीषकं | अनद्य सर्वपूरकं ||
दीनानाथैकाश्रयो | जगदधर्म सेतु धरो ||
नित्यानंद सनातनं | वीरो तुलसी वल्लभं ||
शुद्ध बुद्ध स्वरूप: | सर्वादि सर्वतोमुख: ||
सत्यो नित्य चिन्मय: | शिवारुढो : त्रयोमय: ||
रामा नयनाभिराम छबि दरसत हरिदय साखि |
ता संगत मुनि तिन्हके त्रिकाल चरितहि लाखि ||
हृदय में भगवान राम की इस नयनाभिराम छवि का साक्षात दर्शन किया उसके साथ मुनिवर ने उनके भूत, वर्तमान व् भविष्य -- तीनों काल के चरित्रों का साक्षात्कार किया |
शुक्रवार, ३० जून, २०१७
बहुरि करत आनंदनुभूती | सकलत भनिति ग्यान बिभूती ||
भावार्थ पूरित पद बृंदा | बिरचत मंजु मनोहर छंदा ||
ततपश्चात आनंद की अनुभूति करते हुवे काव्यमय ज्ञान की सम्पदा को संकलित कर भाव एवं अर्थ पूरित पद वृन्द व् मंजुल मनोहर छंदों की रचना करते : -
रघुबर बिसद जस बरनत गयउ | अस रामायन गाथ निरमयउ ||
एहि महँ सुरुचित षट सोपाना | सुरग सोपान पंथ समाना ||
रघुनाथ जी के उज्जवल यश का वर्णन करते चले गए इस प्रकार रामायण का सृजन हुवा | इस महान ग्रन्थ में स्वर्ग के सोपान पंथ स्वरूप सुंदरता से भरपूर छह सोपान हैं |
बाल अरण्यक अरु किष्किन्धा | सुन्दर युद्धोत्तर सुप्रबन्धा ||
जेहि सुभग पद सो पथ पावै | करत सकृत कृत पाप नसावै ||
जो बालकाण्ड, आरण्यककाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, युद्धकाण्ड, उत्तरकाण्ड नाम से सुव्यवस्थित हैं | जो सौभाग्यशील चरण इसपंथ का अनुशरण करते हैं वह सत्कृत करते हुवे अपने किए कुकृत्यों का शमन कर लेते हैं |
दीन दुखित यहु अतिसय भावहि | दंभ मोह मन भाव न आवहि ||
साखित सनातन ब्रह्म हरि के | रूप रघुबर नर देहि धरि के ||
दीन-दुखियों के मन को यह अत्यंत प्रिय है इससे दम्भ, मोह, मद, काम, क्रोध जैसे भाव व्युत्पन नहीं होते | साक्षात सनातन ब्रह्म श्रीहरि के रूप में रघुवर नरदेह धारण कर : -
प्रथमहि काण्ड लिए अवतारे | दसरथ नंदन गयउ पुकारे ||
किन्ही अनुपम बालक लीला | पढ़न गए पुनि भयउ अनुसीला ||
प्रथम काण्ड में अवतार लिया और दशरथ नंदन केरूप में प्रसिद्ध हुवे | जन्म पश्चात इन्होने अनुपमित बाल लीलाएँ की तत्पश्चात अध्ययन रत होकर गुरुवर के पास विद्या ग्रहण करने गए |
कनक कान्त छीनि छबि बर के | बाल किसोर रबि रूप हर के ||
गाधि सुत सहुँ मिथिला पुर गयउ | जानकी संग लगन तहँ भयउ ||
दैदीप्यमान स्वर्ण से छीनी हुई शोभा को वरण कर, बालकिशोर केतुपति के रूप को हरण कर प्रभु विश्वामित्र के साथ पावन मिथिलानगरी गए वहां जनकनंदनी जानकी जी से उनका शुभलग्न हुवा |
भेंटत मग भृगुनंदनहि बहुरत अवध पधारि |
तहाँ जुबराजु पद हेतु होइँ तिलक तैयारि ||
मार्ग में भृगुनन्दन परशुराम से भेंट करते अयोध्या लौटना और वहां युवराज केपद पर उनका राज्याभिषेक होने की तैयारी |
मंगलवार, ४ जुलाई, २०१७
कहतब कैकेई महतारी | गयउ सघन बन राज बिसारी ||
तन जति बसन सिरु जटा बसाए | गंग पार चित्र कूट पहिं आए ||
माता कैकेई के कहने पर राज-पाट त्याग करके बेहड़ बिपिन में गमन, तन पर यति वल्कल व् शीश प् जटा बसाए हुवे गंगापार कर उनका चित्रकूट पर्वत पर पहुंचना |
सरित पुनीत लखन सिय संगा | बरनन्हि तहँ निवास प्रसंगा ||
सुनत भए निज भ्रात बनबासू | नीतिअनुहारि भरत हतासू ||
वहां पुनीत सरिता है जहाँ सीता और लक्ष्मण के साथ निवास के प्रसंग का वर्णन | भ्राता का वनवास सुनकर नीति का अनुशरण करने वाले भरत का दुःखी होना |
बहुरावन चित्रकूट गिरि गयउ | जब भ्रात बहोरि सुफल न भयउ ||
नगर बहिरगम आपु उदासा | नन्दि गाँउ किन्ही बसबासा ||
उन्हें लौटा लाने हेतु चित्रकूट गिरि गमन | भ्राता का लौटना असफल होने पर भारत का अयोध्या नगरि के बाहिर उदास होकर नन्दि ग्राम में निवास करना |
ए सब बिबरन भलि भूति भनिता | बाल काण्ड कबि किए संहिता ||
सुनहु पुनि सो बिषै मुनिराई | अरण्य काण्ड जौ बरनाई ||
इन सब विवरणों की उत्तम कवित सम्पदा को आदिकवि वाल्मीकि ने बालकाण्ड में संकलित किया है | हे मुनिराज !अब उन विषयों का श्रवण करें आरण्यक काण्ड में जिनका वर्णन है |
जनक सुता सती सिय अरु लखन सहित श्रीराम |
किन्हे बिपिन निवास पुनि बिलग बिलग मुनि धाम ||
जनकपुत्री सती श्री सीता जी और भ्राता लक्ष्मण के साथ भगवान श्रीराम ने वनवास काटते हुवे भिन्न-भिन्न मुनियों के आश्रमों में निवास किया |
बुधवार, ०५ जुलाई, २०१७
पंथ गाँउ गिरादि अस्थाना | बरनत पंचबटी समुहाना ||
सुपनखाँ तहँ भई बिनु नासा | खरदूषन खल होइ बिनासा ||
वहां के पंथ, ग्राम, गिरि आदि स्थानों का वर्णन करते भगवन का पंचवटी की ओर जाना, वहां सूपर्णखा का नासिका से विहीन एवं दुष्ट खर-दूषण का विनाश होना |
मायामय मृग रूप बनावा | धाइ दुरत मारीच बधावा ||
दस कंधर कर जति कें भेसा | सिया हरन बरननहि बिसेसा ||
मायामय मृग का रूप धारण कर दौड़ते-छिपते मारीच का वध | राक्षस राज रावण द्वारा साधु वेश में माता सीता के हरण का विशेष वर्णन |
दनु बस रहति कहति हा कंता | बिरहवंत अह भै भगवंता ||
भँवरत बनहि हेरत बिलपाहि | मानवोचित चरित देखराहि ||
उक्त दानव के पराधीन कांत-कांत की पुकार | आह ! भगवंत का विरहवंत होना | तत्पश्चात माता सीता के अनुसंधान में वन-वन भटकते उनका विलाप युक्त मानवोचित चरित्र का दर्शन |
जल भर लोचन पीर समेटे | बहुरि जाइ कबंध ते भेंटे ||
आगहुं पंपा सरुबर आवा | जहाँ दास हनुमंत मिलावा ||
जल भरे लोचन में पीड़ा समेटे कबंध से जाकर मिलना | आगे पंपासरोवर पर पड़ाव जहाँ प्रभु का दास हनुमन्त से मिलाप होना |
एहि प्रकरन ए सबहि कथा सकलत एहि सबु बात |
आरण्यक कै नाउ तै होइँ जगत बिख्यात ||
इन घटनाओं व् इन प्रसंगो से सम्बंधित सभी वार्ताओं का संकलन जगत में आरण्यककाण्ड के नाम से प्रसिद्ध है |
शुक्रवार, ०७ जुलाई, २०१७
सप्त ताल छन माहि ढहायउ | महबली बालि बध बरनायउ ||
सिहासन सुग्रीवहि कर दावा | हितु कारज जब गयौ भुलावा ||
सप्त ताड़ वृक्षों का क्षण मात्र में भेदन, महाबली बालि के वध का वर्णन किया | सुग्रीव को सिंहासन प्रदान करना राज्य प्राप्त कर सुग्रीव का मित्र के कार्य को भुलाना |
करतब पालन कह रघुरायो | देइ सँदेस लखमनहि पठायो ||
तब बानर पति नगर निकसाहि | सैन पठइँ सिया के सुधि माहि ||
तत्पश्चात श्रीरघुनाथ जी द्वारा मित्र के प्रति कर्त्तव्य पालन का सन्देश देकर लक्ष्मण को सुग्रीव के पास भेजना | तब वानरपति का नगर से निकलना व् सैन्ययूथ को सीता की शोध के लिए भेजा जाना |
सोधत फिरत जूथ दिनु राती | गिरि कन्दर भेंटे सम्पाती ||
पवनतनय तै सिंधु लँघावा | अपर पार लंका पइसावा ||
सैन्ययूथ का माता सीता की शोध में अहिर्निश विचरना, तदनन्तर पर्वत की गुहा में सम्पाती से भेंट होना | पवनपुत्र हनुमानके द्वारा समुद्र-लंघन और दूसरे तट पर लंका प्रवेश करना |
एहि किष्किंधा भीत बखाना | अनुपम अदुतिय यहु सोपाना ||
सुन्दर काण्ड सुनहु बिसेखा | जेहि हरि बिचित्र कथा करि लेखा ||
यह सब वृत्तांत किष्किंधा काण्ड के अंतर्गत वर्णित है यह काण्ड भी अनुपम व् अद्वितीय है | हे मुनीश्वर ! अब आप सुंदरकांड को विशेष रूप से सुनो जिसमें श्रीहरि की विचित्र कथा का उल्लेख है |
मंदिर मंदिर देखि जहँ करन सिया के हेर |
कोटि कोटि भट बिकट घट घारि घेर चहुँ फेर ||
जहाँ चारों दिशाओं में विकराल देह धरे करोड़ों राक्षस सैनिकों का घेरा और सीता की शोध के लिए हनुमान जी का प्रत्येक भवन में अवलोकन |
शनिवार, ०८ जुलाई, २०१७
बिचित्र बिचित्र दिरिस तहँ देख्यो | बैठि असोक बन सिय पेख्यो ||
हनुमत के ता सहुँ संवादा | बिनसिहि बन भर भूख बिषादा ||
वहां विचित्र-विचित्र दृश्य देखना, तदनन्तर अशोक वाटिका में विराजित माता सीता का दर्शन | भक्त हनुमान का उनसे संवाद क्षुधा और विषाद में वाटिका का विध्वंश |
कोपित दानव हस्त बँधायो | निबुकित लंका नगरि दहायो ||
सोध सिया चरनहि फिरवारा | मिलिहिं कपिन्ह जलधि करि पारा ||
कोप करते दानवों के हाथों बंधना फिर बंधनमुक्त होकरलंका नगरी का दहन करना | माताजानकी का अनुशंधान कर उनका लौटना पुनश्च सिन्धुपार कर वानरों से मिलना |
सिया सहदानि चरन चढ़ाईं | भरे कंठ प्रभु हरिदय लाईँ ||
सेतु बाँध लंका प्रस्थाना | अनि सों सुक सारन कै आना ||
माता की दिय हुवे चिन्ह को प्रभु के चरणों में अर्पण करना प्रभु का भरे कंठ से उसे ह्रदय से लगाना | सेतु बाँध कर भगवान का लंका-प्रस्थान, सेनाकेसाथ शुक व् सारण का सम्मिलन |
यहु सब सुन्दर काण्ड मह आवा | एहि बिधि ताहि दयौ परचावा ||
जुद्ध काण्ड महुँ कबि प्रबुद्धा | बरनिहि रामहि रावन जुद्धा ||
यह सब विषय सुन्दरकाण्ड में हैं इस पकार सुन्दरकाण्ड का परिचय दिया गया | युद्ध काण्ड में प्रबुद्ध कवि ने राम-रावण के युद्ध का वर्णन किया है |
लंका चढ़ाईं भए सहाई जय जय सोइ हनुमान की |
छाँड़त सर प्रभु मारत दनुपत पुनि लवायउ श्री जानकी ||
अतुर चरत अवधहि पहुंचायो जय सोइ रुचिर बिमान की |
बरनय बिनीत एहि बिषय जयति सो सुपुनीत सोपान की ||
लंका चढ़ाई के समय परम सहायक हुवे हनुमान जी की जय जय हो | सरोत्सर्ग कर प्रभु द्वारा दनुज पतिरावण का वध ततपश्चात जानकी माता को साथ लिए द्रुत गति से गमन करते उन्हें अयोध्या नगरी पहुंचाने वाले उस सुन्दर विमान की जय हो | विनयपूर्वक इन विषयों का वर्णन करने वाले सुन्दर व् पावन युद्धकाण्ड की जय हो |
ॐ अकार सो प्रथम सबद भए धवनित जौ ब्रह्माण्ड में |
रामाश्वमेधिय महु धवने सो उत्तर काण्ड में ||
रचित सुरुचित श्री रामहि रिषिन्ह सों संवाद कहे |
जगयारम्भादि सो ताहि महु अनेकानेक कथा गहे ||
ऊँकार वह प्रथम शब्द है जो जो ब्रह्माण्ड में ध्वनित हुवा | उत्तरकाण्ड के रामाश्वमेध में भी यह ध्वनित हुवा जगत के आदि से लेकर अंत तक श्रीरामचन्द्र जी के सम्बन्ध में ऋषि मुनियों ने जो कुछ संवाद सुरुचि पूर्वक रचनाकार जो कुछ संवाद वर्णित किया वह अनेकानेक कथाओं के रूप में संगृहीत है |
छहु काण्ड मैं कहा मुनि जिन्ह सुनत पाप नसावहीँ |
परिचायउ कछु थोरहिं जिन्हकी कथा बहु मनोहरी ||
बाल्मीकि कृत धर्मग्रन्थ रामायन जौ नाउ धरे |
अघ हंत मुकुति पंथ यह सहस चतुरविस स्लोक बरे ||
मुने ! जिसके श्रवणमात्र से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं वह षष्ट काण्ड मैने वर्णित किए | जिनकी कथा अत्यंत मनोहारी है उनका यत्किंचित परिचय दिया यद्यपि उनका परिचय अत्यंत है | वाल्मीकिकृत जो धर्मग्रन्थ है उसका नाम रामायण है | यह पापों को हरण करने वाले मुक्ति के पंथ स्वरूप चौविस सहस्त्र श्लोकों द्वारा वर्णित है |
एकै मंगल नामु जहाँ एकै सबद जहँ राम |
सकल बिपति सब गति मिटै पूरन भएँ सबु काम ||
जहाँ एक मंगल नाम है जहाँ एक शब्द राम है वह समस्त विपत्तियों व् दशाओं को नष्ट करनेवाला एवं सभी कार्य पूर्ण करनेवाला है |
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