Friday, 8 June 2018

----- ॥ दोहा-पद 13॥ -----,

               ----- || राग - भैरवी || -----

पट गठ बाँधनि बाँध कै देइ हाथ में हाथ |
बोले मोरे बाबुला जाउ पिया के साथ ||
भावार्थ : - आँचल से ग्रंथि बाँध कर वर के हाथ में वधु का हाथ दे बाबुल बोले : - अब तुम अपने प्राणपति के साथ प्रस्थान करो | 


काहे मोहि कीजौ पराए, 
ओरे मोरे बाबुला 
जनम दियो पलकन्हि राख्यो जिअ तै रहेउ लगाए || १ || 

 पौनन के  डोला कियो रे बादल कियो कहार | 
 बरखा कर भेजी दियो बरसन दूज द्वार || 
मैं तोरी नैनन की बुंदिया पल पलकैं ढार ढरकाए || २ || 

देइ पराई देहरी दियो पिया के देस | 
दूरत दुआरि आपनी पलक कियो परदेस || 
करे अँकोरी सनेह कर डोरी गोद हिंडोरी झुराए || ३ || 

नैनन को नैया कियो पलकन को पतवार | 
पिय की नगरि भेजि दियो दए अँसुअन की धार || 
कहत ए नीर भरी निर्झरनि निज परबत ते बिहुराए || ४ || 

कै नैहर कै पिया घर बधियो दोइ किनार | 
नदिया तोरी दोइ गति,  कै इत पार कै उत पार || 
नैन घटा घन बरखत बाबुल रे लीज्यो मोहि बुलाए || ४ || 

भावार्थ  : -- हे बाबुल ! तुमने मुझे पराया क्यों कर दिया | जन्म दिया तो  पलकों पर ही धारण किए अपने ह्रदय से लगाए रखा || १ || अब पवन का  डोला रचा, बादलों को कहारों में परिणित कर मुझे बरखा का रूप देकर दूसरे द्वार पर बरसने भेज दिया ||  में तो तुम्हारी नयनों की अश्रु बून्द थी | आज उसे बंदकर क्यों ढलका दिया ||  २ || मुझे दूर करते हुवे अपने नयन द्वार को क्षणमात्र में परदेश कर दिया |  पराई देहली प्रदान कर मुझे प्रीतम का देस दिया | मुझे कंठ से लगाए स्नेह की डोरी से अपनी गोद के झूले में झुलाया || ३ || ( मेरी देह को नदी और  )मेरे नयनों को नैया और पलकों की  पतवार करके आँसुओं की धारा दे कर  मुझे पिय की नगरी में भेज रहे हो  | अश्रु से भरी ये निर्झरणी अपने पर्वत पिता से वियोजित होकर कहती है रे बाबुल मुझे पराया क्यों कर दिया || ४ || नैहर अथवा प्रीतम का घर, रे नदी तेरे दो ही कगारे हैं, तेरी गति भी दो ही है,  इस पार अथवा उस पार अन्यथा तो दुर्गति ही है | रे बाबुल नैनों की घटा बरसने लगे तब मुझे बुलवा लेना  || 

3 comments:

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  2. enormous ****
    ******
    ****

    stars and precious jewels , in the words of a Hindi poet
    " ....भाव उमगावे पर कहत न आवे कछु ...."
    with utmost regards

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  3. सुन्दर रचना

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