Friday 28 July 2017

----- || दोहा-एकादश 9 || -----

बथुरत पूला आपना, बँधेउ पराए पूल | 
भरम जाल भरमाइ के  बिनसत गयउ मूल || १ || 
भावार्थ : --भारत वस्तुत: चार धार्मिक समुदायों के कुटुंब का राष्ट्र है, यह  कुटुंब तब बिखर गया जब इसमें  उस पराए कुटुंब को भी सम्मिलित किया गया जिसने उसे दास बनाया  था  |  तत्पश्चात इन्हें अपना कहते हुवे एक भ्रम का जाल बिछाया गया जिसके बहकावे में आकर भारत की मौलिकता नष्ट-भ्रष्ट होती चली गई |

साख बिरानि राख करत, करत मूल निर्मूल |
जग अनभै अधिकार रचत मौलिकता गए भूल || २ || 
 भावार्थ : -- अपने मूल को निर्मूल कर अपनी मौलिकता को छिन्न-भिन्न करके  एक पराई साम्प्रदायिक शाखा की रक्षा करते हुवे ऐसा अधिकार परिकल्पित किया गया जो विश्व में किसी  राष्ट्र के संविधान ने नहीं किया था  | 


बिरावन भयउ बहोरी  सासन के अधिकारि | 
अखिल जगत कर देस जौ कतहुँ दरस नहि पारि || ३ || 
भावार्थ :- जो राष्ट्र निर्माण के मूलभूत नहीं हैं उसे शासन करने का अधिकार प्राय: विश्व के किसी भी राष्ट्र ने नहीं दिया है | जो न केवल राष्ट्र निर्माण के मूलभूत नहीं हैं जिन्होंने उसे दास भी बनाया, भारत के संविधान ने ऐसे  साम्राज्य वादी समुदाय को पुनश्च शासन करने का अधिकार दे दिया |

 लागि होत भयो पुनि सो  संविधान निरमाए |  
अपने अपने देस में सब बिधि करत पराए || ४ || 
भावार्थ : -- ततश्चात एक दिन निर्मित होकर वह संविधान रातोंरात देश पर लागू भी हो गया | लोगों को पता भी नहीं चला कि उस संविधान में देश के मूलनिवासियों को अधिकारों से विपन्न कर पराया कर दिया गया था |

सीँउ भए बिनु सीँउ भयो दिए पट बिनहि द्वार | 
यह मूरख का देस कह राज करे संसार || ५ || 
भावार्थ : -- सीमाओं के होते हुवे भी यह देश सीमा से विहीन रहा क्यों कि इसमें एक ऐसे द्वार का निर्माण किया गया जिसमें पट ही नहीं थे |  उस द्वार पर अंकित किया गया कि यह मूर्खों  का  देश है यहाँ कोई भी कभी भी कहीं भी आ-जा सकता है और इसपर शासन भी कर सकता हैं |

एक तो भारा आपना भयऊ  भारि अपार | 
बहुरि संभारन कांधरा दियो परायो भार || ६ ||   
भावार्थ : --चार सम्प्रदायों के कुटुम्ब के देश का अपना भार ही भारी-भरकम था फिर उस के कन्धों पर पराए सम्प्रदाय के पालन-पोषण का भार भी लाद दिया गया |

बोहनहारा हारिया बोह परायो बोह | 
दारिद रेखा बीच ते नीच भया ता सोंह || ७ || 
भावार्थ : -- अपने दायित्व  के साथ दुसरों का भारी भरकम दायित्वों को वहन करने के  कारण  इस देश का कंधा शिथिल होकर क्लांत गया जिसे निर्धन रेखा के मध्य में स्थित होना था वह कुटुम्ब निर्धन रेखा के नीचे आ गया |

प्राग समउ ए भारत भुइ चहुँ दिसि लिए बिस्तार | 
सुगठित एक छत रूप दिए अन्तर देसिक धार || ८ || 
भावार्थ : - प्राचीन समय में भारत का भूखंड चारों दिशाओं में विस्तार को प्राप्त होकर सुव्यवस्थित राजतांत्रिक क्षेत्रों की लघु ईकाइयों का समूह था | राष्ट्रीयता की धारा के इस अंतर विस्तार को सुसंगठित कर तदनन्तर एक प्रभुसत्तात्मक स्वरूप दिया गया |

एवम एकीकार भुइँ करि भए भारत गनराज |
स्वारथ परायन हेतु पुनि करिअब बहुंत विभाज || ९ ||  

भावार्थ : - इस प्रकार राज्य की इन लघु इकाइयों एवं इसके निवासियों को एक सीमा रेखा में आबद्ध करते हुवे इसके विस्तारित भूखंड का एकीकरण किया गया तदनन्तर प्रभुसत्ता संपन्न वैधानिक गणराज्य का स्वरूप धारण कर विश्व में यह एक राष्ट्र के रूप में स्थापित हुवा | किन्तु अपना हित सिद्ध करने वाले स्वार्थी तत्त्वों के  कारण यह वर्तमान में खंड-खंड हो गया |

पूल परयो हेतु पुनि खींचे पुनि एक रेख | 
बसा बसाया बासना दे तिन पेटे लेख || १० || 
भावार्थ : -- एक राष्ट्र को निर्मित करने में पीढ़ियों का रक्त लगता है; इस यथार्थ की उपेक्षा करते हुवे पराए देश के एक पराए समुदाय के लिए पुनश्च एक रेखा खिंच कर भारत को खंड-खंड करते हुवे एक सुव्यवस्थित राष्ट्र उनके नाम कर दिया |

अब लगि को न जनाइया भंजत  भारत सेतु | 
करतब लहुरा देस किए खंड खंड किन हेतु || ११ || 
भावार्थ : - भारत की सीमाओं का विभंजन करते इस विशाल राष्ट्र को लघुता प्रदान करने के कारण क्या थे | इसे किस हेतु खंड-खंड किया यह अब तक किसी भारतीय को ज्ञात नहीं है |

 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-07-2017) को "तरीक़े तलाश रहा हूँ" (चर्चा अंक 2681) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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