----- || राग-भैरवी || -----
काहे कीज्यो बाबुल मोहे पराई रे |
कहहु कहा छन भर कहुँ तोहे मोरी सुरति नाहि आई रे || १ ||
प्रान दान दए मोहि जियायो काहे परदेस पठाई रे |
पोस्यो बहु बरस लगे बिछुरत लागि न बारि |
पिय के गाँव पठाए के पल महि दियो बिसारि || २ ||
चारि गलीं दुइ चौंहटीं अजहुँ छितिज लगी दूर दुराई रे |
निकट बसत कबहुँ न मिलि आयो अह एहि तोरी निठुराई रे || ३ ||
हम्हरेहि हुँते लहुरी भई का तुहरी गह अँगनाई रे |
बैस पंखि गहि पवन खटोरे उड़िअ गगन अतुराई रे || ४ ||
गह्यो पियबर पानि जूँ सीस दियो सिंदूर |
गाँव पराया देइ के कियो नैन ते दूर || ५ ||
दहरी द्वार पट पारि करत जइहउ करतल कसि धाई रे ||
बरखत नैन बिन सावन कहियो घन काल घटा गहराई रे || ६ ||
पवन पँखुरि पाइ के री पतिआ पितु के देस |
करतल गहि दए गलबहीँ एहि दिज्यो संदेस || ७ ||
पवन पाँख गहि गगन बीथिका मम पितु गेह तुम्ह जाई रे |
लिखिअ ए सनेसा कह्यो दियो भरि कंठहियो लपटाई रे || ८ ||
कंठ लपटाइ के जिन्ह रख्यो जी ते लाइ ||
ओ रे मोरा बाबुला ओहे लिजो बुलाइ || ९ ||
काहे कीज्यो बाबुल मोहे पराई रे |
कहहु कहा छन भर कहुँ तोहे मोरी सुरति नाहि आई रे || १ ||
प्रान दान दए मोहि जियायो काहे परदेस पठाई रे |
पोस्यो बहु बरस लगे बिछुरत लागि न बारि |
पिय के गाँव पठाए के पल महि दियो बिसारि || २ ||
चारि गलीं दुइ चौंहटीं अजहुँ छितिज लगी दूर दुराई रे |
निकट बसत कबहुँ न मिलि आयो अह एहि तोरी निठुराई रे || ३ ||
हम्हरेहि हुँते लहुरी भई का तुहरी गह अँगनाई रे |
बैस पंखि गहि पवन खटोरे उड़िअ गगन अतुराई रे || ४ ||
गह्यो पियबर पानि जूँ सीस दियो सिंदूर |
गाँव पराया देइ के कियो नैन ते दूर || ५ ||
दहरी द्वार पट पारि करत जइहउ करतल कसि धाई रे ||
बरखत नैन बिन सावन कहियो घन काल घटा गहराई रे || ६ ||
पवन पँखुरि पाइ के री पतिआ पितु के देस |
करतल गहि दए गलबहीँ एहि दिज्यो संदेस || ७ ||
पवन पाँख गहि गगन बीथिका मम पितु गेह तुम्ह जाई रे |
लिखिअ ए सनेसा कह्यो दियो भरि कंठहियो लपटाई रे || ८ ||
कंठ लपटाइ के जिन्ह रख्यो जी ते लाइ ||
ओ रे मोरा बाबुला ओहे लिजो बुलाइ || ९ ||
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