राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की पाठशाला का विद्यार्थी बनने हेतु
कठिन प्रतियोगी प्रवेश परीक्षा देकर विभिन्न विषय-श्रेणी में
प्रावीण्यता के सह उत्तम प्राप्तांक के प्रमाण पत्र की आवश्यकता
होती है, यहाँ कोई 'पीछे' का द्वार नहीं है..,
ये माहात्मा गांधी की पाठशाला है गोद नहीं है जो मुंह में अंगूठा
रखे और जा कर बैठ गए..,
ये कोई 'कुर्सी' भी नहीं है कि ढाई तिन सौ 'व्यक्तियों' के उत्साहित
करने पर जाकर बैठ गए..,
मोहन दास करम चन्द्र गांधी की पाठशाला कोई खिलौना भी नहीं है
की इठला कर 'मैया में तो "चन्द्र' खिलौना लेहूँ" कह उंगली रख दी
और मैया ने दिला दिया.....
सही फरमाया है आपने नीतू जी :))
ReplyDeleteवाह! बिल्कुल सच..
ReplyDeleteअखंड सत्य नीतू जी
ReplyDeleteअरुन शर्मा
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