Saturday 22 July 2017

----- ॥ टिप्पणी १२ ॥ -----

>> थोड़े से धन में संपन्न होना भी एक प्रकार की कुशलता है, हमारे पास में एक सब्जी वाली है जो प्रतिदिवस १५०० रु से अधिक लाभार्जित करती है किन्तु वह संपन्न नहीं है | हमारे देश में आधी निर्धनता इसलिए है क्योंकि उन्हें थोड़े से धन में सम्पन्न होना नहीं आता.....
>>  ये जो भी है भारत का नहीं है, भारत का खानपान क्रूरता से नहीं अपितु अपनी सात्विकता से पहचाना जाता है इसलिए यह अतुल्य है..... लखनऊ का नाम लखनऊ इस हेतु है क्योकि यह रामानुज लक्ष्मण की नगरी है लक्ष्मण का तत्भव रूप लखन है.....

>> शुद्ध भाषा साहित्य का प्रथम लक्षण है, मिलावट मौलिकता व् विशिष्टता का हरण कर लेती है
यदि हम अपने जीवन में शुद्धता की अभिलाषा करते हैं तब हमारी भाषा में भी शुद्धता हो

शेक्सपियर के साहित्य ने कदाचित अंग्रेजी को प्रचारित व् प्रसारित किया, साहित्य से भाषा का प्रचार-प्रसार होता है मिलावट से नहीं.....
>> भारतीय संविधान के अनुसार न्यायपालिका का कार्य न्याय व् निर्णय करना है नियम बनाना अथवा निर्देश देना नहीं, वह अपने सीमाओं का अतिक्रमण न करे | प्रधानमन्त्री विधिक प्राधिकारों का दुरुपयोग करते हुवे शाब्दिक आतंक से जनमानस को भयभीत कर देश में आतंरिक अशांति को उत्प्रेरित कर रहे हैं | अहिंसा परम धर्म है प्रधानमंत्री को यह ज्ञात रहे और धर्म की रक्षा हेतु जनमानस को भयभीत न करे, वह अपने संवैधानिक पद की गरिमा बनाए रखें.....

राजू : - हाँ ! अब तो मेरे को आत्मरक्षा करने में भी डर लगने लगा है.....

चीन की मीडिया ऐसा बोलती है : - तुम्हारी माँ ने नियम पालन करना सिखाया नहीं क्या ?'
अबके फिर बोले तो उसको उत्तर देना 'इतनी बाताँ तो म्हारे देस की गृहिणिया अपने खसम की ना सुनें तेरे जैसे पडोसी की तो क्या सुनेंगी' कहती हैं ये  बाबा आदम वाले जमाने के नियम तू ही पालन कर म्हें तो कोणी करूँ 
और हाँ ! 'राकेट साइंस तो वे रोटी बनाते बनाते पढ़ लेती हैं, जुझारू बाजे तो सजानों बी आवे और बजानों बी.....मसाइल तो वे ऐसा चलाती हैं कि अपना क्या तुम्हारे राष्ट्र के पति का सिर फोड़ दें..... 

>> कट्टरता के नाम पर आप अपने विचार दूसरों पर लाद रहें हैं, कट्टरपंथ की आड़ में हिंसा करने की छूट किसी को भी नहीं होनी चाहिए | नेताओं की अहिंसा के सन्दर्भ में अपनी ही परिभाषा है जबकि अहिंसा का वास्तविक अर्थ है 'प्राणी मात्र के जीवन की रक्षा करना.....'

>> इतिहास में यह अवश्य उल्लेखित होगा कि जब भारत आपदाओं से त्राहि त्राहि कर रहा होता था तब सत्ता के लालची उस स्वतंत्रा के पर्व को मनाने  में लीन रहते थे जो उसे कभी मिली ही नहीं.....

>> गले मिलते हुवे एक गले से दो-गले होकर एक दूसरे की पीठ में छुरा घोंपने से तो गाली ही अच्छी है.....

>> परे  सीस  को  आपदा  जो  को  होत  सहाए  |
      ताहि मझारी लेख लिपि हितु संधी कहलाए || १ ||

      भरे सदन सिँह नाद किए नाम धरे हितु जेत |
      हित  हेतु उलेखित कहा  संधी  किए ता सेत || २ ||

भावार्थ :-- किसी राष्ट्र के आपदापन्न  होने पर जो कोई अन्य राष्ट्र सहायक की भूमिका में हो तब उनके मध्य एक लेख पत्र निष्पादित किया जाता है जिसे मैत्री-संधी कहते हैं |  प्रधान मंत्री एक बात बताएं भरे सदन में 'सिंह नाद'  करते हुवे आपके विदेश मंत्री ने जितने राष्ट्रों के मित्र होने का दम्भ भरा था, उनके मध्य निर्दिष्ट उद्देश्यों का उल्लेख करती कोई मैत्री संधी की है ? अथवा आपके सदन में सभी कुछ हवाहवाई है.....

>> 'मैं और मेरा'  ये दो दोष मनुष्य की मानसिकता को संकीर्ण करते है,  इस संकीर्णता से मुक्त होकर अपने  राष्ट्र सहित समस्त विश्व के कल्याण हेतु हमें विचारशील रहना चाहिए यह राष्ट्रीय-चेतना का भी प्रथम लक्षण है.....
>> 'मुख में राम बगल में इस्लाम' भारत के ये नेता-मंत्री प्रथम दृष्टया इस्लाम के अघोषित अनुयायी प्रतीत होते हैं, ये भारत के टुकड़े टुकड़े कर छोटे-छोटे इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं.....

>> हम और आप ही इस देश के नागरिक हैं, विडम्बना यह है कि सत्ता के लालची लोग हमें एक होने नहीं देते | जनमानस में राष्ट्रीय चेतना का अभाव है इसकी पुनरावृत्ति न हो इस हेतु विद्यमान समय में राष्ट्र को एक जन-जागृति की आवश्यकता है.....
>> ये नेता भी गिरगिट के जैसे रंग बदलते हैं कुछ समय पहले यही प्रधानमंत्री विदेशों में 'विदेशों में जितना मेरा सम्मान हुवा उतना किसी नेता का नहीं हुवा'  कहते पाए गए थे.....

>> स्याही के सुर्खे-रंग को तहे-दस्त पे हिना कर देखो..,
   तख्खयूल के अक़्स को फिर सफ़हे-आइना कर देखो.....

>> कुछ लोग भारत को अंतरराष्ट्रीय धर्मशाला बनाने पर तूले हैं, ऐसी धर्मशाला जहाँ  मुसलमान, अंग्रेज, चीनी, अमेरिकन, जर्मनी खाएं-पिएँ  और आनंद पूर्वक रहें किन्तु हिन्दू न रहें.....

>> पवित्र ग्रंथों के सार में ईश्वर होते हैं, भारत का संविधान के सार में अपवित्र नेता क्यों हैं.....?

>> भगवन पाहि पहुँचावै दरसावत सद पंथ |
धर्मतस सीख देइ सो जग में पावन ग्रन्थ || 
भावार्थ : - ग्रन्थ मनुष्य का मार्गदर्शन करते हुवे उसे ईश्वर के पास पहुंचाता हो | जो ग्रन्थ धर्म का अनुशरण कर मनुष्य को सत्य, दया, दान के सह त्याग व् तपस्या की शिक्षा देता हो वह ग्रन्थ पवित्र होता है.....
>> गौरक्षकों का प्रतिरोध का ढंग यद्यपि  बुरा है भगत सिंग के जैसे उनका  आशय बुरा नहीं है, जबकि गौ हत्यारों का आशय बुरा है अमानवीय है.....
मनुष्य एक शक्तिशाली प्राणी है वह मनुष्योचित धर्म की मर्यादा में रहे.....
इस हेतु  : -- दंड की व्यवस्था वहां भी और यहां भी हो.....

>> मनुष्य को यह अधिकार किसने दिया कि वह धरती के पेड़ों को नोच दे और उसके जीव-जंतुओं का रक्तपान कर उनकी खाल खा जाए, उनपर इसलिए क्रूरता करे कि वह निर्बल व् निरीह हैं.....? उनके मुख में वाणी नहीं है.....?

>> 'यतो धर्मस्ततो जय:'
अर्थात : - जहाँ धर्म होता है वहां जीत होती है'
सर्वोच्च न्यायालय का यह आदर्श वाक्य है
धर्म किसे कहते हैं..... ? सर्वोच्च न्यायालय जनमानस को बताए.....

>> वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेसियों का बनाया संविधान भगत सिंग की मृत्यु दंड को भी सही कहता..... स्वतंत्रता के नाम पर कोई मनुष्य को कैसे मार सकता है भई.....


No comments:

Post a Comment