Tuesday, 29 May 2018

----- ॥ दोहा-पद 10॥ -----

        ----- || राग-भैरवी ||-----

ओ री मोरी सजनी तुअ नैहर न जइहो | 
न जइहो न जइहो तुअ नैहर न जइहो || १ || 


मैं सावन अरु तुम बन मेहा  नेहु घन रस बरखइयो | 
मैं पावस तुम घोर घटा री  घेरि गगन गहरइयो || २ || 

मैं सागर सहुँ तुम सुर गंगा हरिदय बहि बहि अइयो |  
पेम के एहि संगम तीरथ ए तीरथ नहि बिसरइयो  || ३  || 

देइब चीठी फेरिहु दीठी जोहि बिरहि घन दइयो | 
कमनिअ कंचन कमन कनीठी मोर कनि कने पइयो || ४  || 

कनक कली कर कानन करिके मोहि न कनखि लखइयो |
कंगन कलिइन लेइ बलइयाँ  मोर कंठन खनकइयो || ५ ||

नैन झरोखे पलक पट देइ हिय गिह पिय पौढ़इयों | 
रैन अँजोरे धरै अँजुरी प्रीत करि जोत जगइयो || ६  ||

No comments:

Post a Comment