Friday, 23 November 2018

----- ॥पद्म-पद २८ ॥ -----,

----- || राग- सारंग ||-----
पिय हमहि ए कलि कलह न भावै |
निर्जर नैनि भई निर्झरनी झरझर नीर बहावै ||१ ||
पलक पहारी कहत कपोलक असुँअन ढर ढर आवै ||
तुम्हरे गह घरी घरी आनि हम्ह सोंहि बिरुझावै || २ ||
करिअ कर सब कृत करतब काजु दोषु धरिअ बिसरावै ||
हरिदय पावक बूझ चहे तव पेम पवन जौं पावै || ३ ||
भेदिनि बैरन परम बैर करि हठि घृत देइ दहावै ||
कुटिल कोदंड खैंच खैंचि के बियंग बैन चलावै  || ४ ||
मरमु भेद घन चोटि करिअ बहु बहु खरि खोटि सुनावै ||
जौ मुख आवै सो कहि निस दिन गरज गरज गरियावै || ५ ||
आपुनि गोई अरु कहि हमरी आगत कहत बतावै  ||
लषन सदगुन गनिहै न मोरे गनि गनि औगुन गावै || ६  ||
करुबर कहनाई कहि कहि के अनकहि कहन कहावै ||
पल छन पहर पिहर के आँगन सुमिरत मन बिरमावै || ७ ||

बिरुझावै = उलझना
आगत = गृहागत = अतिथि
गृह भेदिनी = क्लेष कर्ता
गरियावै = अनुचित वचन कहना
बिरमाना = बहलाना 

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