आओ तुम कौ भरत खन के दरसन करवाएँ ।
जहँ हिम सैल सिर पावन सुर सरित बही आए ॥
मुँदरी पाछु धरे मनिक पंच करज फैलाए ।
धनद सम बर धनिक बनिक जहँ मँगते कहलाएँ ॥
बैसे जहँ अस राउ आसन कारा धन गड़ियाए ।
झुठे लार लसे भासन बोले तौ उछराए ॥
कोटि के पहन परकोट कोटिक भवन टिकाए ।
गाँव गँवन कहते गोठ इ लुक तंत्र है भाए ॥
भावार्थ : --
आओ तुमको भारत खंड के दर्शन करवाएं । जहां हिमालय पर्वत से
पवित्र गंगा नदी निकलती है ॥
जहां अंगूठी के पीछे में रत्न जड़ित कर कुबेर के समान धनवान और
व्यापारी ( मत के लिए ) पाँचों उंगलियाँ फैला कर भीख माँगते हैं ॥
जहां काले धन का संचय कर, उच्च पदों पर ऐसे शासक बैठे हैं।जिनके
भाषण ऐसे होते हैं, जहां से झूठ उझल उझल कर बाहर आ जाता है ।।
करोड़ करोड़ रूपए के तो ये कोट पहनते हैं । और ये जाने कितने भवनों
के स्वामी हैं ।ये गाँव के निवासियों से कहते है : -- देखो! देखो ! इसे
लोकतंत्र कहते हैं ॥
जहँ हिम सैल सिर पावन सुर सरित बही आए ॥
मुँदरी पाछु धरे मनिक पंच करज फैलाए ।
धनद सम बर धनिक बनिक जहँ मँगते कहलाएँ ॥
बैसे जहँ अस राउ आसन कारा धन गड़ियाए ।
झुठे लार लसे भासन बोले तौ उछराए ॥
कोटि के पहन परकोट कोटिक भवन टिकाए ।
गाँव गँवन कहते गोठ इ लुक तंत्र है भाए ॥
भावार्थ : --
आओ तुमको भारत खंड के दर्शन करवाएं । जहां हिमालय पर्वत से
पवित्र गंगा नदी निकलती है ॥
जहां अंगूठी के पीछे में रत्न जड़ित कर कुबेर के समान धनवान और
व्यापारी ( मत के लिए ) पाँचों उंगलियाँ फैला कर भीख माँगते हैं ॥
जहां काले धन का संचय कर, उच्च पदों पर ऐसे शासक बैठे हैं।जिनके
भाषण ऐसे होते हैं, जहां से झूठ उझल उझल कर बाहर आ जाता है ।।
करोड़ करोड़ रूपए के तो ये कोट पहनते हैं । और ये जाने कितने भवनों
के स्वामी हैं ।ये गाँव के निवासियों से कहते है : -- देखो! देखो ! इसे
लोकतंत्र कहते हैं ॥
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