आपद काल महुँ चाहिए सासक की कुसलात |
सठता पन हठधर्मिता तबकछु काम न आत || १ ||
भावार्थ : -- संकट काल में शासक की दुष्टता व् हठधर्मिता अनपेक्षित परिस्थितियां उत्पन्न करने के लिए बाध्य करती हैं ऐसी विपरीत समय में उसे कार्य कुशलता का परिचय देना चाहिए |
इसलिए शासक कुशल होना चाहिए दुष्ट नहीं.....
निर्भिक निर्मम निरंकुस सासक की पहचान |
रजता राज कसाइया देवे जिअ करसान || २ ||
भावार्थ :-- निर्भीक,निर्मम और निरंकुश शासकों के शासन तंत्र की यही पहचान है कसाई यहाँ समृद्धि को प्राप्त कर संपन्न रहते है और किसानों की बली ली जाती है |
जिनते मीठा बोलना तिनते बोले गोलि |
जिनते बोलन गोलियां तिनते मीठे बोलि || ३ ||
भावार्थ : -- जहाँ मधुर वार्तालाप की आवश्यकता होती है वहां ये दुष्ट तोप और गोलियों से बात करते हैं | जहाँ तोप और गोलियों को बोलना चाहिए वहां ये मधुर मधुर वार्तालाप करते है |
मुख ते राम नाम रटे बिष धारी करकोष |
पाखन कर पट देइ के दुरे नहीं को दोष || ४ ||
भावार्थ :-- मुख में राम और करतल में तलवार रखने वाले ये समझ लें : --पाखण्ड के पटाच्छादन से दोष नहीं छिपा करते |
कातर पे बल जोरि के निर्मम तू जिअ लेय |
रमता पुनि पाखन करे आसन पट्टी देय || ५ ||
भावार्थ :-- रे निर्मम शासकों कातर निरीह किसानों पर तुम बल का प्रयोग कर उसके प्राण लेते हो ? अरे दुष्टों फिर आसन पट्टी देकर अपनी दुष्टता छिपाने के लिए ढोंग करते हो तुम्हारे सम्मुख लज्जा भी लज्जित हो जाएगी |
कागा देही जनमिया बाना देय मराल |
नाम धरा बनराज का चले गधे की चाल || ६ ||
बाना देय मराल : -हंस का भेस भरना
जो कर खाए कसाइ के भए सो संत महंत |
गनमान्य होई फिरैं पालन हर के हंत || ७ ||
भावार्थ : -- पाखंडवाद प्रचारित होने के कारण ही आज कसाइयों का कर खाने वाले दुष्ट संत महंत कहलाने लगे हैं, और जगत के पालन हार अन्नदाता किसान की ह्त्या करने वाले गणमान्य बनकर देश को चला रहे हैं |
ऐसे दुष्ट शासकों के कारण ही ये देश कृषि प्रधान से मांस प्रधान हो गया |
राजू : --हाँ ! मांस मट्टी की बिक्री में ये संत महंत नए नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे.....
रेह रेह सब खेह भए रक्ताक्त खलिहान |
करतारा को पूछिये चुपी रहत तब कान || ८ ||
भावार्थ : -- उद्यमियों की धृष्टता ने सोना उपजाने वाले खेतों को क्षार क्षार कर दिया , शासकों की दुष्टता ने खलिहानों को रक्त से रंजित कर दिया | दोषी कौन है ? यह प्रश्न किया जाता है तब संविधान के सभी उपबंध मौन धारण कर लेते हैं क्यों कि वह इन दुष्टों पर लागू ही नहीं होता |
लौह की न लौहार की रहिमन कहे विचार |
जो हनि मारे सीस में,ताही की तलवार || ९ ||
भावार्थ : --गोली जिसकी दोष उसका | गोली तो बन्दुक की थी, बन्दुक लोहे की थी, लोहा लोहार ने गढ़ा था |
रहीम के विचार से जिसकी बँदूक उसका दोष |
किन्तु चलाने वाले ने तो आदेश का पालन किया था
प्रश्न यह है कि बन्दुक चलाने का आदेश किसने दिया यदि देश में कोई संविधान है और शासक ने आदेश दिया तो वह तत्काल त्याग पत्र दे.....
फिरंगी जौ सीस हनै जलिया वाला काँड |
सठता तेरा राजना कहबत सोई भाँड || १० ||
भावार्थ : --अंग्रेज यदि किसी हिताकांक्षी कातर जनसमूह पर गोली चलाकर उनकी निर्ममता पूर्वक हत्या करते हैं तब दुनिया उसे जलिया वाला काला कांड कहती है | लोकतंत्र का दुष्ट शासक जब ऐसी घटना कारित करता है उसे उपद्रव कहा जाता है यह भेद भाव क्यों ?
जथातुर मिलिया नहि जो उद्दंडी को दंड |
हँसि हँसि सब कहिअहिं तासु हंता कू बरबंड || ११ ||
भावार्थ :- उद्दंडी शासक की ह्त्या होने पर लोग ताली बजाकर हत्यारे को शुरवीर के पद से विभूषित करें इससे पूर्व संविघान अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर अपराधी को यथाशीघ्र दंड दे |
जिनते मीठा बोलना तिनते बोले गोलि |
जिनते बोलन गोलियां तिनते मीठे बोलि || ३ ||
भावार्थ : -- जहाँ मधुर वार्तालाप की आवश्यकता होती है वहां ये दुष्ट तोप और गोलियों से बात करते हैं | जहाँ तोप और गोलियों को बोलना चाहिए वहां ये मधुर मधुर वार्तालाप करते है |
मुख ते राम नाम रटे बिष धारी करकोष |
पाखन कर पट देइ के दुरे नहीं को दोष || ४ ||
भावार्थ :-- मुख में राम और करतल में तलवार रखने वाले ये समझ लें : --पाखण्ड के पटाच्छादन से दोष नहीं छिपा करते |
कातर पे बल जोरि के निर्मम तू जिअ लेय |
रमता पुनि पाखन करे आसन पट्टी देय || ५ ||
भावार्थ :-- रे निर्मम शासकों कातर निरीह किसानों पर तुम बल का प्रयोग कर उसके प्राण लेते हो ? अरे दुष्टों फिर आसन पट्टी देकर अपनी दुष्टता छिपाने के लिए ढोंग करते हो तुम्हारे सम्मुख लज्जा भी लज्जित हो जाएगी |
कागा देही जनमिया बाना देय मराल |
नाम धरा बनराज का चले गधे की चाल || ६ ||
बाना देय मराल : -हंस का भेस भरना
जो कर खाए कसाइ के भए सो संत महंत |
गनमान्य होई फिरैं पालन हर के हंत || ७ ||
भावार्थ : -- पाखंडवाद प्रचारित होने के कारण ही आज कसाइयों का कर खाने वाले दुष्ट संत महंत कहलाने लगे हैं, और जगत के पालन हार अन्नदाता किसान की ह्त्या करने वाले गणमान्य बनकर देश को चला रहे हैं |
ऐसे दुष्ट शासकों के कारण ही ये देश कृषि प्रधान से मांस प्रधान हो गया |
राजू : --हाँ ! मांस मट्टी की बिक्री में ये संत महंत नए नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे.....
रेह रेह सब खेह भए रक्ताक्त खलिहान |
करतारा को पूछिये चुपी रहत तब कान || ८ ||
भावार्थ : -- उद्यमियों की धृष्टता ने सोना उपजाने वाले खेतों को क्षार क्षार कर दिया , शासकों की दुष्टता ने खलिहानों को रक्त से रंजित कर दिया | दोषी कौन है ? यह प्रश्न किया जाता है तब संविधान के सभी उपबंध मौन धारण कर लेते हैं क्यों कि वह इन दुष्टों पर लागू ही नहीं होता |
लौह की न लौहार की रहिमन कहे विचार |
जो हनि मारे सीस में,ताही की तलवार || ९ ||
भावार्थ : --गोली जिसकी दोष उसका | गोली तो बन्दुक की थी, बन्दुक लोहे की थी, लोहा लोहार ने गढ़ा था |
रहीम के विचार से जिसकी बँदूक उसका दोष |
किन्तु चलाने वाले ने तो आदेश का पालन किया था
प्रश्न यह है कि बन्दुक चलाने का आदेश किसने दिया यदि देश में कोई संविधान है और शासक ने आदेश दिया तो वह तत्काल त्याग पत्र दे.....
फिरंगी जौ सीस हनै जलिया वाला काँड |
सठता तेरा राजना कहबत सोई भाँड || १० ||
भावार्थ : --अंग्रेज यदि किसी हिताकांक्षी कातर जनसमूह पर गोली चलाकर उनकी निर्ममता पूर्वक हत्या करते हैं तब दुनिया उसे जलिया वाला काला कांड कहती है | लोकतंत्र का दुष्ट शासक जब ऐसी घटना कारित करता है उसे उपद्रव कहा जाता है यह भेद भाव क्यों ?
जथातुर मिलिया नहि जो उद्दंडी को दंड |
हँसि हँसि सब कहिअहिं तासु हंता कू बरबंड || ११ ||
भावार्थ :- उद्दंडी शासक की ह्त्या होने पर लोग ताली बजाकर हत्यारे को शुरवीर के पद से विभूषित करें इससे पूर्व संविघान अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर अपराधी को यथाशीघ्र दंड दे |
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