Wednesday, 30 May 2012

'' Sanvidhaan Sudhaatra Anusandhaan Akaansh ''

'' लोकतंत्र का अर्थ व उद्देश्य;--
  -- वंशवाद का बहिष्करण
  -- जन सामान्य का सर्वोच्च प्रतिनिधित्व 
  -- न्यायिक समानता
  -- सामाजिक समरूपता 
  -- अविच्छिन्न स्वराष्ट्र


'' जाति, धर्म, वर्ण के समुच्चय के उत्थापन से युक्त सम्यक  
  व सुव्यवस्थित न्याय के फलीभूत जनसामान्य का निम्नोच्च 
  प्रतिनिधित्व का सर्वोत्क्रित उद्देश्य एवं समग्रविषयिक स्वराष्ट्र 
  एक निश्चित सीमा में संन्नियन्त्र संविधानिक संस्था का अंगीकरण 
  के कर्मत: अविच्छीन्य राष्ट्र की परिकल्पना ही लोकतंत्ह....."  



'' लोकतंत्र की परिकल्पना की व्युत्पत्ति संभवतया वंशवाद के 
  विरोध के कर्मतस हुई होगी..''
  

'' स्वतन्त्र  न्यायपालिका, कार्यपालिका से दृढ़संधि न करते हुवे
   दाप, दाब, दाय,द्रव्य व दिव्यव्यक्तित्व से प्रभावशुन्य हो सर्वतस-
   सम,निर्विशेष दण्डपाश व न्यायप्रस्तुता के परिरक्ष्य हो संविधान
   को परिदृढ एवं चुस्त व पुष्ट कर सकती है..''


'' पृथ्वी-प्रथम;--
  जनता यदि कतिपय 'लेकिन, किन्तु, परन्तु' के अन्यतम दलरहित
  प्रत्याशी का चुनाव सर्वप्रथम करे तत्पश्चात चयनित प्रत्याशी दल का
  चुनाव करें यथाक्रम दल के सदस्यों की निर्धारित संख्या में चुने गए
  प्रत्याशियों की सहभागिता अर्द्धाधिक हो तदनंतर अर्द्धाधिक चयनित
  प्रत्याशी दल का चुनाव करे जिसके सादृश्य जहां द्वीगुण्य दृष्टांत की
  आकृति समरूप चुनाव प्रणाली अधिक पारदर्शी होगी वहीं 'धन' 'बल'
  का प्रभाव संभवतया न्यूनतम होगा कारण कि 'धन' 'बल' का अधिकाधिक
  दुरुपयोग प्रत्याशी के अन्यतस दल के प्रचार हेतु होता है
                            तथानुक्रम एकात्म दल के प्रभुत्व/वर्चस्व की समाप्ति के
 साथ ही वंशवाद से भी जनता निर्मुक्त होगी; इसका प्रयोग-परिक्षण विधायिका
 चुनाव में किया जा सकता है..''
                     

'' पारदर्शी चुनाव प्रणाली, पारदर्शी व सुदृढ़ संविधान की द्योतक है;
  पारदर्शी संविधान,पारदर्शी व सुदृढ़ लोकतंत्र का सूचक है..''


'' राजतांत्रिक प्रणाली में बलात्सत्तापहरण के निमित्त 'राजा' परस्पर
  'लड़ाई' अथवा 'युद्ध' करते थे,
                        लोकतंत्र में जहां प्रत्याशी सेवाभृत/सेवाधारी स्वरूप
  चयन हेतु स्वयं को जनता के समक्ष प्रस्तुत करता है वहां चुनाव के
  सह 'लड़ाई' अथवा 'लड़ना' जैसे शब्दों का प्रयोग समझ से परे है, स्व-
  तंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारतीय लोकतंत्र में 'दलानुवंश' के अन्तया
  'दलपुत्र' के रुपान्वित विचित्र प्रकार के वंशवाद का प्रादुर्भाव हुवा....."





 









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