जगत-जगत बिरतै रे रतिया
अम्बरु अंत लग जग जागे, जागत जरत जोति बरतिया |
दिसै कमन बहु कुटिल करमचँद, कहत जगत कहि सुनी बतिया ||
करमन कर लेखा पढ़त फिरै, पढ़ी सकै चिठिया न पतिया |
बैनन्हि के बिँग बैनाउरि कसि कसि छाँड़ बिँधे उत्खतिया ||
जो ये बस्ती भई बैरागि तो जा पड़े को परबतिया |
बिरुझत बिदूखत बैरु करेउ भूतेसु के रे बरतिया ||
भक्तिकाल
सँवरे सँवरे मोरे सँवरिए चितइ नहि देउ मूरतिया |
बिरज उजारी दए झिरकारी भयउब भूरि दुरगतिया ||
जोति बरतिया = ज्योति वर्तिका
कुटिल करमचँद = कुटिल कर्मों से युक्त
बिंग = व्यंग
बैनाउरि = बाणावली
बिदूखत = दोषारोपण करना
बिरज उजारी = ब्रज को उजाड़ने वाली, वर्जना और जलाने वाली
झिरकारी=फटकार
अम्बरु अंत लग जग जागे, जागत जरत जोति बरतिया |
दिसै कमन बहु कुटिल करमचँद, कहत जगत कहि सुनी बतिया ||
करमन कर लेखा पढ़त फिरै, पढ़ी सकै चिठिया न पतिया |
बैनन्हि के बिँग बैनाउरि कसि कसि छाँड़ बिँधे उत्खतिया ||
जो ये बस्ती भई बैरागि तो जा पड़े को परबतिया |
बिरुझत बिदूखत बैरु करेउ भूतेसु के रे बरतिया ||
भक्तिकाल
सँवरे सँवरे मोरे सँवरिए चितइ नहि देउ मूरतिया |
बिरज उजारी दए झिरकारी भयउब भूरि दुरगतिया ||
जोति बरतिया = ज्योति वर्तिका
कुटिल करमचँद = कुटिल कर्मों से युक्त
बिंग = व्यंग
बैनाउरि = बाणावली
बिदूखत = दोषारोपण करना
बिरज उजारी = ब्रज को उजाड़ने वाली, वर्जना और जलाने वाली
झिरकारी=फटकार
दोहे मुझे कभी समझ नहीं आते
ReplyDeleteलेकिन आपके ब्लॉग के माध्यम से थोड़े थोड़े समझ लेता हूँ।
लिखती रहें।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-05-2018) को "वृद्ध पिता मजबूर" (चर्चा अंक-2979) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी