Wednesday, 3 July 2013

----- ।। गुजरे-लम्हे ॥ -----

 प्रकाशन तिथि : -- 20-4-2012                  

गुलसिताँ ने गुल, आस्तां ने संग देखे हैं..,
समंदर ने कतरे कतरे में धनक के रंग देखे है.....
धनक = इन्द्रधनुष 

महताब उतर गया इक पायदां जमाल पर..,
समंदर कहे छोड़ दे मुझे हाजिरे-हाल पर..,


शमईं समाँ पे चाँदनी लुटा रही है रौशनी..,
हर सिम्त रौजा वां जवां वस्ल-ए-हिलाल पर..,


नगमगी सी शाम पर मुन्तही ता-सहर..,
शहाब की नालिशें रौ आबे-लाल पर..,


सुलग सुलग ऐ साहिल गर्मां ये सर्दे-दिल..,
इश्क की लहर लहर हुस्न के उबाल पर..,


उम्र दराज तमाम माह सूरते-विसाल पर..,
है रायगाँ है रायगाँ मिसालें बेमिसाल पर.....

वस्ल-ए- हिलाल = नए और आखरी चाँद का मिलन 

शहाब = कुसुम को भिगोकर निकाला जाने वाला लाल रंग 
नालिशें =फ़रियाद 
रौ आबे-लाल = बहते हुवे पानी का  माणिक स्वरूप 


1 comment:

  1. bahut hee sundar abhivyakti Neetu ji...

    मेरी नयी पोस्ट आपके इंतज़ार में है !

    एक चटका यहाँ भी लगाइये :
    http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2013/07/blog-post.html

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