नील वसन आधार धर उत्तर उत निरवास ।
बहु व्यसन देश बाहर महामात्य प्रवास ।।
सिंहासन मणि सोपान बहु रूप रस रंगीन ।
भोज भोजन भोग वान नक्त दिन नक्तंदिन ।।
नीव नीव नीवानास नील मणि शिख शिखण्ड ।
नृप निति पथ सभा सुत नृशंस नंगधडंग ।।
ध्वज धर पट ध्वजाहृत धृष्ट दीधिति राष्ट्र ।
धूर्त कितव कृत्य चरित दुष्ट धृति धृतराष्ट्र ।।
धनुर्धर धर्म सभा सुत धनञ्जय धारि धार ।
ध्वजीनी धर्म युद्ध युत संहित सहाय सार ।।
ध्वज धर पट ध्वजाहृत धृष्ट दीधिति राष्ट्र ।
ReplyDeleteधूर्त कितव कृत्य चरित दुष्ट धृति धृतराष्ट्र ।।
अति सुन्दर, वाह क्या बात है , बहुत-२ बधाई
wow but to be honest it took me some time to understand the hardcore language!!!
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