मेरे सरापे को जेहन में जगह दो,
के मुस्कराने की कोई तो वज़ह दो..,
वो मरमरीं चाँद जो शब् को न मयस्सर,
उसे हमराज करो और दामन में गिरह दो..,
ख़म को खोल गेसू-ए-दराज़ को संवार के,
लबे-कनार को सुर्खियाँ नज़रों को सियह दो..,
ज़हीनत के ज़मील-तन पे सीरत के हैं ज़ेवर,
दस्ते-दहल को हिना के रंग की निगह दो..,
हर रब्ते-मंद जाँ ऱगे-जाँ से हो नज़दीक,
रवाज़ी शामो-सहन की वो रस्मी सुबह दो..,
मुबारकें शफ़ाअतें सलामतें हो दम-ब-दम,
हम-क़दम को रुख़सते-रहल की रह दो.....
----- || राग-दरबार || -----
मङ्गलम् भगवान विष्णु मङ्गलम् गरूड्ध्वज: |
मङ्गलम् पुण्डरिकाक्ष्: मङ्गलाय तनोहरि: ||
दीप मनोहर दुआरी लगे चौंकी अधरावत चौंक पुरो |
हे बरति हरदी तैल चढ़े अबु दीप रूप सुकुँअरहु बरो ||
पिय प्रेम हंस के मनमानस रे हंसिनि हंसक चरन धरो |
रे सोहागिनि करहु आरती तुम मौली मस्तक तिलक करो ||
चलिअ दुलहिनि राज मराल गति हे बर माल तुम कंठ उतरो ||
हरिन अहिबेलि मंडपु दै मंगल द्रव्य सोहि कलस भरो ||
जनम जनम दृढ़ साँठि करे हे दम्पति सूत तुम्ह गाँठि परो |
भई हे बर सुभ लगन करि बेला परिनद्ध पानि गहन करो |
अगनि देउ भए तुहरे साखी लेइ सौंह सातौं बचन भरो ||
बर मुँदरी गह दान दियो हे सुभग सैन्दूर माँगु अवतरो |
जीवन संगनि के पानि गहे हे बर सातहुँ फेरे भँवरो ||
हे गनेसाय महाकाय तुम्ह भर्मन पंथ के बिघन हरो |
बरखा काल के घन माल से हे नभ उपवन के सुमन झरो ||
पट गठ बंधन बाँध कै देइ हाथ में हाथ |
ओरे बोले बाबुला जाउ पिया के साथ ||
शामो-शम्मे-सहर के शबिस्ताने रह गए..,
जिंदगी रुखसत हुईं आशियाने रह गए.....
भावार्थ : - मन को हारने वाले दीप स्वरूप कुअँर द्वार पर पहुँच गए हैं चौंक पुरा कर उसपर चौकी रखो | हे बाती ! हल्दी व् तैल्य से परिपूरित इस दीप रूपी सुकुमार का वरण करो || १ || रे हंसिनी ! तुम्हारे इन प्रियतम रूपी प्रेमहंस मन रूपी मानसरोवर में बिछिया से विभूषित चरण रखो | सुहागिनों ! तुम कुंअर की आरती करते हुवे उसके मौलिमस्तक पर तिलक का शुभ चिन्ह अंकित करो |
दुल्हन राजमराल की गति से चल पड़ी है एतएव हे वरमाल्य तुम वर के कंठ में अवतरित होओ | मार्केट रत्न सी हरी पान की पत्तियों की बेलों से लग्न-मंडप को सुसज्जित कर मंगल द्रव्य से कलश भरो || हे दम्पति सूत्र ! तुम इस भाँती ग्रंथि ग्रहण करो कि वर-वधु का बंधन जन्म-जन्म तक सुदृढ़ रहे | हे वर ! शुभ मुहूर्त का समय हो गया तुम परिणद्ध होकर कन्या का दान ग्रहण करो | अग्निदेव तुम्हारे साक्षी हैं एतएव उनकी शपथ लेकर सात वचन भरो |
वर ने मुद्रिका से सिंदूर अर्पित कर दिया एतएव हे सौभाग्य रूपी सिंदूर तुम अब वधु के केश प्रसारणी में अवतरित हो जाओ | जीवनसंगिनी के हाथ को ग्रहण किए हे वर ! अब तुम सप्त-पदी रीति का निर्वहन करते हुवे अग्नि की सात बार परिक्रमा करो | हे गणेशाय | हे महाकाय ! तुम भ्रमण पंथ के सभी विध्नों का हरण करो | हे नभ के उपवन के सुमन तुम वर्षा ऋतू की मेघमालाओं के जैसे वरवधू पर वर्षो ||
आँचल से ग्रंथि बाँध कर वर के हाथ में वधु का हाथ दे बाबुल बोले : - अब तुम अपने प्राणपति के साथ प्रस्थान करो |
----- || राग-दरबार || -----
मङ्गलम् भगवान विष्णु मङ्गलम् गरूड्ध्वज: |
मङ्गलम् पुण्डरिकाक्ष्: मङ्गलाय तनोहरि: ||
दीप मनोहर दुआरी लगे चौंकी अधरावत चौंक पुरो |
हे बरति हरदी तैल चढ़े अबु दीप रूप सुकुँअरहु बरो ||
पिय प्रेम हंस के मनमानस रे हंसिनि हंसक चरन धरो |
रे सोहागिनि करहु आरती तुम मौली मस्तक तिलक करो ||
चलिअ दुलहिनि राज मराल गति हे बर माल तुम कंठ उतरो ||
हरिन अहिबेलि मंडपु दै मंगल द्रव्य सोहि कलस भरो ||
जनम जनम दृढ़ साँठि करे हे दम्पति सूत तुम्ह गाँठि परो |
भई हे बर सुभ लगन करि बेला परिनद्ध पानि गहन करो |
अगनि देउ भए तुहरे साखी लेइ सौंह सातौं बचन भरो ||
बर मुँदरी गह दान दियो हे सुभग सैन्दूर माँगु अवतरो |
जीवन संगनि के पानि गहे हे बर सातहुँ फेरे भँवरो ||
हे गनेसाय महाकाय तुम्ह भर्मन पंथ के बिघन हरो |
बरखा काल के घन माल से हे नभ उपवन के सुमन झरो ||
पट गठ बंधन बाँध कै देइ हाथ में हाथ |
ओरे बोले बाबुला जाउ पिया के साथ ||
शामो-शम्मे-सहर के शबिस्ताने रह गए..,
जिंदगी रुखसत हुईं आशियाने रह गए.....
भावार्थ : - मन को हारने वाले दीप स्वरूप कुअँर द्वार पर पहुँच गए हैं चौंक पुरा कर उसपर चौकी रखो | हे बाती ! हल्दी व् तैल्य से परिपूरित इस दीप रूपी सुकुमार का वरण करो || १ || रे हंसिनी ! तुम्हारे इन प्रियतम रूपी प्रेमहंस मन रूपी मानसरोवर में बिछिया से विभूषित चरण रखो | सुहागिनों ! तुम कुंअर की आरती करते हुवे उसके मौलिमस्तक पर तिलक का शुभ चिन्ह अंकित करो |
दुल्हन राजमराल की गति से चल पड़ी है एतएव हे वरमाल्य तुम वर के कंठ में अवतरित होओ | मार्केट रत्न सी हरी पान की पत्तियों की बेलों से लग्न-मंडप को सुसज्जित कर मंगल द्रव्य से कलश भरो || हे दम्पति सूत्र ! तुम इस भाँती ग्रंथि ग्रहण करो कि वर-वधु का बंधन जन्म-जन्म तक सुदृढ़ रहे | हे वर ! शुभ मुहूर्त का समय हो गया तुम परिणद्ध होकर कन्या का दान ग्रहण करो | अग्निदेव तुम्हारे साक्षी हैं एतएव उनकी शपथ लेकर सात वचन भरो |
वर ने मुद्रिका से सिंदूर अर्पित कर दिया एतएव हे सौभाग्य रूपी सिंदूर तुम अब वधु के केश प्रसारणी में अवतरित हो जाओ | जीवनसंगिनी के हाथ को ग्रहण किए हे वर ! अब तुम सप्त-पदी रीति का निर्वहन करते हुवे अग्नि की सात बार परिक्रमा करो | हे गणेशाय | हे महाकाय ! तुम भ्रमण पंथ के सभी विध्नों का हरण करो | हे नभ के उपवन के सुमन तुम वर्षा ऋतू की मेघमालाओं के जैसे वरवधू पर वर्षो ||
आँचल से ग्रंथि बाँध कर वर के हाथ में वधु का हाथ दे बाबुल बोले : - अब तुम अपने प्राणपति के साथ प्रस्थान करो |
with utmost regards.
ReplyDeletewonderful verse.
does it not yhe lst line read as
let the partner , move along , or something else .
regards
Kshetrapal Sharma 16.5.18
सरापा = मूरत
Deleteज़ेहन में = मन में
सरापा = मूरत
Deleteज़ेहन में = मन में
suprabhat.
ReplyDeleteThank you.
I may be excused. for erroneous typing . the line starting above with "does ....yhe is the "and lst is last , "
so pl.
....Regards Kshetrapal Sharma , 17.05.18
मुबारकें शफ़ाअतें सलामतें हो दम-ब-दम,
Deleteआपकी बधाइयाँ, शुभकामनाए और भूल-चूक क्षमा करने की संस्तुति सदैव साथ रहे,
हम-क़दम को रुख़सते-रहल की रह दो.....
अब इस जीवन साथी को विदा कर प्रस्थान करने की अनुमति दीजिए.....
या
Deleteबधाइयाँ, शुभकामनाए और भूल-चूक क्षमा करने की संस्तुति सदैव साथ रहें,
अब इस जीवन साथी को विदा करवाइये और प्रस्थान करने की अनुमति दीजिए.....
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट
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