जो जग धर जग हेतु कर लेन जोग सो नाम |
जो जग जीवन जोइया करन जोग सो काम || १ ||
भावार्थ : - जो इस जगत के आधार स्वरूप है, जो जगत की उत्पत्ति के कारण व् कारक है उसी का नाम लेने योग्य हैं | जो इस जगत का तथा इस जगत में जीवन का संरक्षण करते है वह कार्य कृतकार्य कहलाते हैं एतएव वही कार्य करने योग्य हैं |
बैनन बैनन एकै जो ह्रदय माहि समाए |
एक घाव भरियाए रहे दूज रहे हरियाए || २ ||
भावार्थ : - बैन यद्यपि शब्द एक है किन्तु इनका अर्थ दो है, 'बैन'बाण को भी कहते हैं और वाणी को भी कहते हैं यदि ये ह्रदय में उतर जाए तो एक बैन के दिया घाव कदाचित भर भी जाता है किन्तु दूजे बैन का दिया घाव कभी नहीं भरता अर्थात बाण का दिया घाव कदाचित भर जाता है किन्तु वाणी का दिया घाव कभी नहीं भरता |
यमक अलंकार = इस अलंकार में एक शब्द की वारंवार आवृति होती है किन्तु उसके अर्थ सार्थक व् भिन्न भिन्न होते हैं |
जैसे : - कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए |
या खावै बौराइ गए वा खावै बौराए ||
भावार्थ : - यहाँ एक कनक का अर्थ सोना या धन सम्पति है और एक कनक का अर्थ धतूरा है | कवी कहते हैं कि : - कनक कनक की मादकता एक से बढ़कर एक है दोनों को खाकर पागल ही होना है ऐसे पागल या तो घर से भाग जाते हैं या देश से, इसलिए किसी का कुछ भी मत खाओ |
काम सधे जब एकै तैं करो न और उपाए |
अनभल रजता एक भलो कहा करिब बहुताए || ३ ||
भावार्थ : जब एक से काम चल रहा हो तब अन्यान्य उपाय नहीं करना चाहिए | शासन करता एक दुष्ट भी बहुंत होता हैं, जब सारी जनता ही दुष्ट,भ्रष्टाचारी व् अनाचारी हो तब उसका शासन तंत्र किस काम का |
जो जग जीवन जोइया करन जोग सो काम || १ ||
भावार्थ : - जो इस जगत के आधार स्वरूप है, जो जगत की उत्पत्ति के कारण व् कारक है उसी का नाम लेने योग्य हैं | जो इस जगत का तथा इस जगत में जीवन का संरक्षण करते है वह कार्य कृतकार्य कहलाते हैं एतएव वही कार्य करने योग्य हैं |
बैनन बैनन एकै जो ह्रदय माहि समाए |
एक घाव भरियाए रहे दूज रहे हरियाए || २ ||
भावार्थ : - बैन यद्यपि शब्द एक है किन्तु इनका अर्थ दो है, 'बैन'बाण को भी कहते हैं और वाणी को भी कहते हैं यदि ये ह्रदय में उतर जाए तो एक बैन के दिया घाव कदाचित भर भी जाता है किन्तु दूजे बैन का दिया घाव कभी नहीं भरता अर्थात बाण का दिया घाव कदाचित भर जाता है किन्तु वाणी का दिया घाव कभी नहीं भरता |
यमक अलंकार = इस अलंकार में एक शब्द की वारंवार आवृति होती है किन्तु उसके अर्थ सार्थक व् भिन्न भिन्न होते हैं |
जैसे : - कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाए |
या खावै बौराइ गए वा खावै बौराए ||
भावार्थ : - यहाँ एक कनक का अर्थ सोना या धन सम्पति है और एक कनक का अर्थ धतूरा है | कवी कहते हैं कि : - कनक कनक की मादकता एक से बढ़कर एक है दोनों को खाकर पागल ही होना है ऐसे पागल या तो घर से भाग जाते हैं या देश से, इसलिए किसी का कुछ भी मत खाओ |
काम सधे जब एकै तैं करो न और उपाए |
अनभल रजता एक भलो कहा करिब बहुताए || ३ ||
भावार्थ : जब एक से काम चल रहा हो तब अन्यान्य उपाय नहीं करना चाहिए | शासन करता एक दुष्ट भी बहुंत होता हैं, जब सारी जनता ही दुष्ट,भ्रष्टाचारी व् अनाचारी हो तब उसका शासन तंत्र किस काम का |
भावार्थ पढ़ कर अच्छा लगा
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती है.
स्वागत हैं आपका खैर