Thursday, 7 March 2013

-----।। नारी नयन पीर भरी नीर भरी उरसीज ।। -----


आदि काल से लेकर विद्यमान समय तक नारी, पुरुषो के लिए सदैव उपभोग की
वस्तु ही रही , कहीं उसकी सहमति से तो कहीं असहमति से..,

विवाह क्या है ??

विवाह एक  ऐसी  पारिवारिक  संस्था है जिसके अंतर्गत एक स्त्री एवं एक पुरुष,
स्व धर्म-विषयक  विचारों  का अनुसरण व सामाजिक संस्कारों एवं उसके द्वारा
स्थापित प्रथाओं को अंगीकृत करते हुवे दाम्पत्य सूत्र में आबद्ध होते हैं..,

विवाह संस्था का उद्देश्य परस्पर शारीरिक शुभाशुभ सम्बन्ध स्थापित कर नव
 जीवन के सृजन द्वारा सृष्टि के संचालन में रचनात्मक सहयोग करना है..,

प्रस्तुत बलात्कार निरोधक अधिनियम में १८ वर्ष से  न्यून स्त्री से सहमति पूर्वक
शारीरिक संबंधों का उद्देश्य क्या है??

केवल  केवल  और  केवल  स्त्री  की  देह  का पुरुषों के द्वारा उपभोग तो क्या यह
जीवन केवल उपभोग के हेतुक है??

अत: यह अधिनियम बलात्कार का निरोधक तो नहीं किन्तु  पुरूषों के कुकृत्यों
का कवच मात्र है..,

स्वतत्रता  प्राप्ति के  पश्चात  नव  निर्मित संविधान के वैधानिक उपबंधों में हिन्दू
विवाह  अधिनियम  १९५५  के अंतर्गत विवाह की आयु सीमा स्त्री हेतु न्यूनतम
१६ वर्ष एवं परुषों हेतु १८ वर्ष निश्चित की गई..,

इधर जनता को संतुष्ट करने के लिए बहुंत से तर्क दिए गए, जो तर्क प्रमुख था
उसका  आधार  वैज्ञानिक  था जिसके  अंतर्गत  यह कहा गया कि १८ वर्ष से
 न्यून आयु अवस्था की  महिला, शारीरिक एवं मानसिक रूप से गर्भ धारण
करने  एवं  उससे  उत्पन्न सन्तति  के  दायित्व का  निर्वहन  करने में सक्षम
हो..,

अब  यदि  स्त्री-पुरुष  के  विवाह  पूर्व  संबध  जबकि  वह  वयस्कता कि आयु से
न्युनावस्था  कि  स्त्री से स्थापित हो, के फलस्वरूप स्त्री गर्भधारण करती है और
इस  गर्भ  से  कोई  सन्तति  उत्पन्न  हो जाए  तो  क्या उसके भरण-पोषण का
दायित्व सरकार लेगी??.....


1 comment:

  1. बहुत ही सार्थक एवं विचारणीय प्रस्तुति नीतू जी.

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