हाय भयो (रे)कस राम ए रोरा..,
सांझ बहुरत बहुरेउ पाँखी, नभ सहुँ लाखै सहसै आँखी |
रैन भई ना गयउ अँजोरा ||
कहत दिवस सों साँझि रे पिया, झूठि आँच ते जरइहौ हिया |
कन भरै मन मानै न तोरा ||
यहु तापन यहु बैरन रारी, हम सों अतिसय तुअहि प्यारी |
अगन लगइ ए फिरै चहुँ ओरा ||
रे निस दिन केरी कहीबत ए पास परौस मुख जोर कहत ए |
कह अनभल सकुचाए न थोरा ||
अजहुँ लगन की बेला न आइ तापर दियरा पौंर पधराए निज हुँत पेखै पंथ ए मोरा ||
भावार्थ : - ये कैसा व्यर्थ का कोलाहल है
संध्या के लौटते ही पंछी लौट आए, अभी नभ में सूर्य भी सम्मुख दर्शित हो रहे है || न रैन हुई है न उजाला ही गया है तथापि यह कैसा कोलाहल है | संध्या दिवस से कहती रे प्रियतम झूठी आंच से अपने ह्रदय को तप्त कर रहे हो, कान भरे बिना तुम्हें विश्राम नहीं मिलता | यह तापस ऋतु और यह कलह बड़ी ही बैरन है, जो तुम्हें हमसे भी प्रिय हैं ये चारों ओर आग लगाए फिरती हैं | पास पड़ोस के लोग बातें बनाते हुवे कहते हैं ये झगड़ा तो निसदिन का है इसे क्या सुनना, अनुचित कथन करते इन्हें किंचित भी संकोच नहीं होता | अभी तो लगन की बेला नहीं आई तद्यपि अपने स्वार्थ हेतु ये दीप ड्योढ़ी पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं.....
सांझ बहुरत बहुरेउ पाँखी, नभ सहुँ लाखै सहसै आँखी |
रैन भई ना गयउ अँजोरा ||
कहत दिवस सों साँझि रे पिया, झूठि आँच ते जरइहौ हिया |
कन भरै मन मानै न तोरा ||
यहु तापन यहु बैरन रारी, हम सों अतिसय तुअहि प्यारी |
अगन लगइ ए फिरै चहुँ ओरा ||
रे निस दिन केरी कहीबत ए पास परौस मुख जोर कहत ए |
कह अनभल सकुचाए न थोरा ||
अजहुँ लगन की बेला न आइ तापर दियरा पौंर पधराए निज हुँत पेखै पंथ ए मोरा ||
भावार्थ : - ये कैसा व्यर्थ का कोलाहल है
संध्या के लौटते ही पंछी लौट आए, अभी नभ में सूर्य भी सम्मुख दर्शित हो रहे है || न रैन हुई है न उजाला ही गया है तथापि यह कैसा कोलाहल है | संध्या दिवस से कहती रे प्रियतम झूठी आंच से अपने ह्रदय को तप्त कर रहे हो, कान भरे बिना तुम्हें विश्राम नहीं मिलता | यह तापस ऋतु और यह कलह बड़ी ही बैरन है, जो तुम्हें हमसे भी प्रिय हैं ये चारों ओर आग लगाए फिरती हैं | पास पड़ोस के लोग बातें बनाते हुवे कहते हैं ये झगड़ा तो निसदिन का है इसे क्या सुनना, अनुचित कथन करते इन्हें किंचित भी संकोच नहीं होता | अभी तो लगन की बेला नहीं आई तद्यपि अपने स्वार्थ हेतु ये दीप ड्योढ़ी पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं.....
अति सुन्दर।
ReplyDeleteइससे भोज राजा के साथ कालिदास के निर्वासनके दौरान अद्य धारा सदा नीरा याद आया पर मै दोनो के बीच समानता की सोच नही रहा । इसलिए कि सुनने की गलती बताई थी ।
यहा अद्भुत नजारा है । काव्य सौष्ठव। धन्य है ।
सादर नमस्कार । बहुत आनन्दित हुआ। एसी रचनाऔ का मुन्तजिर हू।
क्षेत्रपाल