----- || राग-बिहाग | -----
बाँध मोहि ए प्रेम के धागे प्यारे पिय पहि खैंचन लागे |
अँखिया मोरि पियहि को निरखे औरु निरखे नाहि कछु आगे ||
निरखै ज्योंहि पिय तो सकुचै आनि झुकत कपोलन रागे |
ढरती बेला सों मनुहारत कर जोर मन मिलन छन मागे ||
दिसि दिसि निसि उपरागत जब सखि गै साँझी नभ चंदा जागे |
मिले दुइ छनहि त कर गहि चुपहि पद चापत पिया लेइ भागे ||
धरे करतल भरे पिय बैंयाँ सब लोकलाज दियो त्यागे |
बँध्यो तन मन पेम के पासु मोरे रोम रोम अनुरागे ||
चितब रहिउ कहँ पिय मोहि काहु त गिरे पलक पियहि समुहागे |
करनन्हि फूर परस प्रफूरे पैह पिया के अधर परागे ||
लगन मिले ऐसो सजन मिले एहि भा हमरे सौभागे ||
रैनी द्वार बिराजहि लेइ सुख सौभाग |
सुहासिनि मधुरिम मधुरिम गावत रहि सोहाग ||
भावार्थ = प्रिया कहती है -- देखो ( सखी )ये प्रेम के धागे मुझे प्यारे प्रीतम के पास खैंचने लगे हैं | मेरे नयन प्रीतम को ही देख रहे हैं इन्हे आगे और कुछ भी नहीं दिखाई देता || प्रीतम ने ज्योंहि मुझे देखते हुवे देखा तब लज्जावश नयन झुक आए और कपोलों को सुरागित कर दिया || ढलती हुई बेला से मनुहार करते मन ने मिलन के क्षण मांगे || संध्यावसान के पश्चात दिशा दिशा में निशा को अरुणिम करते हुवे जब नभ में चंद्रोदयित हुवा तब मिलन के दो क्षण प्राप्त हुवे तब प्रीतम ने चुपके से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे दबे पाँव ले भागे || प्रीतम ने सभी लोक मर्यादाओं का त्याग करते हुवे प्रीतम ने करतल धरे जब उन्होंने मुझे भुजाओं में भरा तब हे सखी ! तनमन प्रेम पाश के बंध गए और रोम रोम अनुराग से परिपूरित हो गए | मुझे क्यूँ देख रही थीं ? जब प्रीतम ने यह पूछा तो ये पलकें उनके सम्मुख अवनत हो गईं | प्रीतम के अधर परागों के स्पर्श को प्राप्तकर कर्णफूल जैसे प्रफुल्लित हो उठे | लग्न उदयित हुवे तो ऐसे प्रीतम मिले हे सखी यह मेरा सौभाग्य है |
----- || राग-दरबार || -----
अपनी शम्मे-रु को अब..,
मैं किस तरह अर्जे-हाल करूँ..,
शाम ज़रा स्याहे-गूँ तो हो..,
लम्हे भर को तू हिज़ाब कर..,
सिल्के-गौहरे-गुल के दस्त..,
मैँ ख्वाबे-शब विसाल करूँ.....
लो फिर हर शै हुई ज़ाहिरॉ..,
ए चाँद तेरे नूर से..,अपनी शम्मे-रु को अब..,
मैं किस तरह अर्जे-हाल करूँ..,
शाम ज़रा स्याहे-गूँ तो हो..,
लम्हे भर को तू हिज़ाब कर..,
सिल्के-गौहरे-गुल के दस्त..,
मैँ ख्वाबे-शब विसाल करूँ.....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (13-07-2018) को "लोग हो रहे मस्त" (चर्चा अंक-3031) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'