Sunday 23 June 2013

-----॥ सोरण सोरठे ॥ -----

कंठ कटि कनक केर  एक नारंगी सी नार ।
उद बहनु उदक हेर सिर बिंदु उदकाति चली ।१।



सर सौं हैं सरसाए सरसई  सर सिरु धराए । 
हरिद बरन अलकाए सुम सुरभि गंधाति चली ।२। 

कंज कलस कर भाल कूल कालिंदी निकार ।
नागिन से कलि काल अलकबलि लहलाति चली |३।

करी बँध रचित कार  सिर सुर सारंगी सार ।
गनपति भूषन धार किरनों को लजाति चली ।४।

धूरि पथ पदुम पाँव धुरिका भइ पलक पधार । 
बैसी हरि पत छाँव पुनि नैन मलियाति चली ।५। 

दिवा किरन के छाप असित लोहित लहरिदार । 
चाँद मुख चुनर ढाँप घर घघरन घुमाति चली ।६।  

फरे बिटप बट छोर, डारि झुकै लइ फर तोर । 
भरी जमुनिया झोर रसन रस लिपटाति चली ।७। 

कलित कल कंठ फाग रसन नील रंजन राग । 
रसिके रस मस लाग पिया के गुनगाति चली  । ८ । 

धवल धूरि धर पाँव पँवर परे पीपर छाँव । 
पहुँच पिया के गाँव  पुर पुरन खनकाति चली । ९ । 

भावार्थ : --
स्वर्ण आभूषण से सुसज्जित एक नारंगी रंग की नारी जलपात्र में
जल पात्र लिए जल ढूँडती, सिर ऊपर से स्वेद बूंदों को बिखराती हुई चल
रही है ।1।
अर्थात : -- "सुन्दरता तो सर्वत्र व्याप्त है, केवल दृष्टिकोण होना चाहिए"

हरीभरी सरसों है जिनकी सुन्दर माला सिर पर धारण कर, बालो में पीतम
राग भरे फूलों से सगुन्धित होकर चल पड़ी । 2 ।

यमुना के किनारे से अमृत कलश को  भर कर शीश पर धरे ।
काली नागिन के जैसे बालों की लटों को लहराती हुई चल रही है ।3।


जब बालों को बाँध कर सँवारा तो शीश पर बूंदों का राग बिखर गया । किरणों
सिंदूर( गणेश भूषण=सिंदूर) को आधार करे किरणों को भी वशीभूत करती हुई
चल रही है । 4  ।

धूल भरे पथ पर कमल जैसे पाँव हैं और धूलिका पलकों पर विराज गई ।
हर पत्तो की छाँव में थोड़ी देर बैठ कर पुन: आँखों को मलती हुई चल रही है ।5 ।


सूर्य मुखी छपा हुवा बैंगनी बेल बूटों वाली चुनरी से मुख ढांक  कर 
घाघरे को घुमाती घर की ओर चल पड़ी । 6  ।  

मार्ग के किनारे फलदार वृक्ष हैं, डाली झुकाई और फल तोड़ लिए ॥ 
भरी झोली के जामुन फल का स्वाद लेती चल पड़ी ।7। 

मधुर सुर-स्वर में फाल्गुनी गीत सजा कर जिव्हा को राग नील से रँगकर । 
 रसिकपन में आनंदित हॊकर पिया के गुण गाती चली  । ८ । 

उज्जवल रज से लिपटे चरण हैं और द्वार से हटकर पीपल की छाँव है । 
 पीया के गाँव पहुँच कर घर के अन्दर बिछिया खनकाती हुई चली ।९।  
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फिर किरण पाँव धरे निरख रही मुकुर मुख धो ।
निर्झरी नीर झरे  नाद कर नुपूर चमके ॥

फिर ग्रहे पट गहरे दमके रूप लावण लौ ।
पद कमल कर सँवरे भर मणि माणिक मनके ॥

फिर दिनकर दिन करे जाग उठा रात भर सो ।
कर वन्दन पद वरे जल ढलके अमृत बनके ॥

रमण किरण बाहु भरे लाज धरे नयन नत हो ॥
रथ रयनि कण उतरे पुष्प पत्र पर सुर झनके ॥

शंख करे रव हरे जयति जय राधेमाधौ ।
कलश कलश जल भरे खन खन खंखणा खनके ॥

फिर सर सजदा दरे मस्जिद में अल्लाह हो ।
गिरजा घर गुंजरे फुली शफ़क सबद सुनके ॥

2 comments:

  1. धूल भरे पथ पर कमल जैसे पाँव हैं और धूलिका पलकों पर विराज गई ।
    हर पत्तो की छाँव में थोड़ी देर बैठ कर पुन: आँखों को मलती हुई चल रही है


    बहुत अच्छी रचना आभार.. .

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