" सृष्टि ने भवभूति का सृजन कदाचित यथेष्ट
सुख प्रयोजन हेतु किया है किन्तु त्याग
में ही जीवन का सार है.."
" समस्त आत्मानात्म सृष्टि का कोष है,
सृष्टि का कोष जीवन का कोष है.."
" प्राकृतिक संसाधन, यथेष्ट सुखमय व
संतुलित जीवन के निमित्त है, न की
भोग विलास हेतुक.."
" सुख व भोग विलास सन्निकट है,
लक्ष्मी व माया के;
लक्ष्मी से सुख की प्राप्ती होती है,
माया से भोग विलास की.."
" प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन सदैव
भोग विलास हेतु ही होता है,
भोग विलासित जीवन का आरम्भ सुखमय
जीवन की मर्यादारेख लांघ कर होता है.."
तात्पर्य है:--
" प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मानव, भुत्निर्मित विकास के तदर्थ
उत्खात खनिज द्रव्य को मुद्रा सह भुक्तभूति में परिणीत करता है,
किन्तु यदार्थ परिणति का दोषपूर्ण अर्जन सह संचयन होने लगता है.
परिणाम स्वरूप एतत कतिपय क्षेत्रों में आधारभूत
सुविधा साधन की न्युनता के कारक होते है, तदनुरूप इन न्युनताओं
की पूर्णता हेतु नवीन ऑद्योगिक इकाईयों की स्थापना की आवश्यकता
होने लगती है जो मूलत: उत्खनन आधारित होती है इस तरह यह
कुचक्र का रूप धारण कर रहा है जो दोषपूर्ण अर्जन सह संचयन पर
अंकुश लगने पर ही स्थिर हो सकता है
एतेव भ्रष्टाचार का आकार संक्षिप्त है किन्तु इसकी
आकृति न केवल विकराल है अपितु अनावश्यक दोहन के परिमित
में भविष्यत् हेतु प्रलयंकारी विनाश का कारक सिद्ध हो सकता है.."
" सम्पूर्ण विश्व में( भारत में अधिकतम) यदि प्राकृतिक संसाधनों के
दोहन की परिमाणीक लब्धि का सम्यक वितरण होता तब न केवल
भारतीय अपितु विश्व का प्रत्येक व्यक्ति लब्धमान हो आधारभूत
सुविधा से कहीं अधिक साधन का सन्निधि होता....."
' Aadhunikataa Ka Aashay Saamaajik Kuritiyon Ko
ReplyDeleteSamaapt Kar Susanskrit Samaaj Ke Vikaas Se Hai
Na Ki Vikrit Sabhyataa Se Samaaj Ko Vikrit
Karane Men....."
" Jaese Dhuven Se Agni..,
ReplyDeleteavam Mal Se Darpan Dhaka Jaataa Hai..,
Jaese Jer Se Garbh Dhakaa Huvaa Hai..,
Vaese Hi Maayaa Se Gyaan Dhaka jaataa Hai....."
-----" Sreemadbhavadgitaa "-----