Monday 4 June 2018

----- ॥ दोहा-पद 12॥ -----

                 ----- || राग-दरबार || -----

       मङ्गलम् भगवान विष्णु मङ्गलम् गरूड्ध्वज: | 
         मङ्गलम् पुण्डरिकाक्ष्: मङ्गलाय तनोहरि: || 

दीप मनोहर दुआरी लगे चौंकी अधरावत चौंक पुरो |
हे बरति हरदी तैल चढ़े अबु दीप रूप सुकुँअरहु बरो ||
पिय प्रेम हंस के मनमानस रे हंसिनि हंसक चरन धरो |
रे सोहागिनि करहु आरती तुम भाल मनोहर तिलक करो ||


चलिअ दुलहिनि राज मराल गति हे बर माल तुम कंठ उतरो ||
हरिन अहिबेलि मंडपु दै मंगल द्रव्य सोहि कलस भरो ||
जनम जनम दृढ़ साँठि करे हे दम्पति सूत तुम्ह गाँठि परो |
भई हे बर सुभ लगन करि बेला परिनद्ध पानि गहन करो |
अगनि देउ भए तुहरे साखी लेइ सौंह सातौं बचन भरो ||


बर मुँदरी गह दान दियो हे सुभग सैन्दूर माँगु अवतरो |
जीवन संगनि के पानि गहे हे बर सातहुँ फेरे भँवरो ||
हे गनेसाय महाकाय तुम्ह भर्मन पंथ के बिघन हरो  |
बरखा काल के घन माल से हे नभ उपवन के सुमन झरो ||


शामो-शम्मे-सहर के शबिस्ताने रह गए..,
जिंदगी रुखसत हुईं आशियाने रह गए.....

भावार्थ : - मन को हारने वाले दीप स्वरूप कुअँर द्वार पर पहुँच गए हैं  चौंक पुरा कर उसपर चौकी रखो | हे बाती ! हल्दी व् तैल्य से परिपूरित इस दीप रूपी सुकुमार का वरण करो || १ || रे हंसिनी ! तुम्हारे इन  प्रियतम रूपी प्रेमहंस मन रूपी मानसरोवर में बिछिया से विभूषित चरण रखो  | सुहागिनों ! तुम कुंअर की आरती करते हुवे उसके मौलिमस्तक पर तिलक का शुभ चिन्ह अंकित करो | 
                 दुल्हन राजमराल की गति से चल पड़ी है एतएव हे वरमाल्य तुम वर के कंठ में अवतरित होओ | मरकत रत्न सी हरी पान की पत्तियों की बेलों से लग्न-मंडप को सुसज्जित कर मंगल  द्रव्य से कलश भरो || हे दम्पति सूत्र ! तुम  इस भाँती ग्रंथि ग्रहण करो कि वर-वधु का बंधन  जन्म-जन्म तक सुदृढ़ रहे | हे वर ! शुभ मुहूर्त का समय हो गया तुम परिणद्ध होकर कन्या का दान ग्रहण करो | अग्निदेव तुम्हारे साक्षी हैं एतएव उनकी शपथ लेकर सात वचन भरो | 
                   वर ने मुद्रिका से सिंदूर अर्पित कर दिया एतएव हे सौभाग्य रूपी सिंदूर तुम अब वधु के केश प्रसारणी में अवतरित हो जाओ | जीवनसंगिनी के हाथ को ग्रहण किए हे वर ! अब तुम सप्त-पदी रीति का निर्वहन करते हुवे अग्नि की सात बार परिक्रमा करो | हे गणेशाय | हे महाकाय ! तुम भ्रमण पंथ के सभी विध्नों का हरण करो | हे नभ के उपवन के सुमन तुम वर्षा ऋतू की मेघमालाओं के जैसे वरवधू पर वर्षो || 


4 comments:

  1. A very cultural superb composition.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-05-2018) को "वृक्ष लगाओ मित्र" (चर्चा अंक-2993) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    पर्यावरण दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. यह आपकी रचना है नीतू मैम?

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