प्रकाशन तिथि : -- 20-4-2012
गुलसिताँ ने गुल, आस्तां ने संग देखे हैं..,
समंदर ने कतरे कतरे में धनक के रंग देखे है.....
गुलसिताँ ने गुल, आस्तां ने संग देखे हैं..,
समंदर ने कतरे कतरे में धनक के रंग देखे है.....
धनक = इन्द्रधनुष
महताब उतर गया इक पायदां जमाल पर..,
समंदर कहे छोड़ दे मुझे हाजिरे-हाल पर..,
शमईं समाँ पे चाँदनी लुटा रही है रौशनी..,
हर सिम्त रौजा वां जवां वस्ल-ए-हिलाल पर..,
नगमगी सी शाम पर मुन्तही ता-सहर..,
शहाब की नालिशें रौ आबे-लाल पर..,
सुलग सुलग ऐ साहिल गर्मां ये सर्दे-दिल..,
इश्क की लहर लहर हुस्न के उबाल पर..,
उम्र दराज तमाम माह सूरते-विसाल पर..,
है रायगाँ है रायगाँ मिसालें बेमिसाल पर.....
वस्ल-ए- हिलाल = नए और आखरी चाँद का मिलन
शहाब = कुसुम को भिगोकर निकाला जाने वाला लाल रंग
नालिशें =फ़रियाद
रौ आबे-लाल = बहते हुवे पानी का माणिक स्वरूप
bahut hee sundar abhivyakti Neetu ji...
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट आपके इंतज़ार में है !
एक चटका यहाँ भी लगाइये :
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2013/07/blog-post.html