Thursday, 8 November 2018

----- ॥पद्म-पद २५ ॥ -----,

लाल लाल तिलक रेख बसत पिया के भाल रे..,
हिलमेलती उरु रुचिरु गज मुकुतालि माल रे''..,

पीत बसन देह बसे नैनन में नेह रे'..,
बहुरि बहुरि मोहि कसे बहियन में लेह रे..,
दीप माल थाल धरे मोरे कुमकुम करताल रे..,

गली गली मनि दीपक की अलियाँ सँवार के..,
छाँड़त रे फूरझरी श्री की आरती उतार के..,
आजु अली सुबरनी भए गगन घनकाल रे..,

देख देख छबि छटा छन लोचन अभिराम जूँ..,
बारिअहिं अंग अंग कोटिकोटि सत काम जूँ..,
झरोखन्हि लगी जुवतीं होवति निहाल रे..,

बाँकी बर करधनि कर निरखत घनस्याम से..,
चितबत चित चोरि लेहि रे झलक देत राम से..,
अपलक भए पलक चलत जब मंजुल मराल रे..,

मिलत कंठ लाई पुर के लोगन्हि बिलोक के..,
हँसत कहत कहिबत कछु डगरी रोक रोक के..,
सोहत दए पाटल पट  भुज सेखर बिसाल रे.....

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