प्रश्न है भ्रष्टाचार के क्रियाकार कौन कौन से है..??
" भ्रष्टाचार के क्रियाकार
--'उत्कोच'अथवा 'प्राभृत'
--'घपला' व 'घोटाला'
--'कर्त्तव्य विमुखता'
--'अन्य आर्थिक अनियमितता'
--'कर अपवंचन' व 'अघोषित आय'.."
" उत्कोच:--
लोक सेवक अथवा लोकसेवक से भिन्न कोई व्यक्ति जो सेवा नियोगी (गिन)
या नियोग विहीन हो स्वयं अथवा अन्य व्यक्ति हेतु अपवंचन के आशय से जहां
दोषपूर्ण अर्जन के कार्यत: वैध-अवैध किन्तु दोषपूर्ण कार्याकार्य के विनिमय
का क्रियाभ्युपगम एवं ऐसा दोषपूर्ण क्रियान्वय का प्रयोग किसी व्यक्ति के पक्ष-
विपक्ष में व उसके अनुरत-विरत में करता है वहां ऐसे दोषपूर्ण अर्जन के समुन्नयन
का प्रयोजन व सन्निधान एवं सदोष सन्निवेश का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता,
उत्कोच अथवा प्राभृत का अपराधी है.."
" दृष्टांत 1 :--
'अ' एक लिपिक है 'ब' को इस हेतुक मद्य परोसता है कि वह रु. दस करोड़
मूल्य के पंक्तिपत्र को कार्य-करण में त्रुटियों को अनदेखा कर उसपर हस्ताक्षर
कर दे 'अ' एवं 'ब' कार्य-कारण विपर्यन दोष के सह, उत्कोच के अपराधी है..,\
" दृष्टांत 2:--
'अ' एक विशिष्ट व्यक्तित्व का स्वामी व समाज का सम्मानित व धनिक व्यक्ति है
'ब' एक लोकसेवक है जो 'अ' के पक्ष में इस हेतुक दोषपूर्ण कार्याकार्य करता है
" घोटाला:--
लोक सेवक अथवा भिन्न कोई व्यक्ति, शासकीय अर्धशासकीय अशासकीय,
निकाय, इकाई, संस्था, संगढन, समिति निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास जो
किसी संपत्ति(चल-अचल) के योजन अथवा प्रबंधन का स्वामि-सेवक स्वरूप
निर्वाचित, योजित- नियोजित, नियुक्तिक, निष्पत्तित नियोगी (गिन) अथवा
नियोग विहीन हो जो स्वयं अथवा अन्य हेतुक 'हड़पकर' 'अपवंचन' के आशय
से उक्त संपत्ति का कोई अंश अथवा सम्पूर्ण संपत्ति के दोषपूर्ण अर्जन के कार्यत:
वैध-अवैध किन्तु दोषपूर्ण कार्याकार्य को संविदा सहित-रहित एवं ऐसे दोषपूर्ण
क्रियान्वयन का प्रयोग किसी व्यक्ति के पक्ष-विपक्ष में व उसके अनुरत-विरत
में करता है वहां ऐसे दोषपूर्ण अर्जन के समुन्नयन का प्रयोजन व सन्निधान
एवं सदोष सन्निवेश का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता; घोटाला का अपराधी है.."
" दृष्टांत :--
'अ' एकशासन है
'ब' व्यापारिक संस्था है
'स' 100 व्यक्तियों का समूह है
दृश्य 1:-- 'अ' के पास 100 आम है जिन्हें 'स' में वितरित करना है,
कि 'ब' 'अ' के सह सदोष सन्निवेश करता है, 'अ' व 'ब' उत्कोच का अपराधी है.."
" घोटाला:--
लोक सेवक अथवा भिन्न कोई व्यक्ति, शासकीय अर्धशासकीय अशासकीय,
निकाय, इकाई, संस्था, संगढन, समिति निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास जो
किसी संपत्ति(चल-अचल) के योजन अथवा प्रबंधन का स्वामि-सेवक स्वरूप
निर्वाचित, योजित- नियोजित, नियुक्तिक, निष्पत्तित नियोगी (गिन) अथवा
नियोग विहीन हो जो स्वयं अथवा अन्य हेतुक 'हड़पकर' 'अपवंचन' के आशय
से उक्त संपत्ति का कोई अंश अथवा सम्पूर्ण संपत्ति के दोषपूर्ण अर्जन के कार्यत:
वैध-अवैध किन्तु दोषपूर्ण कार्याकार्य को संविदा सहित-रहित एवं ऐसे दोषपूर्ण
क्रियान्वयन का प्रयोग किसी व्यक्ति के पक्ष-विपक्ष में व उसके अनुरत-विरत
में करता है वहां ऐसे दोषपूर्ण अर्जन के समुन्नयन का प्रयोजन व सन्निधान
एवं सदोष सन्निवेश का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता; घोटाला का अपराधी है.."
" दृष्टांत :--
'अ' एकशासन है
'ब' व्यापारिक संस्था है
'स' 100 व्यक्तियों का समूह है
दृश्य 1:-- 'अ' के पास 100 आम है जिन्हें 'स' में वितरित करना है,
'अ' बोली के द्वारा 'ब' को रु. 500.00 लेकर वितरण संविदा करता है कि 'ब'
आमों को 'स' में स्वयं के साधन से वितरण करे. अब 'ब' रु.6.00 प्रति आम
की दर से 'स' को विक्रय करता है, इधर 'अ' जो की एकशासन है उक्त रु.500.00
'स' को दुप्रशासन में रु.100.00 व्यय कर रु. 4.00 प्रति व्यक्ति की दर से उप-
लब्ध करवा कर विद्यमान आय में रु. 4.00 की वृद्धि करता है, 'स' का प्रत्येक
व्यक्ति, 4.00 + रू 2.00(स्वयं की विद्यमान आय से) = कुल रु. 6.00 में आम
को सरलता से क्रय कर लेता है..,
दृश्य 2 :-- 'अ' उन्हीं 100 आमों को बोली के द्वारा मात्र रु. 100.00 लेकर 'स' के लिए 'ब'
को बोली के द्वारा आमों को स्वयं की साधन से वितरित करने की संविदा
करता है किन्तु आम की वास्तविक मूल्य रु. 500.00 है शेष रु. 400.00 में
से रु. 200.00 का दोषपूर्ण अर्जन करते हुवे 'ब' से सदोष संविदा का कार्य
करता है. अब 'ब' रु. 5.00 प्रति आम की दर से 'स' को विक्रय करता है,
इधर 'अ' जो की एकशासन है उक्त रु.100.00 'स' को दुप्रशासन में अन्य स्त्रोत से
रु.10 व्यय कर रु.1.00 प्रति व्यक्ति की दर से उपलब्ध करा कर विद्यमान
आय में मात्र रु.1.00 की वृद्धि करता है, 'स' का प्रत्येक व्यक्ति 1.00 + 4.00
( स्वयं की विद्यमान आय से) = कुल रु.5.00 में आम को कढीनता से क्रय
करता है, 'अ' व 'ब' घोटाले के अपराधि हैं.."
निष्कर्ष1 :-- दृश्य 1 में यद्यपि 'स' को आम महँगा मिलेगा किन्तु आय में वृद्धि के फलत:
उसे अपनी विद्यमान आय से रु. 2.00 व्यय करना पढ़ेगा.
दृश्य 2 में आम रु.1.00 सस्ता है किन्तु 'स' को अपनी विद्यमान आय से रु.
4.00 देने होंगें
निष्कर्ष2:-- दृश्य 1 में 'ब' को रु.100.00 का वैध लाभार्जन होता है.
दृश्य 2 में 'अ' व 'ब' रु.200.00-200.00 का दोषपूर्ण अर्जन करते हैं
'स' को रु. 4.00 प्रति आम की दर से कुल रु.400 की सदोष हानि
होती है साथ में रु.100 अन्य स्त्रोत से सदोष हानि होती है
( यदि दुप्रशासन से घोटाला न हो तो )..,
" घपला व घोटाला में अंतर करना कढीन है सामान्यत: घपला, घोटाला का लघुरूप है
चल-अचल संपत्ति का ऐसा दोषपूर्ण अर्जन जो घोटाला की अपेक्षा निर्धारित मूल्य में
लघुत्तम हो घपला का अपराध होगा.."
" लोकसेवक अथवा लोकसेवक से भिन्न कोई व्यक्ति या शासकीय अशासकीय अर्धशासकीय
अधिकारानिक निकाय, इकाई, संस्था, समिति, संगढन, निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास के
स्वामी अथवा संचालक द्वारा अथवा उसके अधीन नियोजित, निष्पत्तित, नियुक्तिक वैधानिक
सेवा नियोगी(गिन) हो अथवा नियोग की अवस्था में यदि वह कर्त्तव्य निर्वहन में विधेयाविमर्ष,
विनीग्रह, निर्मर्याद, निर्मर्यादावधि व दोषपूर्ण कार्याकार्य इस हेतुक की जिसके कार्यत: स्वयं को
अथवा अन्य व्यक्ति को कपटपूर्ण आशय से ओश्पूर्ण अर्जन का समुन्नयन व सन्निधान का
कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो; कर्तव्य विमुखता का अपराधी होगा.."
" विधेयाविमर्ष:--
'लोकसेवक' अथवा 'लोकसेवक' से भिन्न कोई 'व्यक्ति' जो कोई भी धर्म, संस्कृति, समाज, राष्ट्र
उपराष्ट्र एवं तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन विधि-विधान का रचनात्मक निरूपण-विरूपण,
विधेयाविमर्ष का अपराधी होगा..,
व्याख्या:--
घृणा, द्वेष या उपेक्षा को उत्तेजित-अनुत्तेजित करने का कृत्य-कर्तृत्व रहित अस्वीकृति, असहमति
की प्रकट आलोचनाऍ एवं अधीनस्थ 'व्यक्ति' द्वारा विधिपूर्वक तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन
विधि-विधान में परिवर्तन का आशय अपराध नहीं है..,
दृष्टांत:--
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ 'रामायण' व 'महाभारत' से धर्म विचार संकलन में श्री राम की एकल विवाह
पद्धति को स्वीकृत व श्री कृष्ण की बहुविवाह पद्धति को अस्वीकृत किया गया व श्री राम द्वारा
स्त्री त्यागाचरण को अस्वीकृत व श्री कृष्ण के स्त्री के प्रति प्रेमाचरण को स्वीकृत किया गया
वही श्री राम-रावण युद्ध में दुष्ट को दंड व महाभारत युद्ध में परस्पर सौह्रदय्यता को सम्मिलित
किया गया....."
क्रमश:
" घपला व घोटाला में अंतर करना कढीन है सामान्यत: घपला, घोटाला का लघुरूप है
चल-अचल संपत्ति का ऐसा दोषपूर्ण अर्जन जो घोटाला की अपेक्षा निर्धारित मूल्य में
लघुत्तम हो घपला का अपराध होगा.."
" लोकसेवक अथवा लोकसेवक से भिन्न कोई व्यक्ति या शासकीय अशासकीय अर्धशासकीय
अधिकारानिक निकाय, इकाई, संस्था, समिति, संगढन, निगम, केंद्र, न्यास, अर्धन्यास के
स्वामी अथवा संचालक द्वारा अथवा उसके अधीन नियोजित, निष्पत्तित, नियुक्तिक वैधानिक
सेवा नियोगी(गिन) हो अथवा नियोग की अवस्था में यदि वह कर्त्तव्य निर्वहन में विधेयाविमर्ष,
विनीग्रह, निर्मर्याद, निर्मर्यादावधि व दोषपूर्ण कार्याकार्य इस हेतुक की जिसके कार्यत: स्वयं को
अथवा अन्य व्यक्ति को कपटपूर्ण आशय से ओश्पूर्ण अर्जन का समुन्नयन व सन्निधान का
कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो; कर्तव्य विमुखता का अपराधी होगा.."
" विधेयाविमर्ष:--
'लोकसेवक' अथवा 'लोकसेवक' से भिन्न कोई 'व्यक्ति' जो कोई भी धर्म, संस्कृति, समाज, राष्ट्र
उपराष्ट्र एवं तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन विधि-विधान का रचनात्मक निरूपण-विरूपण,
मौखिक-लिखित व दृष्टव्य संकेत स्वरूप प्रधान उद्देश्य को छिपाते हूवे घृणा, द्वेष या उपेक्षा व
उत्तेजना-अनुत्तेजना सहित अपमानापकार के कृत्य का कर्ता, कर्तृत्व, कारयिता हो;विधेयाविमर्ष का अपराधी होगा..,
व्याख्या:--
घृणा, द्वेष या उपेक्षा को उत्तेजित-अनुत्तेजित करने का कृत्य-कर्तृत्व रहित अस्वीकृति, असहमति
की प्रकट आलोचनाऍ एवं अधीनस्थ 'व्यक्ति' द्वारा विधिपूर्वक तत्संबंधित निर्मित-निर्माणाधीन
विधि-विधान में परिवर्तन का आशय अपराध नहीं है..,
दृष्टांत:--
हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ 'रामायण' व 'महाभारत' से धर्म विचार संकलन में श्री राम की एकल विवाह
पद्धति को स्वीकृत व श्री कृष्ण की बहुविवाह पद्धति को अस्वीकृत किया गया व श्री राम द्वारा
स्त्री त्यागाचरण को अस्वीकृत व श्री कृष्ण के स्त्री के प्रति प्रेमाचरण को स्वीकृत किया गया
वही श्री राम-रावण युद्ध में दुष्ट को दंड व महाभारत युद्ध में परस्पर सौह्रदय्यता को सम्मिलित
किया गया....."
क्रमश:
" Mitra Se Sadaev Gyaan Ki Kaamanaa Karani Chyaahiye,
ReplyDeleteDhan Ki Nahin....."