Friday, 25 May 2018

----- ॥ दोहा-पद 9॥ -----

होरी पतंगि  उरि कहँ जाहु, 
तुहरि प्रिया एहि कहि कर दियो पुनि रार करन पिय आहु || १ || 
छितिजिहि  पारि हियपिय पिहरियो  छितिज परस न बहुराहु 
पैसिहु गह प्रीति पूरित सब रीति री प्रियातिथि तहँ पाहु || २ || 
भेंटिहि जननी तोहि उर लाइ जलज नयन भरी बाहु | 
त मोर हरिदय कर कहनि कहहु  जनि जनित सहित सब काहु || ३ || 
कर गहि जौ  तोहि भाई भउजाइँ सलिल सनेह बरखाहु  
जोरि पानि जुग ए बिनती करिहौ  बाबुल मोहि लए लाहु || ४ || 

पतंगी = चिट्ठी,पत्रिका, पत्ती 

भावार्थ : - अरी पतंगी तुम कहाँ उडी जा रही हो ? पतंगी कहती है : - तुम्हारी प्रिय ने यह कहकर मुझे वायु के हाथ में दिया है  कि प्रियतम पुनश्च झगड़ने आ रहे हैं | ह्रदय को प्रिय पीहर क्षितिज के पार है तुम क्षितिज को स्पर्श कर लौट न आना | क्षित के पार जाना और पीहर के गृह में प्रवेश करना वहां प्रीति से परिपूर्ण रीतियों से भरे अतिथि सत्कार का सुख प्राप्त करना | जननी से भेंट करना वह तुम्हें अश्रु पूरित नेत्रों से अँकवार कर जब  अपने ह्रदय से लगाएगी तब तुम जननी व् जनक सहित सभी कुटुंबजनों को मेरे ह्रदय की व्यथा कहना | भाई भौजाई जब तुम्हें हाथों में ग्रहण करेंगे तब तुम सलिल स्नेह की वर्षा कर हाथ जोड़ कर उनसे विनती करना और कहना भैया मुझे ले आओ | 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-05-2018) को "मोह सभी का भंग" (चर्चा अंक-2984) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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