Thursday 6 December 2018

----- ॥पद्म-पद ३१॥ -----,

 ----- || राग-      || -----
नीर भरे भए नैन बदरिया..,
चरन धरत पितु मातु दुअरिआ..,
अलक झरी करि अश्रु भर लाई बरखत भई पलक बदरिया..,
बूँदि बूंदि गह भीजत आँचर ज्यौं पधरेउ पाँउ पँवरिआ..,
घरि घरि बिरमावत भँवर घरी  कंकरिआ सहुँ भरी डगरिआ..,
नदिया सी बहति चलि आई बिछुरत पिय कि प्यारि नगरिया..,
 दरस परस के पयस प्यासे तट तट भयऊ घट नैहरिआ..,
 घट घट पनघट आनि समाई सनेह सम्पद गही अँजुरिआ....


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गगण में घण साँवरो बिराज्यौ
 गरज गरज गह गह घनकारौ बादलियो घन बाज्यौ
कारौ काजलियो सों साज्यौ 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (08-12-2018) को "शहनाई का दर्द" (चर्चा अंक-3179) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपके दोहे पछले कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ और आपके लेखन की प्रशंसक हूँ| इस ब्लॉग की जानकारी नहीं थी| आज चर्चा मंच के माध्यम से यहाँ तक पहुँच पाई| ब्लॉग फ़ौलो भी किया है| लिखती रहें, बहुत अच्छा लिखती हैं|

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