Tuesday, 22 May 2018

----- ॥ दोहा-पद 7॥ -----

खोल के पुरट-पट घन स्याम रँग दिखाए है, 
होरी हाथ जोरि मोहे सबहि ढंग मनाए है.., 

पाए पाति पवन संग नभ बढ़ि चढ़ि पतंग, 
कासि थोरि थोरि डोरि अपने सँग मिलाए है..,


सपन नव दए के नैन रैन चरन भए बिहंग, 
भोरी चोरि चोरि रंग में भंग मिलाए है.., 



प्रीतम हरि लाल सरि करि ताल धरि रँग-बिरंग 
हो री होरी होरी बिन रे मोहे अंग लगाए है 

पुरट-पट = सुनहरा घूँघट, बिजली का घूँघट 




खोल के चश्मे-जद यूँ शाम रंग दिखाए, 
दस्ते-सफ़हे पे शफ़क़ टूट के बिखरी..,  

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