साँझ सैँदूरि जोहती पिया मिलन की रैन |
रीति के बस दिवस भयो भयो प्रीति बस नैन ||
स्वजन सोँहि बैनत गए नैन पिया के पास |
लखत लजावत पियहि मुख बिथुरी अधर सुहास ||
ना निलयन ते दूर हैं न नैनन ते दूर |
सौमुख मोरे साँवरे तापर बिरह अपूर ||
हेली मेली मेलि जूँ हेलि मिले पुनि कोइ |
मिले नहीं पर पिया सहुँ घरी मिलन की दोइ ||
अंजन कू अंजन कियो पलकनि करियो पाति |
नैना ठहरे बावरे बैने हिय की बाति ||
भावार्थ : - सिन्दूरमयी संध्या प्रियतम के मिलन-रात्रि की प्रतीक्षा में थी दिवस रीतियों के अधीन तो प्रिया के नेत्र प्रीति के अधीन हो चले थे || १ || स्वजनों से वार्तालाप करते जब प्रीतिपूरित नेत्र प्रियतम के पास गए तब प्रियतम के लज्जाशील मुख-मंडल को देखकर प्रिया के अधरों पर एक मंद हास बिखर गई || २ || न ह्रदय से दूर थे न ही नेत्रों से दूर थे प्रियतम सम्मुख उपस्थित थे तथापि वियोग भरपूर था || ३ || संगी-साथी मेल मिलाप कर लौटते तो प्रियतम को फिर कोई और पुकार लेता इस प्रकार दिवसभर में प्रियतम को प्रिया से मिलाप हेतु दो क्षण तक नहीं मिले || ५ || प्रीति की अधीनता ने काजल को मसि व् पलकों को पत्र में परिणित किया और बावरे नैन अंतर्मन की बातों को व्यक्त करते चले गए ( जिसे न जाने कब प्रियतम ने पढ़ लिया )|
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-07-2018) को "अब तो जम करके बरसो" (चर्चा अंक-3028) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जनाब सरफराज हुसैन ने उर्दू मे लिखा।है बहुत खूब।
ReplyDeleteईश्वर के लिए इससे बढिया प्रार्धना अभी तक नही पढी धी ।
सादर