दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा एवं दुरालाप
एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त
किसी पुरुष अथवा किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की
प्रवृत्ति में दुर्वासना की धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त सम्भोग के अभिमत का
दुराशय रखते हुवे, दूषित दृष्टि आक्षेपित करते हुवे , अंगो द्वारा दूषित भाव भंगिमा
प्रदर्शित करते हुवे, दुरालाप प्रसारित करते हुवे अनभिमत प्रतिपक्ष को मानसिक रूप से उत्पीड़ित
करता हो/ करते हों ऐसे दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा या दुरालाप को
अपराध कहा जाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- ऐसी सभी दुष्क्रियाएं एक साथ या कोई एक दुष्क्रिया के अनुषंगिक अन्य
दुष्क्रियाए हो सकती हैं
२ : -- चूँकि परिभाषा में 'दूर' एवं 'दुष' शब्दों का प्रयोग हुवा है ये शब्द स्वयं सिद्ध है
है की क्रयाएँ उत्पीडित पक्ष की सहमति के विरुद्ध हुई है ॥
दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रांत
एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त किसी पुरुष अथवा
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की प्रवृत्ति में दुर्वासना की
धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त, सम्भोग के अभिमत का दुराशय रखते हुवे,
वस्त्राच्छादित जननेंद्रिय सहित अंग प्रत्यंग ( शरीर के विभिन्नअवयव जैसे हस्त, पाद,
कर्ण, नासिका, मुख आदि) का प्रयोग कर अनभिमत प्रतिपक्ष स्त्री/स्त्रियों के आच्छादित
उपस्थ एवं उरस क्षेत्र सहित अंग प्रत्यंग का स्पर्शन, दापन, घर्षण, मर्दन या इसके समकक्ष
अन्य क्रियाएं से व्यतिक्रांत करते हुवे शारीरिक एवं मानसिक रूप से उत्पीड़ित करता है/
करते है तो वह दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रान्त का अपराध कहलाएगा एवं ऐसी व्यतिक्रान्ति
में यदि बल का प्रयोग हुवा हो तो वह बलातंग व्यतिक्रान्ति कहलाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत
हो सकें ।
२ : -- यदि कोई पुरुष आच्छादित जननेंद्रिय से किसी स्त्री/स्त्रियों के आच्छादित
उपस्थ एवं उरस क्षेत्र सहित अंग प्रत्यंग का स्पर्शन, दापन, घर्षण,मर्दन या
इसके समकक्ष अन्य क्रियाएं से व्यतिक्रांत करते हुवे स्खलित होकर चित्त-
निवृत्ति होता है तो कृत्य की प्रकृति को अपेक्षाकृत अधिक गंभीर हो जाती है ।
३: -- किसी स्त्री या किन्हीं स्त्रियों की चित्त-विकृति की अवस्था, संज्ञान हीनता,
संज्ञाशुन्य एवं मत्तता की अवस्था को उसका/उनका अभिमत नहीं माना
जाएगा ।
४: -- ऐसी स्थिति जब कि पीड़ाकार एवं पीड़ित समान लिंग धारण करते हो तो
वह कृत्य अप्राकृति यौनापकृति की श्रेणी के कृत्य होंगे ।
दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण
संग, संगत, संसर्ग, संपर्क, : -- नर एवं मादा का लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया
के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति संभव है ।
मनुष्य जाति में संग, संगत, संसर्ग, संपर्क, संभोग : -- विषयवासना एवं कामोद्दीपन के वशीभूत
स्त्री एवं पुंस में परस्पर लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया
के फलस्वरूप मनुष्य की उत्पत्ति संभव है ॥
'बलात्संग' दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + संग
बलात का अर्थ है बलपूर्वक + संग का अर्थ है सम्भोग
अर्थात बलपूर्वक किया गया सम्भोग, संगत, संसर्ग
बलातभिमर्षण भी दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + अभिमर्षण
बलात का अर्थ है बल पूर्वक + अभिमर्षण का अर्थ है आक्रमण, सम्भोग
स्पर्शण, बलातस्त्रीकरण अर्थात बलपूर्वक किया गया संभोग
टिप्पणी : - संस्कृत भाषा में पुरुष की जननेन्द्रिय को कामायुध भी कहा जाता है
अर्थात -- काम+ आयुध, अस्त्र
मनुष्य जाति में सम्भोग एक ऐसी क्रिया है जिसमे पुरुष पक्ष को बल की
आवश्यकता होती है किन्तु स्त्री पक्ष को बल की आवश्यकता नहीं होती
"स्त्री के अभिमर्षण/संगति में अनभिमत की अवस्था के विरुद्ध बल का प्रयोग
कर पुरुष द्वारा मैथुन या लैगिकसंयुग्मन करने की क्रिया 'बलात्संग' या 'बला-
तभिमर्षण' है"
" बलात्संग अथवा बलातभिमर्शण एक स्त्री की अस्मिता पर किया गया
आघात है इस दुष्कृत्य से उत्पीड़ित स्त्री को अपने स्त्रीत्व पर पश्चाताप
होने लगता है"
दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण किसी पुरुष अथवा
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की प्रवृत्ति में दुर्वासना की
धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त, सम्भोग के अभिमत का दुराशय रखते हुवे, संसर्ग हेतु अनभिमत की अवस्था में प्रतिपक्ष स्त्री/स्त्रियों के अनाच्छादित स्त्रीन्द्रिय को पुरुषेन्द्रिय का प्रयोग कर
बलात स्पर्श करता है अथवा संधान करते हुवे सम्भोग करता है ऐसा दुर्वासना जनित कृत्य बलात्संग
अथवा बलातभिमर्षण कहलाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत हो
सकें ।
२ : -- किसी स्त्री या किन्हीं स्त्रियों की चित्त-विकृति की अवस्था, संज्ञान हीनता,
संज्ञाशुन्य एवं मत्तता की अवस्था को उसका/उनका अभिमत नहीं माना
जाएगा ।
३ : -- बलात्संग या बलातभिमर्षण के अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक नहीं
है कि समागम हो केवल स्त्रीन्द्रिय में पुरुषेन्द्रिय का स्पर्श ही पर्याप्त है कारण कि
एक छह माह की आयु अवस्था या ऐसी ही अवस्था के समकक्ष बालिका के
जनेन्द्रिय में एक युवा पुरुष अथवा प्रौड़ अथवा वृद्ध पुरुष की जननेद्रिय का संधान
दुष्कर है वैसे भी स्पर्श मात्र से ही एक स्त्री का मानसिक बलात्संग हो चुका होता है ।
४ : -- यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है कि पुरुष स्खलित होकर चित्त निवृत्त हुवा की नहीं
यहाँ उत्पीड़ित की मानसिकता ही प्रधान होगी ।
क्रमश:.....
एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त
किसी पुरुष अथवा किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की
प्रवृत्ति में दुर्वासना की धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त सम्भोग के अभिमत का
दुराशय रखते हुवे, दूषित दृष्टि आक्षेपित करते हुवे , अंगो द्वारा दूषित भाव भंगिमा
प्रदर्शित करते हुवे, दुरालाप प्रसारित करते हुवे अनभिमत प्रतिपक्ष को मानसिक रूप से उत्पीड़ित
करता हो/ करते हों ऐसे दुर्वासना जनित कुदृष्टिनिपात, अंग भंगिमा या दुरालाप को
अपराध कहा जाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- ऐसी सभी दुष्क्रियाएं एक साथ या कोई एक दुष्क्रिया के अनुषंगिक अन्य
दुष्क्रियाए हो सकती हैं
२ : -- चूँकि परिभाषा में 'दूर' एवं 'दुष' शब्दों का प्रयोग हुवा है ये शब्द स्वयं सिद्ध है
है की क्रयाएँ उत्पीडित पक्ष की सहमति के विरुद्ध हुई है ॥
दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रांत
एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के प्रति अपवादित अवस्था के अतिरिक्त किसी पुरुष अथवा
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की प्रवृत्ति में दुर्वासना की
धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त, सम्भोग के अभिमत का दुराशय रखते हुवे,
वस्त्राच्छादित जननेंद्रिय सहित अंग प्रत्यंग ( शरीर के विभिन्नअवयव जैसे हस्त, पाद,
कर्ण, नासिका, मुख आदि) का प्रयोग कर अनभिमत प्रतिपक्ष स्त्री/स्त्रियों के आच्छादित
उपस्थ एवं उरस क्षेत्र सहित अंग प्रत्यंग का स्पर्शन, दापन, घर्षण, मर्दन या इसके समकक्ष
अन्य क्रियाएं से व्यतिक्रांत करते हुवे शारीरिक एवं मानसिक रूप से उत्पीड़ित करता है/
करते है तो वह दुर्वासना जनित अंग व्यतिक्रान्त का अपराध कहलाएगा एवं ऐसी व्यतिक्रान्ति
में यदि बल का प्रयोग हुवा हो तो वह बलातंग व्यतिक्रान्ति कहलाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत
हो सकें ।
२ : -- यदि कोई पुरुष आच्छादित जननेंद्रिय से किसी स्त्री/स्त्रियों के आच्छादित
उपस्थ एवं उरस क्षेत्र सहित अंग प्रत्यंग का स्पर्शन, दापन, घर्षण,मर्दन या
इसके समकक्ष अन्य क्रियाएं से व्यतिक्रांत करते हुवे स्खलित होकर चित्त-
निवृत्ति होता है तो कृत्य की प्रकृति को अपेक्षाकृत अधिक गंभीर हो जाती है ।
३: -- किसी स्त्री या किन्हीं स्त्रियों की चित्त-विकृति की अवस्था, संज्ञान हीनता,
संज्ञाशुन्य एवं मत्तता की अवस्था को उसका/उनका अभिमत नहीं माना
जाएगा ।
४: -- ऐसी स्थिति जब कि पीड़ाकार एवं पीड़ित समान लिंग धारण करते हो तो
वह कृत्य अप्राकृति यौनापकृति की श्रेणी के कृत्य होंगे ।
दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण
संग, संगत, संसर्ग, संपर्क, : -- नर एवं मादा का लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया
के फलस्वरूप जीवन की उत्पत्ति संभव है ।
मनुष्य जाति में संग, संगत, संसर्ग, संपर्क, संभोग : -- विषयवासना एवं कामोद्दीपन के वशीभूत
स्त्री एवं पुंस में परस्पर लैंगिक संयुग्मन जिसके द्वारा संसेचन क्रिया
के फलस्वरूप मनुष्य की उत्पत्ति संभव है ॥
'बलात्संग' दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + संग
बलात का अर्थ है बलपूर्वक + संग का अर्थ है सम्भोग
अर्थात बलपूर्वक किया गया सम्भोग, संगत, संसर्ग
बलातभिमर्षण भी दो शब्दों का संयुग्मन है ----- बलात + अभिमर्षण
बलात का अर्थ है बल पूर्वक + अभिमर्षण का अर्थ है आक्रमण, सम्भोग
स्पर्शण, बलातस्त्रीकरण अर्थात बलपूर्वक किया गया संभोग
टिप्पणी : - संस्कृत भाषा में पुरुष की जननेन्द्रिय को कामायुध भी कहा जाता है
अर्थात -- काम+ आयुध, अस्त्र
मनुष्य जाति में सम्भोग एक ऐसी क्रिया है जिसमे पुरुष पक्ष को बल की
आवश्यकता होती है किन्तु स्त्री पक्ष को बल की आवश्यकता नहीं होती
"स्त्री के अभिमर्षण/संगति में अनभिमत की अवस्था के विरुद्ध बल का प्रयोग
कर पुरुष द्वारा मैथुन या लैगिकसंयुग्मन करने की क्रिया 'बलात्संग' या 'बला-
तभिमर्षण' है"
" बलात्संग अथवा बलातभिमर्शण एक स्त्री की अस्मिता पर किया गया
आघात है इस दुष्कृत्य से उत्पीड़ित स्त्री को अपने स्त्रीत्व पर पश्चाताप
होने लगता है"
दुर्वासना जनित बलात्संग या बलातभिमर्षण किसी पुरुष अथवा
किन्हीं पुरुषों द्वारा किसी स्त्री अथवा किन्हीं स्त्रियों के प्रति चित्त की प्रवृत्ति में दुर्वासना की
धारणा से युक्त विषय इन्द्रियों द्वारा उद्दीप्त, सम्भोग के अभिमत का दुराशय रखते हुवे, संसर्ग हेतु अनभिमत की अवस्था में प्रतिपक्ष स्त्री/स्त्रियों के अनाच्छादित स्त्रीन्द्रिय को पुरुषेन्द्रिय का प्रयोग कर
बलात स्पर्श करता है अथवा संधान करते हुवे सम्भोग करता है ऐसा दुर्वासना जनित कृत्य बलात्संग
अथवा बलातभिमर्षण कहलाएगा ।
स्पष्टीकरण १ : -- जननेंद्रियों के आच्छादन से तात्पर्य ऐसी आवृति जिससे अंगप्रत्यंग आवृत हो
सकें ।
संज्ञाशुन्य एवं मत्तता की अवस्था को उसका/उनका अभिमत नहीं माना
जाएगा ।
३ : -- बलात्संग या बलातभिमर्षण के अपराध को गठित करने के लिए आवश्यक नहीं
है कि समागम हो केवल स्त्रीन्द्रिय में पुरुषेन्द्रिय का स्पर्श ही पर्याप्त है कारण कि
एक छह माह की आयु अवस्था या ऐसी ही अवस्था के समकक्ष बालिका के
जनेन्द्रिय में एक युवा पुरुष अथवा प्रौड़ अथवा वृद्ध पुरुष की जननेद्रिय का संधान
दुष्कर है वैसे भी स्पर्श मात्र से ही एक स्त्री का मानसिक बलात्संग हो चुका होता है ।
४ : -- यह तथ्य महत्वपूर्ण नहीं है कि पुरुष स्खलित होकर चित्त निवृत्त हुवा की नहीं
यहाँ उत्पीड़ित की मानसिकता ही प्रधान होगी ।
क्रमश:.....
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