Tuesday 25 September 2012

----- ।। अशोक वाटिका ।। -----

जनसाधारण एक ऐसा अर्थकर वटवृक्ष है जिसे  शासन उपजाऊ
व उत्कृष्ट उर्वरा से यदि पोषित करे तो यह एक  फलदार वृक्ष में
परिवर्तित हो सकता है किन्तु वर्त्तमान सन्दर्भ में  उक्त उर्वरा में
भ्रष्टाचार के कृमि किलबिला रहे हैं तथा भ्रष्टाचारीयों के दुर्गन्ध
से सड़ान्ध भी उत्पन्न हो गई है.....


धर्मरहित मनुष्य वह निरंकुश शक्ति है जिसके  द्वारा  श्रष्टि  का
काल तक संभव है.....


व्यक्तकृत लक्ष्मा, वाक्, गणित, तंत्र आदि के व्यक्तिकरण से पूर्व
विषय विशेष का गहन अध्ययन उत्कृष्ट ज्ञान का सृजन करता है.....


प्रत्येक आविष्कार मानव कल्याण हेतु सतत् साधना, ज्ञान एवं
लगन का परिणाम है जिसका दुरुपयोग  दुष्कृत्य  की  श्रेणी है.....


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