Tuesday, 27 November 2018

----- ॥ दोहा-द्वादश ११ ॥ -----,

जाति धरम बिनसाए जो बिलगावत निज देस |
सनै सनै सेष सहुँ सो होत जात अवसेष || १ || 
भावार्थ : - जो अपना धर्मदत्त परिचय अपनी जाति अपना वर्ण को नष्ट करता है वह अपने देश से वियुक्त होकर शनै शनै शेष से अवशेष मात्र रह जाता है |

धर्म संग जो आपुना जाति बरन कुल खोए |
निज परचय बिनसाइ के बिनहि देस कर होए || २ ||
भावार्थ : - धर्म के साथ जो अपनी जाति अपना कुल अपना वर्ण नष्ट करता है वह अपना परिचय विनष्ट कर देश से विहीन हो जाता है |

जाति संकरी होइ जौ धर्म न लागै बेर | 
जगत फिरौ पुनि हेरते मिले न अपना हेर || ३ || 
भावार्थ : - सर्वप्रथम जातिय संकरता से बचें क्योंकि जाति-संकर होने के पश्चात धर्म-संकर होने में देर नहीं लगती | ऐसे संकरित तथा ऐसे संकरता से व्युत्पन्न संतति फिर जब संसार में अपनी मौलिकता अपनी पहचान ढूंढने निकलती है तब उसे वह कहीं नहीं मिलती |

लोहा लोहा सों  मिले मारे घन ते चोट |
लोहा सुबरन सों  मिले कहिलावै पुनि खोट || ४  ||
भावार्थ : - लोहा लोहा का प्रसंग करे तब वह घन में परिणित होकर उत्कृष्टता को प्राप्त होता है और  स्वर्ण पर चोट कर उसे आभूषण का स्वरूप देता है | वही लोहा यदि स्वर्ण का प्रसंग करता है तब वह अपने स्वाभाविक गुणों से रहित होकर निकृष्टता को प्राप्त होता है |

अपना पूला छाँड़ जौ उयउ पराया पूल | 
साख बिहूना होइ के बिनसत सो निज मूल || ५ ||
भावार्थ : -अपने समुदाय से वियोजित होकर जो कोई पराए समुदाय में सम्मिलित होता है, वह अपने पूर्वजों से रहित होते हुवे अपनी मौलिकता नष्ट कर राष्ट्रविहीन हो जाता है  |

अपना मूल नसाइए न छाँड़िए अपनी साख |
जे तो बहुरि न मेलिआ जतन कीजिये लाख || ६ ||
भावार्थ : - अपनी शाखाऐं त्याग कर अपनी मौलिकता नष्ट मत कीजिए क्योकि यह आपका वह अस्तित्व है जो यदि नष्ट हो जाए तो लाख यत्न करने पर भी पुनश्च प्राप्त नहीं होता |

 भाव संगत होतब जब भगवद भगति बिराट |
भगवनन्हि बसात भया दिब्य भवन तब टाट || ७ ||
भावार्थ : - भगवद भाव के संगत जब शक्ति का न होकर भक्ति का विराट प्रदर्शन होता है तब भगवान को विराजित किए टाट की कुटिया भी दिव्य भवन दर्शित होने लगती हैं |

भगवद गाथा बाँच कै भरिआ रे कर कोष | 
दोष गोइआ आपुना धरिआ जुग पर दोष || ८ || 
भावार्थ : - संग्रह साधू संतो का स्वभाव नहीं है | अपना दोष गुप्त रख काल पर दोषारोपित कर जो भगवद गाथा के वाचन द्वारा धन कोष का संकलन करते हैं वह संत पाखंडी होते हैं | 

अबर इष्ट के जनम भुइँ औरन के अस्थान |
साँचे मुसलमान कबहुँ पढ़ते नहि कुरआन || ९ ||
भावार्थ : - सच्चे मुसलमान अपने इष्ट की जन्मस्थली के विपरीत मुख करके किसी दूसरे के स्थान में उसके इष्ट देव की जन्मभूमि पर कभी भी कुरआन नहीं पढ़ते |

न इतिहास न बर्तमान न ग्यान न बिग्यान |
सोइ मान जग होइगा जो हमरा अनुमान || १० ||
भावार्थ : - बहुंत से लोगों को यह मत है कि : - न इतिहास-वर्तमान मान्य होगा न ज्ञान-विज्ञान मान्य होगा, विश्व में वही मान्य होगा जो हमारा अनुमानित विचार है ||

जातिहीन अग्यानि बनती करे बिगारि |
जातिजुगत ग्यानबान बिगरी करे सुधारि || ११ ||
भावार्थ : - एक जातिविहीन अज्ञानी बनी को भी बिगाड़ देता है और एक जातियुक्त ज्ञानी उस बिगड़ी को भी सुधारने में सक्षम होता है |


"जन्म से कभी राष्ट्रीयता प्राप्त नहीं होती नागरिकता अवश्य प्राप्त होती है....."
जिनकी सल्तनते थीं जहाँ की रूसतम ख़ेज़ | 
पैदाइसी हिँदूस्तानि फिर होते वो अँगरेज || १२ || 
भावार्थ : - यदि जन्म से राष्ट्रीयता प्राप्त होती है तो जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था जिनकी चार-चार पांच-पांच पीढिआँ भारत में जन्मी वह भी अंग्रेज भी भारतीय थे | 

जाके दल समुदाय मह बहिनी लेइ बिहाइ | 
सो तो नाहि काहू के होते जवाइ भाइ || 
भावार्थ : - जिनके दल जिनके समुदाय में बहनों से भी विवाह रचा लिया जाता हो वह किसी के जमाई भाई नहीं होते |  






भय सहुँ कि लोभ लाह सहुँ जब  निरनय होत प्रभाउ | 
होत जात भरोस हीन सो प्रबंधित न्याउ || 
भावार्थ :-  "जिसके न्याय-निर्णय किसी व्यक्ति, संस्था,दल के भय से अथवा किसी अनुचित लाभ के लोभ से प्रभावित हों वह न्यायिक व्यवस्था अविश्वसनीय होती चली जाती है | "






















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